dahej mukt mithila

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AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

मंगलवार, 31 जुलाई 2018

आभा झा के कलमसं दिल्लीसेट - ( हास्य ब्यंग्य )

ऋतु वसंत केर आगम होइते
भेल बियाह पुरल अभिलाष
कविक कल्पना सँ बढिकऽ छल 
सासुरक सुख भोग विलास।

फगुआ खेलल फाँनि फाँनि कऽ
चैतो चित में चैन नें भेल,
सारि सार सरहोजनिक स्नेहक
रंग दिनों दिन चढ़िते गेल।

सुखद दिवस अवकाशक बीतल
टिकट कटल परदेशक लेल,
सुनिते सुन्नरि सुन्न लगै छलि
नयनक नोर टघरिते गेल।

द्रवित भेलहुँ दु: देखि धनि कें
रहि रहि फाटल हमरो कोंढ,
दू चारि दस दिन आर बिताबी
सोचल घुरि फिरि मनुआं मोर।

मुदा कोना बितलै नैं जानी
चैत बैशाखक नमहर दिन,
बिदा भेलहुँ निज कर्मक्षेत्र कऽ
लगै जेना आएल दुर्दिन।

चढल बस दरिभंगा अएलहुँ
भेटल गामक नबका मित्र,
मुखमण्डल मुस्की दऽ बाजल
भाई लगै छी कियै विचित्र?

सुनिते मातर फाटि गेलौं हम
रसफट्टू कलकतिया सन,
कहलौं विरहक ब्यथा जड़ाबए
जेठक ठेठ दुफरिया सन।

ओकरो ह्रदय करुण भेल सुनिते
कहलक किछु योजना बनाउ
पेट दर्द के करू बहन्ना 
पुन:घूरि कऽ सासुर जाउ।

लागल प्राण कतौ सँ पलटल
घुरती बस में बैसलौं,जाइ
पहुंचि गेलहुँ निशभेर राति में
धूआँ सन के मुँह लटकाय।

कनियाँ रहि रहि तेल मलै छल
पैर जतै छलि मिठगर सारि,
कबुला पाती सासु करै छलि
राई जमैनक नजरि उतारि।

कतेक दिन धरि ठकलौं सभकें
बीतल बियाहक तेसर मास,
ओझा कहिया धरि अछि छुट्टी?
अबिते बजलीह पितिया सासु।

ओही बात पर सारो पुछलक
कोन चाकरी अहाँ करी?
तीन मास सँ एतै रहै छी
एहन कोन भेटल नोकरी

लाजे बिदा भेलहुँ दिल्ली कऽ
कनियाँ कनियें भेली उदास,
कहलनि जाउ मोन में राखब
कैंचा बिनु नहि भोग विलास।

मैनेजर छल चंठ स्वभावक
कान पकड़ि कऽ देलक भगा,
दिल्लीसेटक लेवल उतरल
बेरोजगार बर देलक बना।

एम्हर ओम्हर नजरि गड़ौनें
ताकि रहल छी दोसर काज,
कनियाँ पुछती तऽ की कहबनि?
सोचिते हमरा होइयै लाज। 
आभा झा  के कलम सं


मिथिला क्रांति सन्देश ।। रचनाकार - रेवती रमण झा " रमण "

                   || मिथिला क्रान्ति सन्देश ||
                                        




                                     


रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "
mob - 09997313751




                                      

सोमवार, 30 जुलाई 2018

रमण दोहावली - रेवती रमण झा " रमण "

                                                                  || रमण दोहावली ||
                                       

1. "रमण" समय जब तक भला , तब तक राम रहीम ।
      बुरे  दिनन  का  मधु  बचन , लागे  कड़वा  नीम ।।

2. सदा  हीं  उत्तम   चाहिए   चास   वास  अरु  ग्रास ।
   "रमण" जो तीनो न मिले , तन मन धन का नाश ।।

3. बारी  -  बारी   जग  मुआ  ,  बारी  -  बारी    रोय ।
    अब बारी किसकी भई , " रमण " न जाने कोय ।।

4. "रमण" पला  जब  गाँव में , फिर  आया परदेश ।
     अब  परलोक  सिधारना ,  कौनो  अपना  देश ।।

5. धन  पे  नाचती  तिरिया  ,  नाचत  रूपहिं  यार ।
   " रमण "  ना  कोई  भार्या  ,  ना  कोई  भरतार ।।

6. प्रीतम  पानी  जात  एक , दोनों  प्यास  बुझात ।
   " रमण " राह को ढूँढ के , निडर होय चलि जात ।।

7. एक धरम, जो एकहिं पुरुष , एक ही नारी ठीक ।
    "रमण" पालिहै रीती जो , ज्यों गाडी की लीक ।।

8. नारी  नरक  तो  एक  है , पथ  भ्रष्टा  जो  होय ।
 "रमण" पुरुष एक नारि जँह , अनत स्वर्ग ना कोय ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751


बुधवार, 25 जुलाई 2018

बरसाती गीत- रचनाकार - रेवती रमण झा " रमण "

                         || बरसाती गीत ||
                                      

बरसत  बूँद  सघन -  घन - माला
विरहिन   विरह   जगाबय   ना ।।

लखि-घन श्याम उदित हिय होइछ
जीय भरमावय ना सखी हे जीय..
                                            बरसत......
छिटकत चारु  चपल चहुँ दामिनि
असह डेराबय ना सखीहे असह..
                                            बरसत......
यौवन  ज्योति नगर - जन ब्यापित
 नयन जेमावय ना , सखीहे नयन...
                                            बरसत......
"रमण"  कओन   अपराधे  माधव
मोहि सताबय ना , सखी हे मोहि
                                            बरसत......

रचयिता
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751

रविवार, 22 जुलाई 2018

रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा " रमण "

||रमण दोहावली ||


    1. आग  लगी  इस  झोपड़ी , बेसुध  हो  के  सोय ।
     "रमण" जगत बड़ बावला , न जानिहें क्या होय ।।

     2. "रमण"  गया  तो  आयेगा , धुनत  काहे  कपार ।
        परदादा    पोता    भया  ,  रंग - मंच   संसार ।।

    3. तेरा    धरम   कुबेर     है , देवन     का    भंडार ।
      "रमण" धर्म नारी सती , जाहि एकहिं भरतार ।।

    4. सौ   शत्रु   निन्दा  करे , संत  कृपा  एक  जाहि ।
      तारावलि सहस्त्र हो , "रमण" प्रवल शशि ताहि ।।

    5. निन्दा    जो    शत्रु    करे  ,  करे   बड़ाई   संत ।
     "रमण"  पलट  तू  नाहि  रे  ,  होगा  तेरा  अंत ।।

    6. खुद का भला न कर सका , का करिहें भगवान ।
      एक दिन भोग लगाय के , " रमण " न चाकर मान ।।

     7. आँख  मींच  के  करम  कर , मिलिहें  देर - सवेर ।
       उसके   घर   में   देर  है ,  "रमण"   नाहि   अंधेर ।।

     8. कोटि  यतन  कोई   करें , व्रत   पूजा   जप   योग ।
     "रमण"  कर्म  फल  निहित  है ,बांटे  कोइ  न  भोग ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 09997313751