dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

की जिनगी बेकार अछि ?


 की जिनगी  बेकार अछि ?
                           नै , निमही गेल  जिनगी  कमाल अछि |
     किछ  दिन पहिने  के बात  अछि , पुसक  ज़ारक मास   अह़ा   सब लोकेन  अहि  बेर  देखबै केलो  कतेक  हद  तक  ढंड अपन  चरम शीमा  तक पहुँच गेल  छल  , ओही  ढंडी के   बात  छी |
     हमर दफ्तर  में किछ जरुरी काजक  प्रयोजन गेल  छल  , जाही  कारने , हमर  दफ्तर के छुट्टी समयक हिसाब   से  , बहुत  देरी कअक  फुर्सत  भेटल  ,  ताबे में देखलो   हमर  साईकिल  सेहो पेंचरक अबस्था  में  अछिएक ढंडी  दोसर कुन्नु  सबरी के साधन  नै  , हम   अधिक   असमंजस  में परी गेलो  जे आब  हम  अपन डेरा  कोनक  जायब , घड़ी के समय  एग्यारह  बता रहल अछि,   चारू दिस  कुन्नु  चारा नहीं , घर  पर धिया - पुत्ता सब के सेहो  चिंता  होयत  हेतैन जे एतेक   रैत  के कतय छैथि ,  आगन वाली के बाते किछ और कनिको देरी भेल , की  हे भगवती कही  ढेर रास कोबला - पाती   बसैय  छैथि जे ,  हे  भगवती   हुनका रक्षा करबैन |
  सब  बात  सोची - सोची के हम और  बेसी  चिंता  में छलो | आखिर  की कायल  जाय ?

ताबे में ऐगो बुजुर्ग (उम्र  ५५ से ५८ के) किमरोह से रिक्शा  लअके हमरा  लग  अबी  गेला ,  हमरा से  झट सँ बजला  |
 बेटा आप  को कहा  जाना  है ?
 हम कहल्यनी - हमको  छलेरा सदर पुर  गाँव जाना  है वह हाँ से  मै पैदल  निकल  जाउगा ,
रिक्शा  वाला बाजल  , बेटा  वो  कितना  दूर  है ?
 हम कहल्यनी  ,यहाँ  से तक़रीबन  १२ किलो  मीटर दूर  पर है ,
रिक्शा वाला  हमरा से बाजल ,, बेटा  हमरा  घर उस  जगह  से बहुत  दूर  है  मै नहीं जा  पाउगा  आप कोइ  दूसरा रिक्शा  देखलो  |
     हम एहन  बात  सुनी के  और  बेशी  चिंतागिर्त भगेलो , जे आब हम की  करबयदि  पैदल  जायत छी कम सँ  कम दू घंटा समय   लागैत  अछि  , नहीं जायव    घर में  अंदेशा  , कुलमिला  के चारू तरफ  चिन्ते - चिंता , आखिर करब करब  की ?

     एतेक  बात  मन में सोचेयत छेलो  की , ताबे  में  फेर  ओह्ह रिक्सा  बाला  हमरा  सामने  आबी के कहैत  अछि ,, बेटा हम से पहले  आप को  अपने  घर  जाना  जरुरी  है , मै तो  सरक  आदमी  हूँ , लेटसेट अपने घर  चला  जाउगा ? आप  बैठ  जाऊ , आगे  - आगे  रास्ता  बताते  रहना |
   ई बात  सुनी के हमरा  अपन  मन  में भेल ,   जे भगवती  हमर सबहक  पुकार  सुनी  लेलैथि आब  कुनू चिंता  नै हम सही सलामत  अपन  घर पहुंच  जायब  | आखिर  में भगवती अपन दूत  हमरा  लेल पठाई देलाथी |

कनिक दूर  गेल होयब  की हमरा  मुहँ से अचनाक  अबाज निकैल गेल , की अंकल ईस साल  ढंड तो  बहुत  हद  तक  बढने  लगे  है ? पत्ता नहीं  गाँव - घर  क़ा क्या  बुरा  हाल होगा ?
रिक्शा वाला  के अबाज  आयल  -
    ,, बेटा  सबको  इंसानियत के  कारन   मज़बूरी   गारिबी क़ा पालन  करना परता  है,  ईस  में ,  मै और  आप  क्या  कर  सकते  हैसब   कर्मो  क़ा खेल  है , भाग्य  जिधर  ले जाते  है उधर जाना परता  है , आखिर  में  हम गरीब लोग उसका   पालन  करते  ै , इस में ढंडी और गर्मी क्या करेगा ?
    ई बात सुनीक हमरा अपना –आप  में   जानकारी  भेटल  जे " बुजुर्ग " किछ खास  पढ़ल -लिखल  छैथि --
    हमर मुहँ  से  झट  सं आवाज  निकैल गेल जे - अंकल  आप  कितने  पढ़े  - लिखे है ?
 हमरा  उत्तर भेटल  "  बेचलर ऑफ  आर्ट फ्रॉम  मिथिला  युनिभर्सिटी "
हुनकर  शब्द सुनी  के हमर दिमाग  किछ  और  सोचय लागल  जे,  बी    कके   आखिर रिक्शा  कियाक चलबैत  छैथि ?
ओहो  हमर  मिथिला के निवासी बनीहमर  मन में  हुनका से  बारबार ईहः प्रश्न  पुछैक  इच्छा  करैत  छल जे आखिर  की कारण अछि ?
 जखन हुनका  बोली बचन से मिथिला   अबाज  निकलल हम  अप्पन  मैथिलि  भाषा  मै  हुनका झट सं पुछलियन की  -
 ,, काका  अहंक  कतय घर  भेलय " ?
रिक्शा  वाला  सरमायत  - सरमायत  धीरे - धीरे मधुर  अबज में बजला , हमर  घर  सुपोल  परैत अछि |
हम फेर - काका  अपनेक  की  नाम  भेलय
उत्तर  भेटल --  हरी शरण ा ,
 हम - पुछलीयन  काका  अहाँ एतेक  पढल - लिखल  छी  ओही  के उरांत रिक्शा क्याक  चलबैत  छी ?
झा जी काका  बजला - रिक्शा  हम नै  चलबैत  छी , हमर  मज़बूरी  चलबैत अछि |

      हम फेर  पुछलीयन - झा  जी काका  अहिठाम अपनेक  संग  और  कियोक  छैथि ?                    झा जी काका से उत्तर भेटल  - हमर  सब परिवार  एतही  छैथि ,जाही में हमर अर्धांग्नी आ दुगो  पुत्र  आ एगो  सुपुत्री  छैथि |
हम फेर पुछलीयन  - काकी  बोउवा  सब  के   निक लागैत छन जे  अहाँ  रिक्शा  चलबैत  छी?                                                                                                                       
झा जी काका कहलैथि -  हमरा  परिवार  में किनको  नहीं  बुझल छैन जे हम रिक्शा      चलबैत छी ,
     हम  फेर पुछलीयन  से कोना ?आखिर  अहाँ  की काज  करैत  छी कोनाक  रहैत छी ?  ---               आखिर  की  कारन अछि  जे अह्ना  डिग्री  लअके  रिक्शा  चलबैत  छि  --- 
झा जी  काका   ,  धीरे - धीरे  अबाज निकलैथी  कहलैथि    हम  सन १९९०  में दिल्ली  एलो , कैकटा  कंपनी  में जाके अपन  बिग्यापन  देलो  कतोउ जोगर  नै  लागल  क्याक की हमरा लग  डिग्री छल  मुद्दा  कम्पूटरक  शिक्षा नै छल जाही  कारण सब  जगह  से  निष्कासित   जायत  छेलो | बहुत  दिनक  बाद  अपन  जिनगी  से  हारल थाकल  अपन जिनगी के  सिकोरटी गार्ड  के काज पकरलो ओही  समय में हमरा ३०००  रूपया  दैत छल , समय  ठीक  ठाक से  बितैत  छल ,   धिया  पुता  सब  सेहो  स्कुल  में   पढैत  छल , बहुत  निक जेका  गुजर बसर  होयत  छल , समय  बितल गेल  महगाई  बढ़ल गेल , मुद्दा  आमदनी  के कुन्नु  दोसर  चारा नही छल , हम  अपन  परिवार के   पेट भरी लैत छेलो  मुद्दा धिया - पुत्ता के पढाई के खर्चा  हमरा से पुरेनाय  बड़ मुसकिल  छल - आखिर कतेक दिन तक   परोशी से कर्जा  लअके  बच्चा  सबहक  स्कुल  के माशिक  शुल्क  देबय   | एतबा  नही,    हमर जिनगी के कमाए के अंतिम  चरम  सीमा सेहो बितल जायत छल    घर  खर्चा सेहो  बेसी  भेल  जायत  छल  , जाही कारने गार्ड  के आट घंटा  काज  केला के बाद बाकि  समय  में हम  भाडा  पर रिक्शा  चलब  लागलो  कि  हमर  धिया पुता  के  आबैय बाला  जिनगी  में तकलीफ  नै  होय  जे हमर  बाबु  हमरा  पढ़े में खर्च  नही  द सकला हमर शिक्षा अधूरे  रहिगेल ,  अन्त में  हमरा जेक   रिक्शा  नहीं  चलाबैं परै ,
  हम फेर प्रश्न  देलियानी   जे  बोउवा    बुची सब एखन  की करैत  छैथि ?
हरी  काका  कहलैथि  जे -
  हमर जेट  पुत्र  बी- टेक  इंजीनियरिंग कोर्स  के  फ़ाइनल  में छैथि , दोसर पुत्र एम बीया तयारी करैत छैथ और पुत्री अंतर स्नातक  परीक्षा दके अपन मायक संग घर  मे काज धन्दा के देखैत  छैथि ,
हमरा मन  में बेर - बेर हिनका से प्रश्न  पुछैक इच्छुक  छल   मुद्दा हम  करब   करब  की ?
हरी काका हम अपन गंतब्य स्थान के नजदीक  तक आबी गेल  छी, जायत - जायत  बस एकटा प्रश्न  के उत्तर   देयत जाऊ |
बाजु की  पूछय  चाहैत छी  ---
हम झट सन  बजलो हरी काका   की  जिनगी  बेकार  अछि ?  
हरी काका से  झट सन उत्तर भेटल - नीमैह गेल  जिनगी  कमाल अछि ,


 ऐतबा में  हम  अपन जेबी में सं एगो  नमरी  निकैल  के हरी काका  के देबय  लागलो की हरी काका  हमरा  मना देलानी कहीके की अहुं हमर जेट  पुत्र  के समान छी अह्ना  अहि से दोसर  कुन्नु  काज  करब , कतबो  जिद  कलियन , आखिर अन्त में   एको  टाक हमरा  से नहीं लेलैथि
नोट - (आखिर की कारण छल जे हमरा  से एको टा टाक  नहीं लेलैथि हम मैथिल  छी,  
ताहि  द्वारे  या हुनका से  बिसेष किछ  बात कय लेलो ताहि द्वारे , या हम  हुनका  से  उम्र  में बहुत  छोट  छेलो  दही द्वारे , या हमहू  हुनके जेक  गरीब  मजदुर  बनी  प्रदेश  आयल  छी ताहि द्वारे  , या हुनका  अपन मैथिल  लोक  से बेशी  प्रेम  छानी ताहि द्वारे,  आखिर  की कारन छल , सब प्रान्त  में  देखैत  छी  बहुत  रास अपन  मैथिल भाई छैथि , कियक नै  हरी काका  सन  छैथि  जे एक दोसर से   अपन गाम  घर  जेका  एक  दोसर संग  भाई चार जेका ब्यबहार करैथि ,  ई बात  हम अपना  - आप के मन  में बस ईहा  सोचैत  छेलो , आई  ई बात  कतेको अपन  मैथिल  भय - बंधू के सामने अपन मुहं  से  सेहो बतेलो कियोक  नहीं  बजला  जे आखिर  कारन  की छल  , अहं  सब पाठक गन  जरुर  बतायब  जे कारन की छल  )

कोई टिप्पणी नहीं: