dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

मैथिलि रंग मंच में महिला लेल आब उज्जवल भविष्य (रूपम )


मिथिलांचल टुडे प्रकाशित अनक 2 में - मैथिलि रंग मंच में महिला लेल आब उज्जवल भविष्य (रूपम ) सात बरख क उम्र सओं रंगमंच स जुडनिहार रूपम श्री नैन ने तिरपित भेल स घर-घर मे चर्चित भ चुकल छथि। 2009 मे रंगकर्मी प्रमिला झा नाट्य वृति प्राप्‍त केनिहारि रूपम पंचकोशी सहरसा क नाम आइ अपन अभिनय कए नित्‍य निखारबा मे लागल छथि। मध्‍यवर्गीय परिवार लेल रंगमंच आ मैथिली रंगमंच मे महिला क भविष्‍य पर राष्ट्रपति स सम्मानित रूपम क संग विस्‍तार स गप केलथि अछि पत्रकार नीलू कुमारी। प्रस्‍तुत अछि गपशपक किछु खास अंश प्रश्न – अपन संबंध मे किछु बताऊ?
उत्तर – सहरसाक एकटा मध्यमवर्गीय परिवार मे 10 मई 1988 मे हमर जन्म भेल, पिताजीक छाँव बचपने मे हमरा सबके माथ स उठि चुकल छल, माँ पोस-पालि कए पैघ केलक आई हम जे छी हुनके बदौलत। प्रश्न – रंगमंच स कोना जुड़लहूँ? उत्तर – बचपन स हमरा रंगमंच स बेसी लगाव छल, स्कूल कॉलेज मे हम डांस करैत रही, एहि क्रम मे एक बेर सुजीत जी हमर स देखलथि। एकरा बाद ओ हमर घर पर एलथि आ हमरा कहलथि-‘रूपम अहां इप्टा स जुडू, इ एकटा एहन सार्थक मंच अछि जेतए अहांक प्रतिभा कए केवल सराहल नहि जाएत अपितु एकटा नीक मंच सेहो भेटत। हुनक आश्वासन पर 1995 मे हम इप्टा, सहरसा स जुड़लहूँ। तकर बाद त जेना हमर सपना कए पंख लागि गेल आ सबहक आशीर्वाद स आइ हम एहि मुकाम पर छी। प्रश्न – एहि ठाम तक पहुंचबा मे कोन तरहक संघर्ष करए पडल? उत्तर – कॅरियर मे जतय तक पहुंचलहु अछि, हमर माँ क पर्याप्त सहयोग रहल। कहियो कोनो काज लेल ओ मना नहि केलथि। शुरूआत मे बड़ दिक्कत भेल, तरह-तरह कए उलहन सुनए पड़ल। लड़की भ कए कोना मंच पर अभिनय करत, इ सब कहैत रहल। मुदा आब जखन ओ हमरा एहि मुकाम पर देखैत छथि, त सब कए नीक लगैत छैन। प्रश्न-अभिनय क अलावा कोनो अन्य कैरियर सोचने रही? उत्तर – हम संगीत स प्रभाकर केने छी, रंगमंच क अलावा संगीत क साधना सेहो चलैत अछि, अगर हम रंगमंच स नहि जुड़ल रहितहुं त संगीत क क्षेत्र म रहितहुं। प्रश्न – अहाक नजरि मे मैथिली रंगमंचक की भविष्य अछि? उत्तर – मैथिली रंगमंच क भविष्य खास क महिला लेल आब उज्जवल बुझा रहल अछि। एहि चारि-पाँच साल मे मैथिली क जे ग्लोबलाइजेशन भेल अछि ओहि स एकर भविष्य पर कोनो तरह क शक नहि कैल जा सकैत अछि। मैथिली रंगमंच सेहो आब अंतररास्ट्रीय स्तर पर अपन उपस्थिति देखा रहल अछि। मैलोरंग, मिथिलालंगन, मीनाप, पंचकोशी आदि-आदि संस्‍था रंगमंच सब मैथिल प्रतिभागी क सहयोग क रहल अछि। प्रश्न – जीवन क कोनो अविस्मर्णीय क्षण जे अहा हमरा संग साझा करए चाहब। उत्तर – हमर जिनगीक सबस पैघ क्षण छल तरंग महोत्सव मे उत्कृष्ट नृत्य प्रस्तुति लेल प्रतिभा सिंह पाटिल स पुरस्कार लेब। ओना जखन ‘’नैन न तिरपित भेल’’ क पोस्टर समस्‍त बिहार मे लागल छल आ हमर सखी-सम्बन्धी सब फोन पर हमरा बधाई देने रहथि ओ समय हम आइ धरि नहि बिसरलहुं अछि। प्रश्न – अहांक पुरस्कार क सूची त बड पैघ अछि, किछु खास पुरस्कार क चर्चा करए चाहब? उत्तर – 2003 मे खगौल, पटना मे हमरा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री स सम्मानित कैल गेल अछि आ तरंग महोत्सव मे उत्कृष्ट नृत्यक लेल द्वितीय पुरस्कार रास्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल स भेटल। संगहि 2009 मे मैलोरंग स प्रमिला झा नाट्य वृति आदि भेटल। प्रश्न - नाटक क गप करब त अहंक सूचि ख़तम नै हाएत, किछु खास धारावाहिक वा नाटक केर चर्चा करए चाहब ? उत्तर - कनी हँसैत, सूचि ओतबो पैघ नै अछि मुदा नैन न तिरपित भेल स हमर कैरियर क मुकाम भेटल आ आई हम पटना, दिल्ली, कोलकता समेत कतेको मंच पर अपन अभिनय क प्रदर्शन कए छुकल छि, हमर प्रिय नाटक मे मधुश्रावणी, कनिया-पुतरा, आ पाँच पत्र अछि, ओना हमर प्रिय नाटककार महेंद्र मलंगिया जी छथि। प्रश्न – भविष्य मे कौन तरह क काज करब पसिन करब? उत्तर – जतय काज भेटत आ नीक काज भेटत, हम जरूर करै चाहब। ओ संगीत क्षेत्र हुए वा अभिनय क्षेत्र। प्रश्न – मिथिलांचल टुडे क ई अंक महिला विशेषांक अछि , एहन मे मिथिलानी लेल कोनो सन्देश। उत्तर – निश्चित रूपेण महिला सब स इ कहै चाहब जे जों अहां रंगमंच स जुड़ल छी त पूरा जी जान स जुड़ल रहू, समाज क परवाह जुनि करू, जखन अहां मुकाम पर पहुंच जाएब तखन वैह आलोचक जे आइ अहांक आलोचना क रहल अछि ओ काल्हि अहांक सराहना करत। मिथिलांचल टुडे स गप करबाक लेल बहुत बहुत धन्यवाद। अहूं कए बहुत-बहुत धन्यवाद। मिथिलांचल टुडे प्रगति करए सैह माँ भगवती स कामना।
नीलू कुमारी सहरसा , बिहार

मेवाड़ आ मालवाक सांझी लोककला : एक परि‍चय


           महि‍ला संस्कृति रक्षण केर संवाहि‍का छथि‍। ई परम्परा सनातनसँ शाश्वत अछि‍। संस्कृति ‍ अगर लोक संस्कृति‍ हो तँ महि‍ला लोकनि‍केँ लगभग एकाधि‍कार भऽ जाइत छन्हि‍। जइ कार्य, संस्कार, रीति‍ इत्यादि‍केँ शास्त्रीय परम्परा द्वारा महि‍ला लोकनि‍ नै कऽ पबैत छथि‍ तकरा लोकपरम्परा आ लोक वि‍धान द्वारा विस्तारसँ करैत छथि‍। मि‍थि‍ला संस्कृति ‍मे तुसारी, मधुश्रावणी, आम-महु बि‍आह, जटा-जटि‍न, बि‍आहक पश्चात् कोहबर घरमे सम्पादित अनेक दि‍नक वि‍धि‍-बेवहार एकर उदाहरण अछि‍। लोक परम्परा समन्वित परम्परा होइत अछि‍। एक वि‍धि‍क संग अनेक क्रि‍या-कलाप आ रचनात्मकता संलग्न रहैत अछि‍- पूजा पाठ, तंत्र-मंत्र, पि‍तृ आराधना, गीत-संगीत, जादू-टोना, वस्‍त्र वि‍न्‍यास, वि‍भि‍न्न कलाक प्रदर्शन इत्‍यादि‍। सभ आपसमे ताना बाना जकाँ जुटल। एक-दोसरक प्रति‍ समर्पित। एककेँ बि‍ना दोसरक सम्‍पादन असंभव।

          15 दि‍नक पि‍तृपक्ष एखने अर्थात् 15 अक्‍टुबर 2012क समाप्‍त भेल अछि‍। ऐ पन्‍द्रह दि‍नमे हमरा लोकनि‍ अपन समस्‍त स्‍वर्गवासी पि‍तृ एवं मातृकेँ स्‍मरण करैत हुनका लोकनि‍केँ तील-जलसँ तृप्‍त करैत छी। आवाह्न तर्पन आ पुन: जयबाक िनवेदन :
          ऊँ आगच्‍छन्‍तुमे पि‍त्र इमम्  ग्रहनन्‍तु जलाजलि‍म्।।
"हे पि‍त्र (मातृ) आऊ आ जलकेँ स्‍वीकार करू। आब अहाँ देवलोकमे छी। तँए हमरा लोकनि‍क कल्‍याण करू।
          पि‍तृ पक्षमे लगातार पन्‍द्रह दि‍न धरि‍ राजस्‍थानक मेवाड़ (अर्थात् उदयपुर, महासमद) आ मध्यप्रदेशक मालवा (उज्‍जैन, इन्‍दौर ग्‍वालि‍यर आदि‍ ) मे कुमारि‍ कन्‍या सभ सांझी पूजैत छथि‍। सांझीमे अनेक तरहक चि‍त्रकलाक आ वि‍म्‍बक िनर्माण करैत छथि‍, गीत गबैत छथि‍ आ अन्‍तत: सांझीकेँ जलकरमे भसा दैत छथि‍। सांझीक पूजा स्‍वर्गीया मातृ लोकनि‍क, आवाह्न आ कृतज्ञताक अर्पन मानल जा सकैत अछि‍।
          सांझीक पूजा आ प्रचलन ओना तँ राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, पश्चि‍मी  उत्तर प्रदेश, उतराखण्‍ड , उड़ीसा आ अपन मि‍थि‍लोमे कुनो ने कुनो रूपमे व्‍याप्‍त अछि‍। हरि‍याणामे ई सेहो बहुत उत्‍कृष्‍ठतासँ मनाएल जाइत अछि‍। सांझी केर अनेक नाम  यथा- सांझी, सांजी, संझ्या, संध्‍या, संधा, हांजी, हज्‍जा इत्‍यादिसँ जानल जाइत अछि‍।
          पि‍तृपक्षमे पन्‍द्रह दि‍न धरि‍ मेवाड़ आ मालवाक कुमारि‍ कन्‍या लोकनि‍ घरक बाहरी देबालपर गाएक गोबरसँ  आ माटि स   मोटगर लेप बना एक तरहक वर्गाकार आकृति‍ कऽ ओइपर वि‍भि‍न्न तरहक चि‍त्रांकनक ि‍नर्माण करैत छथि‍। संगे अनुष्‍ठान, गीत-नाद, पूजा-पाठ सेहो चलैत रहैत छैक। ओइ समैमे अगर उज्जैन शहरक सि‍ंहपुरा आदि‍ क्षेत्रमे जएब तँ लागत जेना कुनो कला ि‍दर्घाक  वीथिका मे आबि‍ गेल छी। कलाकृति‍केँ देखि‍ भाव-वि‍भोर भेने बि‍ना नै रहब। तेरहम दि‍न कि‍ला-कोटक ि‍नर्माण होइत छैक। कि‍ला कोटक अर्थ भेल कलाकेँ चारुदिस सँ राजमहलक कि‍ला जकाँ गढ़ बना देनाइ। अन्‍तत: पन्‍द्रहम दि‍न सांझीक पूरा रूप प्रसस्‍त भऽ जाइत छैक। पन्‍द्रहमे दि‍नक सांझमे तमाम चि‍त्रकेँ खुरेचि‍ कुमारि‍ कन्‍या, नव ब्‍याहल लड़की (जे बि‍आहक प्रथम वर्षमे सांझी देवीक उद्यापन करैत छथि‍।) समस्‍त खुरचल सामग्रीकेँ लऽ पोखरि‍ धार, नदी आदि‍मे वि‍सर्जन कऽ दैत छथि‍। वि‍सर्जनक दृश्‍य बड्ड भावमय होइत छैक। लड़की सभ गबैत, नचैत नव वस्‍त्रसँ सजल माधुर्यक वातावरण बनेने रहैत छथि‍।

          सांझीमे प्रयुक्त वि‍म्‍ब आ रूप सांझी लोककथाक आधारपर होइत छैक। गोबरसँ नीप बेस बना ओइपर फुलक पंखुरी, चमकम कागत आदि‍सँ चि‍त्र बनाएल जाइत छैक। सांक्षी देवीक गीत गएल जाइत छैक। कि‍छु चि‍त्र एहनो होइत छैक जे नव ब्‍याहताकेँ पारि‍वारि‍क जीवनक आवश्‍यकताकेँ सूचि‍त अथबा प्रदर्शित करैत छैक। ओइ श्रेणीमे टी.वी., फ्रीज, मोटर बाईक, गैसक चुल्हा आ सि‍लि‍ण्‍डर इत्‍यादि‍ सेहो मनोहारी ढंगसँ चि‍त्रि‍त कएल भेट जाएत।

सांझी के छलीह? ऐ सम्‍बन्‍धमे अनेक तरहक दंत कथा छैक। जेना कि‍ सांझी दुर्गाक एक रूप छथि‍; ब्रह्माक पुत्री छथि‍; सांझी पार्वती अर्थात शि‍वक अर्धांगि‍नी छथि‍; सांझी वैदि‍क देवी छथि‍ जि‍नकर उपासना संध्‍या  अर्थात् सांझमे कएल जाइत अछि‍; सांझी लक्ष्‍मी नारायणक प्रति‍रूप छथि‍; सांझी नवदुर्गाक प्रति‍मूर्ति छथि‍; सांझी बृन्दावन धामक देवी छथि‍; सांझी राजस्‍थानक संगानेरक कन्‍याक छथि‍ जि‍नकर बि‍आह अजमेर छलन्‍हि‍; सांझी कुमारि‍ कन्‍या–सबहक अराध्‍य आ प्रीय देवी छथि‍, सांझी राजस्‍थानक बगड़ावत क्षेत्रमे लोक आख्‍यायनमे प्रशंसि‍त देवी थीकीह आ अन्‍तत: सांझी सूर्य देवक  अर्धांगि‍नीक रूपमे सेहो जानल जाइत छथि‍।
          चि‍त्रि‍त चि‍त्रांकन आ मनुक्‍खक आकृति‍सँ एना ज्ञात होइत अछि‍ जे सांझी एक ब्‍याहल कन्‍या छलीह। जिनकर वैवाहक जीवन सफल नै रहलनि‍। अनमेल बि‍आह छलन्‍हि‍। पति‍, सासु, समाज सभ शोषण केलकन्‍हि‍।
          कुमारि  कन्‍या सभ भोरे उठि‍ ताजा गोबर चूनि‍ फूल, पत्तीक बेवस्‍था कऽ सांझी कलाक  निर्माण  मे लागि‍ जाइत छथि‍। देबाल एक क्षेत्रकेँ वर्गाकार आकृति‍केँ गोबरक आ  माटिक  लेपसँ भरल जाइत अछि‍। परम्‍परा आ व रूचि‍केँ मि‍श्रण कऽ मोटीफ केर निर्माण होइत अछि‍। हरेक कन्‍याक कल्‍पनाशीलता भि‍न्न होइत छन्‍हि‍। माय, पि‍ति‍याइन सभ सेहो मदति‍ करैत छन्‍हि‍ जइसँ सांझी रमणगर आ सौन्‍दर्यसँ परि‍पूर्ण भऽ जाइक। बनेबाक सामग्रीक रूपमे गोबर, फूल, पात, धास, मक्कैक बालि‍, रंगारंग कागज, टीन फ्वाइल, कौड़ी, बांसक -बत्ती, सि‍न्‍दुर कुमकुम इत्‍यादि‍क प्रयोग सबतरि‍ भेटत। मालवा अर्थात उज्‍जैन दि‍स गुल-तेवारी, गेन्‍दा लाल, चमेली, बरमासा फूल जेकरा सदा सुहागन सेहो कहल जाइत छैक केर प्रयोग होइत छैक। गुलाबी, उज्‍जर, पीकीस ब्राउन, आदि‍ रंगक वि‍शेष स्‍थान होइत छैक।

सर्वप्रथम आंगुरसँ प्रथम परतक निर्माण   कैल जाइत छैक। जकरा गोहाली कहल जाइत छैक। ऐमे वर्गाकार क्षेत्र अथवा अष्‍टकारक निर्माण गोबर आ माटि‍क मोट लेपसँ देबालपर कएल जाइत छैक। प्रथम तीन आंगुरक सहायतासँ फीगरक निर्माण केलाक बाद फुल, पात, घास, आदि‍सँ साटि‍ फीगरकेँ सजाएल जाइत छैक। प्रथम दिनक  डि‍जाइनकेँ दोसर दि‍न उखाड़ि‍ देल जाइत छैक। प्रत्‍येक ति‍थि‍क अनुसारे मोटीफक  निर्माण कएल जाइत छैक। राजस्‍थानक एक  गाममे प्रयुक्त तेरह दि‍नक सांझी चि‍त्रण हमरा एना भेटल-
एकम (पहि‍ल)- वन्‍दरावल
बीज (दोसर)- बीजना (पंखा)
तीज (तेसर दि‍न)- तीन, ति‍वाड़ी (तीन खि‍ड़की)
चौठ (चारि‍म दि‍न)- चौपड़
पंचम (पॉचम दि‍न)- पांच कुवारे (पाँच कुमार बालक)
छठम (छठम दि‍न)- फूल छड़ी (फूलक डंडा)
सातम (सातम दि‍न)- साति‍या (स्‍वास्‍ति‍क)
आठम (आठम दि‍न)- अष्‍टकोणी बाजोट (बैसैबला टूल)
नम (नवम दि‍न)- डोकरा-डोकरी (बुढ़आ बुढ़ी)
दशम (दसम दि‍न)- दस पकवान (दस तरहक ब्‍यंजन)
ग्‍यारस (ग्‍यारहम दि‍न)- जनेऊ
बारस (बारहम दि‍न)- सीड़ी (सीढ़ी)
तेरस (तेरहम दि‍न)- कोंट (ऐ दि‍नक सांझीमे सभ दि‍नमे युक्‍त चि‍त्रक ि‍नर्माण कएल जाइत छैक। एकरा अलाबे आरो बहुत रास बि‍म्‍वक  निर्माण  होइत छैक।)

सांझी कलाक रूप आ ओकर अर्थ लोक कलामे आश्चर्यजनक ज्ञान आ परम्‍पराक समावेश होइत छैक। कुनो चीज निरर्थक  नै भेटत। जेना कि‍ कतौ-कतौ सातम दि‍न हत्‍यारी-हतम केर रूपक वि‍न्‍यास करबाक परम्‍परा छैक। तइ दि‍न ओइ आत्माक स्‍मरणमे रूपकेँ गढ़ल जाइत छैक जि‍नकर या तँ हत्‍या भऽ गेलन्‍हि‍ या ओ स्‍वयं आत्‍महत्‍या कऽ लेलन्‍हि‍। नवम दि‍नमे डाकरि‍या नम बनैत छैक। ओइ दि‍न बुढ़ आ बुढीक चि‍त्रण होइत छैक जे नवमी तिथि में अई जीवनकेँ ति‍याग केलन्‍हि‍। बीजना या बीजनी खजुर पंखाकेँ कहल जाइत छैक। तेसर दि‍न ति‍वाड़ी अर्थात तीनटा खि‍ड़कीक निर्माण  कएल जाइत छैक। चौपड़ खेलक चि‍त्रण चारि‍म दि‍न कएल जाइत छैक। कतौ-कतौ छठम ति‍थमे फूल छाबरी अर्थात् फुलडालीक निर्माण  करबाक परम्‍परा भेटत। सति‍या अथवा हति‍या स्‍वास्‍ति‍ककेँ कहल जाइत छैक। एकर निर्माण  सामान्‍यतया सातम दि‍न कएल जाइत दैक। अठकली फूलक निर्माण आठम दि‍न कएल जाइत छैक। कतौ-कतौ नवम ति‍थि‍मे नंगटा-नंगटी (वाद्य यंत्र) रचना सेहो कएल जाइत छैक।

लोक परम्‍परा शास्‍त्रीय परम्‍परामे सेहो प्रयुक्‍त कएल जाइत छैक। राजस्‍थानक श्रीनाथ जीक मंदि‍रमे मुर्तिक पाछाँ पि‍छवाइ कला आ केराक पातपर सांझी बनैत छैक। एकर दोसर ठाम जलमे सांझी बनैत ैछक। वृन्‍दावनमे फर्शपर रंगोलीक रूपमे अनेक तरहक रंग आ चाउरक आंटाक प्रयोगसँ कलात्‍मक सांझी राधा आ कृष्‍णक प्रेमकथा आ भक्‍ति‍केँ स्‍मरण करबाक अप्रतीम कलाक रूपमे बनाएल जाइत छैक।
बहुत तँ जानकारी नै अछि‍ परन्‍तु बुझना एना जाइत अछि‍ जे मि‍थि‍लामे सांझ पूजक परम्‍परा आ कुमारि‍ कन्‍या सभ द्वारे तुसारी  पूजन सांझीक परम्‍पराक एक रूप अछि‍। नेपाल आ उत्तराखण्‍डमे सेहो कि‍छु एहन परम्‍पराक वि‍धान छैक।

एक दि‍न राजस्‍थानक उदयपुरसँ हल्‍दी धाटी घूमए लेल गेल रही। ओतए केर सांझी स्‍थानीय फूलक सहायतासँ बनाएल जाइत छैक। आ ओइमे राधा-कृष्‍णक प्रेमक प्रबलता दृष्‍टि‍गोचर भक्‍ति‍-भावसँ कलात्‍मक रूपे होइत छैक। फूलक एहेन वि‍न्‍यास अन्‍यत्र असंभव। ओना लोककलामे कून नीक आ कोन खराप ई कहब असंभव मुदा मालवा  अबि‍ते मातर सांझीक कलासँ कुनो बटोही मंत्र मुग्‍ध भऽ जाइत अछि‍। ओतए केर नायि‍का केर आँखि‍ अतेक कतरगर  जे मोन करत दखि‍ते रही। जेहने कि‍शोरी तहने चि‍त्रकला। मोन करत केकर प्रशंसा करी चि‍त्रक अथवा चि‍त्र बनेनि‍हारि‍केँ?
राजस्‍थानमे एक कथा पता लागल। संझा छलीह सांवरि‍ आ सामान्‍य गरीब घरक कन्‍या। हुनकर बि‍आह कि‍छु खाश परि‍स्‍थि‍ति‍मे एकटा नांगर ब्रह्मण जेकर नाम खोड़या ब्राह्मण रहैक- करा देल गेलन्‍हि‍। बेचारी संझाकेँ सासुरमे बड्ड कष्‍ट भेलन्‍हि‍। पति‍ कहि‍यो हुनकर भावनाकेँ सम्‍मान नै देलकन्‍हि‍। नैहरमे जनम हेबाक तुरंत बाद माय मरि‍ गेलथि‍न्‍ह। कष्‍टेमे जनम भेलनि‍, वि‍कट स्‍थि‍ति‍मे बि‍आह भेलन्‍हि‍ आ कष्‍टेमे मरि‍ गेलीह सांझा। हुनका मरला उत्तर दैव लोकमे स्‍थान भेटलनि‍। आ जे कुमारि‍ कन्‍या श्राद्ध पक्षमे हुनकर तेरहसँ पन्‍द्रह दि‍न अराधना करतीह ति‍नकर वैवाहि‍क जीवन सफल रहतैक। अही तरहक लोक मान्‍यता ओइ क्षेत्रमे छैक।

मि‍थि‍लाक सामा-चकेबा पाबनि‍ जकाँ मालवामे सांझीक भाइ-बहि‍नक सम्‍बन्‍धकेँ मधुर बनेबैबला लोक-उत्‍सव मानल जाइत छैक। लड़की सभ अपन बीराजी (भैय्या)क लेल मंगल कामना करैत छथि‍। जे चीज नै भेटैत छन्‍हि‍ तइ लेल भायसँ नि‍वेदन कऽ ओइ चीजकेँ मंगा संझाक नीक जकाँ  निर्माण , पूजा-पाठ करैत छथि‍।
अन्‍तत: यएह कहल जा सकैत अछि‍ जे सांझी लोक परम्‍पराक एक अनुपम उदाहरण अछि‍. अहेन उदाहरण  जइमे चि‍त्रकला, नृत्‍यकला, संगीतकला, वस्‍तुकला आदि‍क सम्‍न्‍वि‍त समावेश भेटत। ऐ तरहक अनुपम लोक कलाक रक्षण भेनाइ अनि‍वार्य।


  डॉ. कैलाश कुमार मि‍श्र 
 प्रधान संपादक - मिथिलांचल टुडे 


विदेह मैथिली लघुकथा

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

मैथिली रंग-मंच पर महिलाक स्थिति

मैथिली रंगमंच पर महिलाक स्थिति 


मैथिली रंग-मंच पर महिलाक स्थिति पहिने से बेहतर भेल अछि, मुदा एखनो एकरा बेहतर नहि कहल जा सकैत अछि। मैथिली रंगमंच आइ अपन उन्‍नतिक बाट पर अछि। मैथिली नाटकक मंचन एकटा काल अंतराल मे देखबा लेल भेट रहल अछि। पुरान डीह जरूर नष्‍ट बा कमजोर भ गेल, मुदा नवका दलान अपन भूमिका स मैथिली नाटकक भविष्‍य कए प्रकाशवान केने अछि। एहन मे मैथिली नाटक मे महिला क भागीदारी आ योगदान पर चर्च आवश्‍यक भ गेल अछि। आइ जेना आन भाषाक नाटक मे महिला क भागीदारी देखबा मे भेट रहल अछि, ओहि अनुपात मे मैथिली मंच पर महिला क उपस्थिति एखनो बहुत कम अछि। किछु महिला जे मंच तक पहुंचलथि अछि ओ टीवी आ सिनेमा दिस बेसी सक्रिय भ गेल छथि। नव कलाकार कए सेहो टीवी चैनल बझेबा मे लागल रहैत अछि, एहन मे मैथिली नाटक नीक नवोदित कलाकार क सदिखन बाट तकैत आयल अछि आ एखनो ताकि रहल अछि। - नीलू कुमारी ( विशेष संवाददाता, मिथिलांचल टुडे )


किया नहि अछि नीक स्थिति :
 महिलाक स्थिति त अन्यान्यभाषक रंगमंच पर सेहो नीक नहि अछि मुदा मैथिली सबस पाछु अछि। अन्यान्य भाषक महिलाकर्मी द्वेष भावना स ऊपर उठि समूह क संग काज करैत आगाँ बढैत रहलीह ताहि लेल हुनकर स्थिति मैथिली स नीक अछि। मिथिला मे जे महिला हिम्मत क कए एक्को डेग बढाबैत छथि त आन सब हुनका पकैड़ि कए दू डेग पांछा कए दैत अछि। समूह भावनाक सर्वथा आभाव त अछि संगहि सामाजिक प्रतारणा आ उलहन हुनकर मनोबल कए आर तोड़ि कए राखि दैत अछि। मैथिली रंगमंच पर महिला क उपस्थिति तखने बढत जखन महिला व्यक्तिगत स्वार्थ स ऊपर उठि समूह भावना मे काज करैत आ हुनकर घरक लोक सब आ समाज सेहो हुनकर एही काज कए सराहना करत।
नाटक मे मिथिलानी : मैथिली रंगमंच पर महिला क आधारित कतेको नाटक लिखल गेल आ मंचन कैल गेल मुदा महिलाक स्थिति मे कोनो सुधार नहि क सकल। फेर चाहे ओ 1905 मे जीवन झाक लिखल ‘सुन्दर संयोग’ हो वा गोविन्द झाक बसात, कनिया-पुतरा, मधुयामिनी या सातम चरित्र, ओ फेर जगदीश प्रसाद मंडलक लिखल ‘मिथिलाक बेटी’ हो वा झामेलियाक बियाह, बेचन ठाकुर क बेटीक अपमान वा छिनारदेवी हो, आनंद झाक धधायत नबकी कनियाक लहास, सबटा मे महिलाक चरित्र कए केंद्र मे रखाल गेल अछि। बहुत रास नाटक क मंचन सेहो भेल छल मुदा महिलाक कमी क कारण कतेक नाटक मे महिला कलाकार क भूमिका पुरुष केलथि। मुदा समय क संग किछु माहौल बदलल आ मैथिली रंगमंच पर महिलाक खगता कम होइत गेल।

निर्देशन मे सेहो :
 मैथिली रंगमंच पर महिलाक निरंतरता लेल रंगमंचक निर्देशक सेहो महती भूमिका निभा रहल छथि। ओ नहि केवल महिलाक रंगमंचक सकारात्मक पक्ष स अवगत करा रहल छथि बल्कि हुनकर प्रतिभा कए बुझैत हुनकर भीतरक कलाकार कए सेहो जगा रहल छथि। ओना रंगमंच पर जे महिला स्थिति आइ सकारात्‍मक रूप स बढल अछि तहि मे सबस बेसी योगदान निर्देशक सब कए जाइत अछि। प्रकाश झा सन किछु निर्देशक समाज स लड़ि कए उलहन उपराग सुनि कए रंगमंच स महिला कए जोडि रहल छथि। एही कड़ी मे श्‍याम भाष्‍कर, संजयजी, अक्‍कू, बेचन ठाकुर आदि निर्देशक क नाम सेहो प्रमुखता स लेल जा सकैत अछि। इ सब नित-प्रतिदिन महिला कलाकार कए बढ़ावा द रहल छथि। आइ महिलाक रंगमंच स सिनेमा दिस झुकाव एहि निर्देशक सबहक सबस पैघ सफलता आ चिंता दूनू अछि।
मैथिली रंगमंच पर महिलाक : एहि संबंध मे एखन धरि कोनो तथ्य परक सूचना त नहि अछि मुदा वरीष्ठ रंगकर्मी आ साहित्यकार विभूति आनन्द लिखैत छथि जे हुनकर गाम शिवनगर, जिला मधुबनी मे पहिल बेर 25 अक्टूबर, 1956 मे एकटा मैथिली नाटक महाराणा प्रताप क मंचन भेल छल, जाही मे दूटा मैथिल महिला कलाकार मंच पर उतरल छलीह। सोनादाइ आ सुधा कण्ठ नामक महिला मैथिली रंगमंचक इतिहास कए एकटा नव आयाम देलथि। मैथिली रंगमंच पर महिलाक ई संभवत: पहिल पदार्पण छल। ओकर बाद 1958 मे सुभद्रा झा मैथिली रंगमंचक इतिहास मे एकटा सशक्त हस्ताक्षर भेलीह जे बाद मे जा कए मीलक पाथर साबित भेलीह। ओना त भंगिमा आ अरिपण आदि रंगमंच पर अनके महिला कलाकार उपस्थित भेलीह, जाही मे प्रेमलता मिश्र ‘प्रेम’ सर्वाधिक उल्लेखनीय छथि। कलकत्ता मे सेहो अनेक बेर कतेक महिला कलाकार एलीह, कतेको त मैथिल नहिंयो रहैत मैथिली सीखी रंगमंच पर एलीह आ हुनका देखि बहुतरास महिलाक झुकाव एही दिशा मे भेल आ हुनके सबहक प्रयास स एही शीर्ष पर पहुंचलनि। आइ मैथिली रंगमंच महिलाक उपस्थिति स भरल पुरल अछि आ दिन दूना राति चौगुना, उतरोत्तर वृद्धि कए रहल अछि।
सामाजिक परंपरा रोकि रहल अछि बाट : मिथिला मे महिलाक अर्थ होएत अछि एक हाथ घोघ दोसर हाथ बच्‍चाक आंगुर। एहन स्त्री जे उम्र धरि अपन घरक चौखट नहि नांघने होए। एक त मिथिला मे स्त्रीक लेल कतेक सामाजिक धारणा आ दोसर नारीक प्रति पूर्वाग्रह हुनका अपन चौखट स पार नहि आबी दैत छैक दोसर सामाजिक उलहन आ अनुराग स ग्रसित भ मन भेला पर सेहो नहि आबि सकैत अछि। अखनो कतेक रास मिथिलानी प्रतिभा रहितो जे अपन घरक चौखट नहि नांघि पबैत अछि तकर सबसे पैघ कारण अछि हमर संस्कार आ सामजिक बंधन क देखावा। मुदा तखनो बदलैत जमानाक संग मिथिला बदलि रहल अछि आ मिथिलानी आब सेहो सशक्त भ रहल छथि। आब ओ नहि खालि अपन घरक चौखट नांघि कए सार्वजानिक मंच पर आबि रहल छथि बल्कि मंच पर स्थापित सेहो भ रहल छथि।
की अछि संभावना : संभावना क सवाल पर ढेर रास मिथिलानी जे मैथिली रंगमंच स जुडल छथि एक स्वर मे कहैत छथि जे “मैथिली रंगमंचक पर महिलाक स्थिति आब सुदृढ़ अछि आ दिन प्रतिदिन एही मे उतरोत्तर विकास भ रहल अछि। मिथिलानी आब रंगमंच स ऊपर उठि सिनेमा मे सेहो अपन भविष्य बना रहल छथि। मुदा ई मैथिली रंगमंचक दुर्भाग्य अछि जे एखन धरि महिला कलाकार पूर्ण रूप स व्यावसायिक रंगमंच क हिस्‍सा नहि भ सकलथि अछि। जे हिनकर विकासक क्रम मे सबसे पैघ रोड़ा अछि। कोनो कलाकारक स्थिति तखने सुधरत जेखन ओ व्यावसायिक होएत। रंगमंच पर खाली फ़ोकट क मनोरंजन आ समय बितेबाक साधन मात्र बुझला स कलाकारक विकास कखनो नहि होएत। संगठन क संग निर्देशक सब कए सेहो एही मे सहयोग करबाक चाही। मैथिलानी तखने आन भाषा-भाषाई रंगमंच संग डेग स डेग मिला कए चलि सकतीह अछि जखन ओ व्यावसायीकरण क हिस्‍सा बनतीह।
( मिथिलांचल  टुडे प्रकाशित  अंक  2  में )
भवदीय:-
नीलू कुमारी ( विशेष संवाददाता, मिथिलांचल टुडे )

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

शुरु भेल सामाचकेवा पावनि

सहरसा : भाई बहिनक स्नेह आ पति पत्‍‌नीक स्वधर्म निर्वहन सऽ जुड़ल समाचकेवा पर्व मिथिला में शुरू भऽ गेल हँ।मंगलदिन सऽ शुरू भेल एहि पर्व कऽ लऽ कऽ सांझ होइत देरी गामक घर आंगन में गीतनाद शुरू भऽ जाइत अछि।लगभग एक सप्ताह पूजाक बाद कार्तिक पूर्णिमाक दिन सामाक विसर्जन कैल जाओत।पंडित मोहन कांत झाक अनुसार पदम पुराण में सूत सोनक संवादके रूप में सामाचकेवा कथाक उल्लेख अछि।हुनक अनुसार भगवान श्री कृष्ण अपन बेटी सामा के वृन्दावण लग चुड़क द्वारा झूठ शिकायत कैल जयबा पर श्रापित कैल जाय केर बात कहल गेल अछि।भगवान अपन बेटी के पक्षी बनि कऽ वृन्दावनक आस पास विचरय के श्राप दऽ देलैथ।एकर जानकारी भेटलाक बाद हुनक पति चारूवत्र सेहो भगवान शंकरक पूजा कऽ पक्षी बनय केर वरदान प्राप्त केलक।इ जानकारी जखन सामाक भाई साम्ब के भेटल तऽ ओ भगवान विष्णुक आराधना कऽ अपन बहिन आ बहनोई के पक्षी सऽ मनुष्य रूप देबाक वरदान प्राप्त केलक।एहि कारण सऽ समाचकेवा पर्व मनाओल जाइत अछि।एहि पर्व में झूठ शिकायत करबाक कारणे चूड़क केर अग्निदहन कैल जाइत अछि ओतय मिट्टी केर सामा,साम्ब,सप्तऋषि आदि बना कऽ पूजा कैल जाइत अछि।

बुधवार, 7 नवंबर 2012

गजल


करेजक बात नै कहियो बनल एतय
कियो सुनलक कहाँ मोनक कहल एतय

सुखायल गाछकेँ पटबैसँ की हेतै
फरत कोना जखन गाछे जरल एतय

हँसी कीनैत रहलौं सदिखने ऐठाँ
लए छी हम नुका आत्मा मरल एतय

लिखलकै भाग्य बिधि सबहक अलग कलमसँ
कपारक गप कियो नै पढि सकल एतय

गडै पर शूल "ओम"क आह नै निकलै
भऽ गेलौं सुन्न काँटे टा गडल एतय
बहरे-हजज
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) - ३ बेर प्रत्येक पाँतिमे

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/ २ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल -ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापतिक जीवनपर आधारित "उगना रे" पर कथक नृत्यांगना शोभना नारायणक नृत्य लोककेँ मंत्रमुग्ध केलक/ ३ नवम्बरकेँ मैथिलीमे ब्राह्मणवाद, ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापति आ मैथिलीमे प्रेमक गीतपर भेल बहस

-समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/

-२ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल -ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापतिक जीवनपर आधारित "उगना रे" पर कथक नृत्यांगना शोभना नारायणक नृत्य लोककेँ मंत्रमुग्ध केलक

 - ३ नवम्बरकेँ मैथिलीमे ब्राह्मणवाद, ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापति आ मैथिलीमे प्रेमक गीतपर भेल बहस -बहसमे भाग लेलनि उदय नारायण सिंह नचिकेता, देवशंकर नवीन, विभा रानी आ गजेन्द्र ठाकुर; आ मोडेरेटर रहथि अरविन्द दास -आकाशवाणी दरभंगा, हिन्दी अखबार सभक दरभंगा संस्करण, सी.आइ.आइ.एल. , साहित्य अकादेमी, नेशनल बुक ट्रस्ट आ अंतिका- मिथिला दर्शन, जखन-तखन, विद्यापतिकेँ पाग पहिरा कऽ विद्यापति पर्व केनिहार चेतना समितिक पत्रिका घर बाहर, झारखण्ड सनेस आदिक मैथिली साहित्यकेँ ब्राह्मणवादी बनेबाक प्रयासक विरुद्ध गएर ब्राह्मणवादी समानान्तर धाराक चर्च गजेन्द्र ठाकुर द्वारा भेल भेल -ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण विद्यापति आ ज्योतिरीश्वरक पश्चात बला कट्टर संस्कृत-अवहट्ठ बला विद्यापतिक बीच अन्तर गजेन्द्र ठाकुर रेखांकित केलन्हि ऐ सँ पहिने हिनी आ मणुपुरीक कार्यक्रम सेहो भेल

_MAITHILI -LOVE's OWN LANGUAGE03 NOVEMBER 2012
-समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/




UGNA RE BY SHOBHNA NARAYAN 02 NOVEMBER 2012
-समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/ २ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल