हर-हर-खट-खट! फुसियांही के मेल! :-)
हर-हर-खट-खट! फुसियांही के मेल! ;)
बात हर्ख के ओ होयत जे अपन मूल सँ निकलत!
अपन संस्कृतिके ऊपर दुनिया के जे प्रेरित करत!
ओ कि जे बस देखादेखी दोसरक नंगटइ सिखलहुँ!
नारीके मर्यादा के बाजार में आम निलामी कयलहुँ!
एहनो नहि जे आधुनिकता के धार में नहि छै बहब!
कोना आइ इन्टरनेट के माध्यम बात कहलहुँ कहब!
अक्सर बेसीकाल मिथिला राज्य बिहार सँ अलगै छै!
तेलांगाना आ छत्तीसगढक तर्ज पर उतारय नकल छै!
देखियौ छुद्र राजनीति - इतिहासे के नोंचत आ पटकत!
अपना दम पर एको कोनियां काउनो नहि आबै फटकत!
बड़का बोली दम्भ सऽ भरल ब्राह्मण के छै झाड़ैत-मारैत!
ई जनितो जे मिथिला सदिखन ब्राह्मणहि हाथे झबरत!
कतबू करतै राजनीति कि चलतै एहि धरती पर ओकर!
एहि धरतीपर एकहि गप छै धर्म के सार हरदम ऊपर!
ई थीक तांत्रिक मिथिला भूमि एहिठाम उपजय विदेह!
याज्ञवल्क्य आ बाल्मीकि सम् त्यागी-तपी निःसंदेह!
नाम उच्च आ कान बुच्च के तर्ज पर खाली चमचम!
पाउडर फाड़ि बनाबय दही तहि पर भोजक कोन दम!
पोखैर गाछी सभटा बिकेलैय आब कि बचलौ डीह टा!
ताहू पर छौ नजैर गड़ल रे हरासंख कोढिया जैनपिट्टा!
सम्हर-सम्हर कर सत्यक लेखा जुनि जोखे झूठे ढेपा!
तौल-बनियां-तौल-भैर राति तों तौल ले अगिलो खेपा!
जातिवादी नारा के बल सऽ किछु नहि हेतौ रे मूढकूप!
आइयो दुनियाँ सीतारामके प्रतापे भजि ले वैह सुरभूप!
हरिः हरः!
रचना:-
प्रवीन नारायण चौधरी
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