शनिवार, 18 फ़रवरी 2012
चर्चाके लाभ दूरगामी असर छोड़ैछ!
Pravin Narayan Choudhary
चर्चाके लाभ दूरगामी असर छोड़ैछ!
हरेक १० गोटा के बात पढला-सुनला सऽ ई सुनय लेल भेटैत छैक जे दहेज के विरोध तऽ कइयेको वर्ष सऽ भऽ रहल छैक, कतेको सुपर हिट चलचित्र बनलैक, कतेको नाटक बनलैक, कतेको कथा-उपन्यास लिखेलैक, कतेको समाज-परिवारमें संकल्प लियेलैक... मुदा फेर जखन बियाहके बेर अबैत छैक तऽ सभटा नियम-आदर्श-संकल्प ताखपर राखि के लोभ आ लालचमें लोक फंसैत छथि आ दहेजरूपी दानव अपन अट्टहास एहि करबटे वा ओहि करबटे लैते रहैत अछि। लोक निर्लज्ज बनि जाइत छथि। आदि-आदि।
सीधा देखब तऽ अवश्य उपरोक्त बात सत्य प्रतीत होयत। दहेज के व्यवस्था अप्राकृतिक नहि छैक। प्राकृतिक अधिकार के संवरण थिकैक आ ताहि घड़ी दहेज के प्रतिकार नहि बल्कि सत्कार मात्र होइत छैक। लेकिन दहेज के विरोध तखन उठैत छैक जखन माँगरूपी दहेज लादल जाइत छैक। आ माँग के न्याय कि?
बेटावाला के ई दावी जे हमर बेटा बड़ होशियार,
बहुत पैघ हाकिम बहुत पैघ ओहदेदार,
एकर हिस्सामें जमीन के रसदार,
गाममें इज्जत के मारामार,
कर-कुटुम्ब के सेहो भरमार,
तखन कोना ने दहेजक व्यवहार?
एतेक बात सोचैत समय बेटावालाके बिसरा जाइत छैन जे बेटीवाला के संगमें सेहो छैक लाचारी आ बेटीके सेहो अस्तित्व छैक। हुनकहु में कला-कौशल-बुद्धिमानी-होशियारी आदि छैक। हुनकहु खानदान आ विवेकशीलता आबयवाला समय में बेटावाला के खानदान-कुल-शील के निर्वाह करयमें सहायक बनतैक। लेकिन नहि... एतेक सोचब सभके वश के बात नहि छैक। बस मोट में अपन समस्यापर नजैर रहैत छैक आ अहाँ मरैत छी तऽ मरू।
तखन कि चर्चा-परिचर्चा सऽ कोनो सुधार नहि भेलैक? एतेक जागृतिमूलक प्रयास सऽ कतहु जागृति नहि एलैक??? एलैक आ खूब एलैक। आइ गाम-गाम बेटी सभ पढाई के प्रथम अधिकार बुझैत छैक। अभिभावक सेहो लाजे पाछू बेटीके पढाबय लेल आतुर रहैत छथि। दहेज के बात दोसर श्रेणीमें चलि गेलैक अछि। हलाँकि इ बात शायद ५०% में मात्र अयलैक अछि, बाकी ५०% आइयो बेटीके अधिकारके दमन करैत दहेज के चिन्तामें डूबल रहैत छथि। ई नहि सोचैत छथि जे जौँ बेटी पैढ-लिख लेत तऽ संसार ओकर अनुसारे चलतैक। ओ केकरहु सऽ पाछाँ नहि रहत। अपन रोजगार करैत एहेन संसार बनाओत जे मिथिलाके दंभी दृश्य नहि बल्कि असल मजबूत नींब आ ताहिपर बनल सुन्दर महल के प्रदर्शन करत। आइ मिथिला यदि विपन्न अछि तऽ बस एहि लेल जे एतुका बेटीपर अत्याचार कैल गेल, शिक्षा सऽ वंचित राखल गेल, गार्गी, मैत्रेयी, भारती आदि के संख्या में भारी कमी आयल... बस केवल एक चिन्ता जे विवाह कोना हेतैक... एतबी में डूबल अभिभावक सदिखन अपना के जुवा खेलैत वर तकैयामें मस्त रखलैथ आ बेटीके विवाह याने गंगा-स्नान - आफियत! एहि मानसिकता के संग आगू बढैत रहलैथ जे मिथिलाके घोर विपन्न बनौलक। लेकिन आब परिवर्तन के वयार चैल चुकल छैक। आब तऽ इहो सुनयमें आ देखयमें अबैत अछि जे घरवाला घरवाली के स्थान लय रहल छथि। भले धुआँवाला चुल्हा नहि फूकय पड़ैन, लेकिन गैस चुल्हापर लाइटर खटखटा रहल छथि आ छोलनी-करछुल भाँजि रहल छथि - मेमसाहेब लेल चाय सऽ लऽ के खाना आ धियापुता के हग्गीज तक चेन्ज कय रहल छथि। बेटी केकरहु सऽ कम नहि रहल आब। बेटाके आवारागर्दी के सेहो बेटी नकैर रहल छथि। ई सभ चर्चा-परिचर्चा आ जागृतिके पसारयवाला अभियानके असर थिकैक। एहने असर लेल दहेज मुक्त मिथिला अग्रसर छैक। आउ एहि मुहिममें अहुँ सभ अपन योगदान दियौक। अपन-अपन स्तर सऽ लोक के जागृतिमें असरदार बनू।
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