dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

शनिवार, 31 दिसंबर 2011


गजल@प्रभात राय भट्ट

                           गजल
नव वर्षक आगमन के स्वागत करैछै दुनिया 
नव नव दिव्यजोती सं जगमग करैछै दुनिया
 
विगतके दू:खद सुखद क्षण छुईटगेल पछा 
नव वर्षमें सुख समृद्धि  कामना करैछै दुनिया 
 
शुभ-प्रभातक लाली सं पुलकित अछी जन जन
नव वर्षक स्वागत में नाच गान करैछै दुनिया
 
नव वर्ष में नव काज करैएला आतुरछै सब
शुभ काम काजक शुभारम्भ में लागलछै दुनिया
 
नव वर्षक वेला में लागल हर्ष उल्लासक मेला
मुश्की मुश्की मधुर वाणी बोली रहलछै दुनिया
 
जन जन छै आतुर नव नव सुमार्गक खोजमे 
स्वर्णिम भाग्य निर्माणक अनुष्ठान करैछै दुनिया
 
धन धान्य ऐश्वर्य सुख प्राप्ति होएत नव वर्षमे
आशाक संग नव वर्षक स्वागत करैछै दुनिया
.............................वर्ण-१९.......................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

@प्रभात राय भट्ट

                      गजल
नव वर्षक नव उर्जा आगमन भS गेल अछी
दू:खद सुखद समय पाछू छुईटगेल अछी 

इर्ष्या द्दोष लोभ लालच आल्श्य कय त्याग करी
रोग  शोक  ब्यग्र  ब्याधा  सभटा  पडागेल अछी

नव  प्रभातक  संग  नव कार्य शुभारम्भ करी
नव वर्षक नवका  सूर्य  उदय   भS गेल अछी  

अशुभ छोड़ी शुभ मार्ग चलबाक संकल्प करी
दिव्यज्योति सभक मोन में जागृत भगेल अछी

निरर्थक अप्पन उर्जाशक्ति के ह्रास नहीं करी
शुख समृद्धि प्राप्तिक मार्ग प्रसस्त भS गेल अछी 

सुमधुर वाणी सं सबहक मोन जीतल करी
सामाजिक सहिंष्णुता आवश्यकता भS गेल अछी
.............................वर्ण:-१८ ...........................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट 

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

रूबाइ


हमर करेज संगे खेलाईत रहलौं, इ कोन खेल अछि।
मिलन अहाँ सँ हमर खुजल आँखिक सपना भेल अछि।
जाडक रौद कहै छलौं हमरा, इ एखन धरि मोन अछि,
अनचिन्हार छी आब, अहाँ लग लोकक ठेलम-ठेल अछि।

गजल


मोनक मोन सँ चलि केँ केहेन हाल केने छी।
प्रेम मे अपन जिनगी हम बेहाल केने छी।

करेज हमर छल उद्गम प्रेमक गंगा केँ,
विरह-नोर मे सानि करेज केँ थाल केने छी।

जकर प्रेम-ताल पर हम नाचैत रहलौं,
हमरा वैह कहै छै एना किया ताल केने छी।

एके बेर हरि केँ प्राण, झमेला खतम करू,
जे बेर-बेर आँखिक छुरी सँ हलाल केने छी।

अहाँक मातल चालि सँ "ओम"क मोन मतेलै,
ऐ मे दोख हमर की, अहाँ आँखि लाल केने छी।
---------------- वर्ण १७ ------------------

गजल@प्रभात राय भट्ट

                              गजल
लुईटलेलक देसक माल, खाली पडल खजाना छै
देखू नेता सबहक कमाल,भ्रष्टाचारके जमाना छै 

विन टाका रुपैया देने भैया,हएतो नै  कोनो काज रे
बातक बातमे घुस मांगै छै,घूसखोरीके जमाना छै 

टुईटगेल इमानक ताला,करै छै सभ घोटाला रे
धर्म इमानक बात नै पूछ,बेईमानक जमाना छै 

दिन दहाड़े चौक चौराहा,होईत छै बम धमाका रे 
बेकसूर मारल जाइत छै,देखही केहन जमाना छै 

लूटपाट में लागल छै,देसक  सभटा राजनेता रे 
काला धन सं भरल पडल,स्वीश बैंक के खजाना छै 

अन्न विनु मरै छै देसक जनता,नेता छै वेगाना रे 
गरीबक खून पसीना सं भरल, एकर खजाना छै

नेता मंत्री हाकिम कर्मचारी,सभ छै भ्रष्टाचारी रे 
गरीबक शोषण सभ करैछै,अत्याचारीके जमाना छै 

भ्रष्टाचारीके दंभ देख "प्रभात" भS गेल छै तंग रे
भ्रष्टतंत्र में लिप्त छै सरकार,भ्रष्टाचारीके जमाना छै
...........................वर्ण:-२०.................................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

गजल


टुकडी-टुकडी मे जिनगी बीताबैत रहलौं।
सुनलक नै कियो जे बेथा सुनाबैत रहलौं।

अपन आ आनक भेद इ दुनिया बुझौलक,
इ भेद सदिखन मोन केँ बुझाबैत रहलौं।

ऐ मोन मे पजरल आगि धधकैत रहल,
हम पेट मे लागल आगि मिझाबैत रहलौं।

अपन अटारी सभ सँ सुन्नर बनाबै लेल,
कोन-कोन नै जोगाड हम लगाबैत रहलौं।

दुनियाक खेला मे "ओम" बन' चाहल मदारी,
बनि गेलौं जमूरा सभ केँ रीझाबैत रहलौं।
-------------- वर्ण १७ ---------------

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

गजल
प्रितक बगियामे फुल खिलैएलौं
मोनमे सुन्दर सपना सजैएलौं  

प्रेमक प्रतिविम्ब पैर पंख लगा
क्षितिजमें शीशमहल बनैएलौं

पंख टूईटगेल हमर क्षणमे
दर्द ब्यथा सं हम छटपटैएलौं

सपना  चकनाचूर  होईत देख
भाव विह्वल चीतकार कैएलौं  

कोमल फुल नै भS सकल अप्पन
कांटमें प्रेमक  अंकुरण कैएलौं

कहियो  तेह  प्रेमक कोढ़ी खीलत
कांटक चुभन हम सहैत  गेलौं
...............वर्ण१३ .....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

रविवार, 25 दिसंबर 2011


गजल@प्रभात राय भट्ट

                            गजल
जगमे आब नाम धरी नहीं रहिगेल  इन्सान
मानवताकें  बिसरल  मनाब  भS गेल सैतान 

स्वार्थलोलुप्ता  केर  कारन  अप्पनो बनल आन
जगमे नहीं कियो ककरो रहिगेल भगवान

धन  सम्पतिक खातिर लैए भाईक भाई प्राण
चंद  रुपैया  टाका  खातिर भाई भS गेल सैतान 

अप्पने सुखमे आन्हर अछि लोग अहिठाम
अप्पन बनल अंजान दोस्त भS गेल बेईमान

मनुख बेचैय मनुख, मनुख लगबैय दाम
इज्जत बिकल,लाज बिकल, बिकगेल सम्मान 

अधर्म  पाप सैतानक  करैय  सभ  गुणगान  
धर्म बिकल, ईमान बिकल, बिकगेल  इन्सान 

पग  पग  बुनैतअछ  फरेबक  जाल  सैतान  
कोना जीवत "प्रभात"मुस्किल भS गेल भगवान 
....................वर्ण:-१८.....................................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल@प्रभात राय भट्ट

             गजल
कनिया ए कनिया एना करैछी किया
फाटैए करेज हमर जरैय  जिया

चढ़ल जवानीमे नए करू नादानी
करेजमे साटी जुड़ाउ हमर हिया

जखन तखन नखरा देखबैतछी
एना रुसल फूलल रहैतछी किया

सैद्खन अहींक सुरता करैतछी
अहांक प्रेम स्नेह लए तर्शैय जिया

लग आबू सजनी आब नए तर्साबू
आगि  लागल  तन  मोन  जरैय जिया

तरस देखाबू हमरा पैर सजनी
अहिं लए फाटैए रानी हमर हिया

नखरे नखरामे वितल उमरिया
स्नेहक प्यासल रहल हमर जिया

अहां सं हम दूर भS जाएब सजनी
तखन बुझब की होईत अछी पिया

घुईर  नै आएत अहांक "प्रभात" पिया  
रटैत  रहब गोरी अहां पिया पिया
...................वर्ण:-१४.........................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

मिथिला राज्य के लेल दिल्ली के जंतर-मंतर पर धऱना


बिहार सं अलग मिथिला राज्य के लेल दिल्ली के जंतर-मंतर पर धऱना देल गेल. मिथिला राज्य संघर्ष समिति केर कार्यकर्ता दोसर संस्था सभ के संग धरना-प्रदर्शन पर बैसलाह.


भीख नहि अधिकार चाही...हमरा मिथिला राज्य चाही के नारा लगाबैत कार्यकर्ता सभ दिसंबर के एहि कुहरा देबय वाला दिल्ली के सर्दी मे माहौल के
गरमैने छलाह.

एहि धरना -प्रदर्शन मे सैकड़ों लोक शामिल भेलाह.

अलग राज्य के मांग के लेल भेल एहि धरमा मे शामिल होए लेल लोक दरभंगा...मधुबनी... सहरसा...पूर्णिया...अररिया...पटना... रांची...मुजफ्फरपुर के संग-संग मुंबई...चेन्नई...कानपुर...फिरोजाबाद समेत देश के कोना-कोना सं आएल छलाह.

अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के अध्यक्ष डॉ कमल कांत झा जी के संग मिथिला राज्य संघर्ष समिति के रत्नेश्वर झा आओर कौशल झा जी एहि धरना के सफल बनएबाक लेल दिन राति एक करने छलाह.

एहि मे हिनका सभ के काफी कामयाबी सेहो मिललन्हि. मैथिल लोक सभ के जोरदार समर्थन मिललन्हि हिनका सभ के. बस सरकार के समर्थन मिल जाए तं बात बनि जाए.

हिनकर सभ के कहनाए छलन्हि जे मिथिला राज्य केर मांग देश के आजाद भेलाह के बाद बनल पहिल राज्य पुनर्गठन आयोग के समय सं भ रहल अछि.
मुदा केंद्र आओर राज्य सरकार एहि पर कहिओ ध्यान नहि देलक.

मिथिलाक इलाका जे बिहार के 24 आओर झारखंड के 6 जिला मे फैलल अछि...सरकार के अनदेखी के कारण काफी पिछड़ल अछि.

एहि ठाम विकास के किरण नहि देखाएत अछि. सरकार के भेदभाव के शिकार होएत रहल अछि ई इलाका. नहि कोनो उद्योग-धंधा आओर नहि कोनो रोजगारक ठोस उपाय...नहि शिक्षा के नीक इंतजाम. लोक के पढ़ाई लिखाई सं लsक नौकरी लेल दौसर ठामक राह देखय पड़ैत अछि.

रौदी-दाही सं हर साल जुझय वाला ई इलाका सरकारी मदद के लेल तरसैत रहैत अछि. कोनो साल एहन नहि रहैत अछि जे बाढ़ि सं लोक के खेत-खलिहान नहि दहाएत होए.

एहन नहि अछि जे सरकार छोट-छोट दोसर राज्य नहि बनौलक...मुदा मिथिला के बिसरौने रहल. लोक सभ बर्दाश्त करैत रहलखिन्ह मुदा आब हुनकर धीरज जवाब देने जा रहल अछि.

एहि लेल ओ बिहार छोड़ि दिल्ली मे धरना-प्रदर्शन करय लेल आबय लगलाह. देखिऔ आबहुं सरकार के कान मे एहि हुंकार के आवाद पहुंचैत अछि कि नहि.

धरना के जगदीश शर्मा ...ऋषि शर्मा..दिनेश शर्मा...राकेश शर्मा...मदन सिंह आओर राधेश्याम शर्मा जी सेहो संबोधित करलखिन्ह.

गजल@प्रभात राय भट्ट

                     गजल
छोड़ी कें हमरा पिया गेलौं बिदेशमें
विछोड़क पीड़ा  किया  देलौं संदेशमें

भूललछी अहाँ पिया डलर नोटमें
नैनाक  नोर हमरा देलौं  संदेशमें 

देखैछी पिया अहाँकें इंटरनेटमें
स्पर्शक भाव सं परैतछी कलेशमें

हम रहैतछी पिया विरहिन भेषमें
स्नेहक भूख हमरा देलौं संदेशमें

मिलनक प्यास कोना बुझत नेटमें
गाम आबू पिया रहू अपने देशमें

अहाँ रहबै सबदिन परदेशमें
किल्का कोना किलकतै  हमरा गोदमें

मर्म वियोग हमरा देलौं संदेशमें
पिया "प्रभात"किया गेलौं परदेशमें
.....................वर्ण १४....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011


गजल @प्रभात राय भट्ट

                  गजल
चिठ्ठीमें अहाँक रूप हम देखैतछी
हर्फ़ हर्फ में अहाँक स्नेह पबैतछी
 
अक्षर अक्षर में बाजब  सुनैतछी
शब्द शब्द में अहाँक प्रीत पबैतछी
 
एसगर में हम इ चिठ्ठी पढैतछी 
चूमी चूमी कें करेजा सँ सटबैतछी
 
अप्रतिम सुन्दर शब्द कें रटैतछी
प्रेम परागक अनुराग पबैतछी
 
चिठ्ठी में अहाँक रूपरंग देखैतछी
पूर्णमासिक पूनम अहाँ लागैतछी
 
प्रेमक प्यासी हम तृष्णा मेट्बैतछी
अहाँक चिठ्ठी पढ़ी पढ़ी कें झुमैतछी
 
कागज कलम कें संयोग करैतछी
"प्रभात"क मोनमे प्रेम बढ़बैतछी
..............वर्ण:-१४..................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

गजल


आकाश बड्ड छै शांत, भरिसक बिहाडि आबै छै।
ओंघरैत सब एहि मे बलौं ओहार ओढाबै छै।

पोछि दियौ झहरैत नोर अहाँ निशब्द आँखिक,
आँखिक नोर थीक लुत्ती झट सँ आगि लगाबै छै।

चिन्है छै सब ओकरा कतेक स्वाँग रचेतै आब,
तखनो ओ सभ केँ बिपटा बनि नाच देखाबै छै।

नंगटे भेल छै तखनो कुर्सीक मोह नै छूटल,
कुर्सीक इ सौख ओकरा किछ सँ किछ कराबै छै।

रोकि सकै छै कियो नै, सागर मे जौं उफान एलै,
परतारै लेल देखियौ माटिक बान्ह बनाबै छै।
--------------- वर्ण १८ -----------------

गजल@प्रभात राय भट्ट

                गजल
अप्पन वितल हाल चिठ्ठीमें लिखैतछी
मोनक बात सभटा अहिं सँ कहैतछी  
 
मोन ने लगैय हमर अहाँ बिनु धनी
कहू सजनी अहाँ कोना कोना रहैतछी
 
अहाँक रूप रंग बिसरल ने जैइए
अहिं सजनी सैद्खन मोन पडैतछी
 
गाबैए जखन जखन मलहार प्रेमी
मोनक उमंग देहक तरंग सहैतछी
 
अप्पन ब्यथा वेदना हम ककरा कहू
अपने उप्पर दमन हम करैतछी
 
जुवानी वितल घरक सृंगारमें धनी 
हमरा बिनु अहाँ कोना सृंगार करैतछी
 
जीवनक रंगमहल  वेरंग भेल अछि  
ब्यर्थ अटारी में रंग रोगन करैतछी
 
जल बिनु जेना जेना तडपैय मछली 
अहाँ बिनु हम तडैप तडैप जिबैतछी
 
दुनियाक दौड़में "प्रभात" लिप्त भेल अछी 
अप्पन जिनगी अप्पने उज्जार करैतछी
               वर्ण:-१५
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

काका मारल गेला पाहिले कन्यादान में



Navin ठाकुर

काका मारल गेला पाहिले कन्यादान में
सौराठ्क मैदान में ना………!! २
एला पहिल बरद ओ बेच
तैयो कम परलैन दहेज़ ! २
बेच परलैन …बेच परलैन, खेतो अप्पन सम्मान में
पाहिले कन्यादान में ना !
काका …………………….
दोसर बेटी केलइन विवाह
सुनीते मांग ओ भेला बताह !२
अबिते ..अबिते मूर्छित भ खसला नवका दालान में
दोसर कन्या दान में ना
काका ……………………
कहा मैथिल बेटी के बाप
किया अछि बेटी अभिशाप ! २
सब दिन …सब दिन जिबैछी घुट -घुट क अपमान में
बेटी कन्यादान में ना
काका ………………….
उठू मैथिल बेटी के बाप
बैस्ल्हून किया ऐना उदास ! २
एल्हूँ ….एल्हूँ हम नवतुरिया एही विरोध अभियान में
बिन दहेज़ सम्मान में ना
काका ब्याहु धिया आब
मोछ पकैर क शान में
सौराठक मैदान में ना ……………काका ब्याहु धिया …..!! ४

(नविन ठाकुर )

गजल


बनि जेतै घर, एखन धरि जे छै हमर मकान प्रिये।
घोरि दितियै हमर प्रेम मे अहाँ अपन जौं प्राण प्रिये।

एक मीसिया इजोत चानक चमकाबै छै पूरा दुनिया,
अहाँ बिन अछि घर अन्हार, छत जकर छै चान प्रिये।

आँखि मुनल हमर जरूर छै, मुदा हम छी नै सूतल,
अहाँक प्रेमक वाहक मुस्की दिन-राति लै ए जान प्रिये।

कखनो देखाबी प्रेम अहाँ, बनै छी कखनो अनचिन्हार,
प्रेमक खेल मे अहाँक नुका-छिपी केने ए हरान प्रिये।

जिनगीक रौदी छै प्रचण्ड, शीतल अहाँक केशक छाह,
विश्राम ओहि छाह मे करै ले डोलै "ओम"क ईमान प्रिये।
---------------------- वर्ण २१ ---------------------

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

गजल


डूबैत रहलौं हरदम हम, आर कहिया धरि इ अन्हेर हेतै।
खाली मझधारे नै हेतै कपार हमर, हमरो कोनो कछेर हेतै।

सब लेल बाँतर कात राखल छी कियो त' कखनो ताकत एम्हरो,
खूब गजल सब ले कहल गेल, हमरो लेल ककरो 'शेर' हेतै।

सुख-दुख जीवन-क्रम मे लागल, कखनो मीठ कखनो तीत भेंटै,
बड्ड अन्हरगर साँझ भेलै, कहियो इजोत भरल सबेर हेतै।

सब मिल भिडल छै माथापच्ची केने एकटा कानून बनबै लेल,
केहनो कानून बनि जाओ मुदा ओहि मे संशोधन बेर-बेर हेतै।

आब नै लुटेतै देशक वैभव, नै क' सकतै खजाना केँ चोरी कियो,
सोनक चिडै छल देश हमर, पुरना वैभव वापस फेर हेतै।
-------------------- वर्ण २५ -------------------------

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

गजल


सदिखन स्वार्थक चिन्तन करैत रहै ए मोन हमर।
इ गप नै बूझि जाइ कियो, डरैत रहै ए मोन हमर।

अपन खेतक हरियरी बचा केँ रखबाक जोगार मे,
आनक जरल खरिहानो चरैत रहै ए मोन हमर।

विचार अपन गाडने दोसरक छाती पर खाम जकाँ,
इ खाम उखडबाक डरे ठरैत रहै ए मोन हमर।

हृदयक भाव अछि तरंगहीन पोखरिक पानि भेल,
गन्हाईत जमल भाव सँ सडैत रहै ए मोन हमर।

अन्तर्विरोधक द्वन्द्व युद्ध मे बाझल अछि "ओम"क मोन,
अपना केँ जीयेबाक लेल मरैत रहै ए मोन हमर।
------------------- वर्ण २१ -------------------

रविवार, 18 दिसंबर 2011

अंदाज ए मेरा: मुर्गा लडाई का रोमांच

अंदाज ए मेरा: मुर्गा लडाई का रोमांच: स्‍पेन, पुर्तगाल और अमेरिका का बुल फायटिंग (सांड युध्‍द) का नजारा मैंने टीवी पर देखा है..... रोमांच का आलम वहां होता है इस खेल के दौरान पर ...

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

गजल


ओकर गाँधी-टोपी कतौ हरेलै, आब ओ हमरे टोपी पहिराबै छै।
सेवक सँ बनि बैसलै स्वामी हमरे छाती पर झण्डा फहराबै छै।

चुनाव-काल मे मुस्की द' हमर दरबज्जाक माटि खखोरलक जे,
भेंट भेला पर परिचय पूछै, देखियो कतेक जल्दी बिसराबै छै।

दंगा भेल वा बाढि-अकाल, सब मे मनुक्खक दाम तय करैवाला,
पीडाक ओ मोल की बूझतै, जे मौका भेंटते कुहि-कुहि कुहराबै छै।

जनता केँ तन नै झाँपल, पेटक आँत सटकि केँ पीठ मे सटल,
वातानुकूल कक्ष मे रहै वाला फूसियों कानि केँ नोर झहराबै छै।

डारि-डारि पर उल्लू बैसल, सौंसे गाम बेतालक नाच पसरलै,
एखनो आसक छोट किरण "ओम"क मोन मे भरोस ठहराबै छै।
------------------------ वर्ण २५ -----------------------

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011


बौआ चलली परदेश@प्रभात राय भट्ट

लS कS झोरा झन्टा बौआ चलली परदेश//
छोईड़कS  अप्पन जन्मधरती अप्पन  देश //२  

जाईतछें  दूर परदेश  बौआ सबेरे सबेरे
कुशले कुशल रहिहें बौआ साँझ सबेरे 
समय सं खैहें  पीबीहें  डेरा अबिहें सबेरे
झगरा झंझट नहीं करिहें केकरो सं अनेरे  
लS कS झोरा झन्टा बौआ चलली परदेश//
छोईड़कS  अप्पन जन्मधरती अप्पन  देश //२

मोन सं करिहें बौआ अप्पन कामधाम
दिहे बौआ अपनो देह केर आराम
खूब  कमैहे  ढौआ रुपैया आर दाम
बौआ कमौआ घुईर अबिहे नहीं गाम
 लS कS झोरा झन्टा बौआ चलली परदेश//
छोईड़कS  अप्पन जन्मधरती अप्पन  देश //२

कोना चल्तौ घरद्वार कोना चूल्हा चौका
छोड़ीएह नै नोकरी भेटलछौ बढियां मौका
बेट्टा धन होएतेछैक बौआ रे परदेश कें
सुख नहीं भेटैएछैक बिनु दुःख कलेश कें 
लS कS झोरा झन्टा बौआ चलली परदेश//
छोईड़कS  अप्पन जन्मधरती अप्पन  देश //२

घरक ईआद अबिते बौआ करिहें टेलीफोन
माए बोहीन सं गुप करीकें शांत भsजेतौ मोन 
तोरे कमाई सं हेती जानकिकs कन्यादान
भेजैत रहिहे बौआ   किछु  किछु सरसमान
लS कS झोरा झन्टा बौआ चलली परदेश//
छोईड़कS  अप्पन जन्मधरती अप्पन  देश //२

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल


अन्हरिया राति मे सँ भोर कखनो निकलबे करतै।
दुखक अनन्त मेघ केँ चीर सुरूज उगबे करतै।

सब फूल बागक झरि गेल सुखा केँ एकर की चिन्ता,
नब कोढी फूटलै कहियो सुवास पसरबे करतै।

टूटल प्याली पर कहाँ कानैत छै मय आ मयखाना,
प्याली फेर कीनेतै, मयखाना मे मस्ती रहबे करतै।

सागर मे सदिखन बिला जाइत छै धारक अस्तित्व,
तैं की धार रूकै छै, बिन थाकल देखू बहबे करतै।

काल्हि "ओम"क नाम लेबाक ककरो फुरसति नै हेतै,
आइ कान किछ ठोढ सँ हमर नाम सुनबे करतै।
------------------ वर्ण २० -------------------

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

गजल


काल्हि १३.१२.२०११ केर राति हमर छोटका बाबा(हमर पितामहक अनुज) 88 बरखक अवस्था मे स्वर्गवासी भ' गेलाह। हुनकर स्मृति मे हम अपन भावांजलि ऐ गजलक माध्यमे प्रकट क' रहल छी। दिवंगत आत्माक शांति भेटैन्हि, यैह परमात्मा सँ प्रार्थना अछि।
मैथिली गजल
सब कहै ए पंचतत्व मे आइ अहाँ विलीन भ' गेलौं।
हम निशब्द भेल ठाढ छी, देखियौ वाणी-हीन भ' गेलौं।

नब वस्त्र पहीरि अहाँ कोन जतरा पर निकललौं,
बाट जोहैत छी एखनो, अपस्याँत राति-दिन भ' गेलौं।

अंगुरी अहाँक पकडि बाध-बोन हम घूमैत छलौं,
आब कहाँ ओ अंगुरी, हम बाट नापि अमीन भ' गेलौं।

जेनाई छल निश्चित, यौ दिन तकेने अजुके छलियै,
बंधन कोना केँ तोडलियै, कानैत आब बीन भ' गेलौं।

चिंतित "ओम"क तन्नुक कन्हा आब कोना बोझ उठेतै,
गेल आब अहाँक छाहरि, हम छत-विहीन भ' गेलौं।
------------------- वर्ण २० --------------------

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

रूबाई


अहाँक दुनू नैन बनल अछि हमर जिनगीक सम्बल।

 
मुस्की अहाँक करैत रहै अछि हमरा सदिखन शीतल।

 
भेंटतौं अहाँ जौं नै, हमर जिनगी मे सोआद कहाँ रहितै,

 
अहीं प्रेरणा बनल रहै छी, देखि अहीं केँ लिखै छी गजल।

गजल


कोनो खसैत केँ जे लियै सम्हारि, यैह थीक जिनगी।
डूबैत केँ जौं दियौ पार उतारि, यैह थीक जिनगी।

भाव कोनो हुए मोन मे, शब्द होइत छै संवाहक,
जे बाजै सँ पहिने लेब विचारि, यैह थीक जिनगी।

मान-अपमान दुनू भेंटै छै, इ मायाक थीक लीला,
अन्याय केँ सदिखन दी मोचाडि, यैह थीक जिनगी।

भाँति-भाँति केँ मेघ विचारक मोनक भीतर घूमै,
सुविचार सँ राखू मोन पजारि, यैह थीक जिनगी।

आन दिस अपन काँच अंगुरी कोना उठेतै "ओम",
पहिने लितौं अपना केँ सुधारि, यैह थीक जिनगी।
------------------ वर्ण १९ -----------------

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

गजल


अपने खोज मे अपन मोन हम धुनैत रहै छी।
छिडियैल मोती आत्माक सदिखन चुनैत रहै छी।

आनक की बनब, एखन धरि अपनहुँ नै भेलौं,
मोन मारि केँ सब गप पर आँखि मुनैत रहै छी।

कहियो भेंटबे करतै आत्माक गीत एहि प्राण मे,
छाउर भेल जिनगी केँ यैह सोचि खुनैत रहै छी।

झाँपै लेल भसियैल जिनगीक टूटल धरातल,
सपनाक नबका टाट भरि दिन बुनैत रहै छी।

बूझि सोहर-समदाउन जिनगीक सभ गीत केँ,
मोन-मगन भेल अपने मे, हम सुनैत रहै छी।
---------------- वर्ण १९ ----------------

रविवार, 11 दिसंबर 2011


तिलक दहेजक खेलमे@प्रभात राय भट्ट

मिथिलावासी हम सभ मैथिल
करैएतछि इ आह्वान
सभ कियो मिली करब 
दहेज़ मुक्त मिथिलाक निर्माण
आब नै कोनो बेट्टी पुतोहुक 
जाएत अनाहक प्राण
दहेज़ मांगेएवाला भिखारी
स्त्री दमन करैयवाला दुराचारी
भS जाऊ आब साबधान!!!
तिलक दहेजक हम सभ मिली 
करब आब दीर्घकालीन अवसान 
बड बड लीला देखलौं
तिलक दहेजक खेलमे
बाप बेट्टा दुनु गेलाह
दहेज़ उत्पीडन मामला सं जेलमे 
आब नै कियो करू नादानी  
नै बनू कियो अज्ञानी
बेट्टा बेट्टी एक सम्मान
राखु सभ कियो बेट्टीक मान
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

अंदाज ए मेरा: सिब्‍बल बनाम रमन....!!!!!

अंदाज ए मेरा: सिब्‍बल बनाम रमन....!!!!!: कपिल सिब्‍बल कपिल सिब्‍बल। पेशे से वकील। कांग्रेस के बडे नेता और मौजूदा मनमोहन सरकार में मानव संसाधन मंत्री। डा रमन सिंह। पेशे से चि...

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

गजल


हेतै की आब बूझाय नै एहि देश मे।
देश फँसल अछि घोटाला आ केसमे।

कोना केँ बचायब आब घर चोरी सँ,
फिरै छै चोर सगरो साधुक भेष मे।

जरै छै गाम, तखनो बंसी बजाबै ओ,
बूझै नै लिखल देबालक सनेस मे।

शिकारी मनुक्खक बनल छै मनुक्खे,
गोंतै छै सब बाट आ घरो कलेश मे।

बेईमानीक पताका फहरै आकाश,
पाकै ईमान आब पसरल द्वेष मे।
---------- वर्ण १४ ------------

ग़ज़ल

सजनी की रूप त कमाल भऽ गेलै
गामक सब छौड़ा भेहाल भऽ गेलै

देखलों जे अहाँक मुसकी सजन
अन्हारियो राति मs इजोर भऽ गेलै

छौड़ा त अपने जवानी मs मगन
बुढबो सब अ
नसम्हार भऽ गेलै

चलली जखन ओ ओढ़नी उड़ाए
सबके त जड़िया बोखार
भऽ गेलै

देखलक सुनील जे गामक हाल
पुछू नै हुनकर की हाल
भऽ गेलै








गुरुवार, 8 दिसंबर 2011


अन्हार घरमे इजोर भोगेलैय@प्रभात राय भट्ट

अहांक अबिते अन्हार घरमे इजोर भोगेलैय //
अहांक रूप निहारैत निहारैत भोर भोगेलैय //२
 
चन्द्रबदन  यए  मृगनयनी
अहांक उर्वर काया रूपक माया
मोन मोहिलेलक हमर.............
यए सजनी मोन मोहिलेलक हमर
अहांक अबिते अन्हार घरमे इजोर भोगेलैय //
अहांक रूप निहारैत निहारैत भोर भोगेलैय //२
 
नहीं रहिगेल आब दिल पैर काबू
मोन मोहिलेलक अहांक रूपक जादू
अहिं सं हम  करैतछी प्रीत
दिल अहां लेलौं हमर जित  
अहांक अबिते अन्हार घरमे इजोर भोगेलैय //
अहांक रूप निहारैत निहारैत भोर भोगेलैय //२
 
चलैतछी गोरी मटैक मटैक
पातर कमर हिलाक
लचैक लचैक झटैक झटैक
गोर गाल पैर कारी लट गिराक 
अहांक अबिते अन्हार घरमे इजोर भोगेलैय //
अहांक रूप निहारैत निहारैत भोर भोगेलैय //२
 
नैन नशीली गाल गुलाबी
ठोर लागैय सजनी सराबी
रसगर ठोर भरल जोवनक मधुशाला
तृप्त कदिय सजनी पीयाक एक घूंट प्याला
अहांक अबिते अन्हार घरमे इजोर भोगेलैय //
अहांक रूप निहारैत निहारैत भोर भोगेलैय //२
 
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल


हम त' केने बहाना राम केर, अहींक नाम लैत छी।
बनि गेलौं हम चर्चा गाम केर, अहींक नाम लैत छी।

रखने छी करेज सँ सटा केँ यादि अहाँक सदिखन,
हमरा काज की ताम-झाम केर, अहींक नाम लैत छी।

ताकि दितिये कनी नजरि सँ मुस्कीया केँ जे एक दिन,
काज पडितै नै कोनो जाम केर, अहींक नाम लैत छी।

हमर काशी, मथुरा, काबा सब अहीं मे अछि बसल,
जतरा भ' गेल चारू धाम केर, अहींक नाम लैत छी।

रोकि सकतै नै जमाना इ मोन सँ मोनक मिलनाई,
मोन कहाँ छै कोनो लगाम केर, अहींक नाम लैत छी।
--------------------- वर्ण २० --------------------

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

गजल


देखि हुनकर असल रंग, भक हमर टूटि गेल।
पोखरि मे सब नंग-धडंग, भक हमर टूटि गेल।

सभ आँखिक नोर सुखायल, आगि एहेन छै लागल,
देखि केँ कानैत यमुना-गंग, भक हमर टूटि गेल।

बूझलौं अपना केँ कपरगर, एकटा संगी भेंटल,
छोडि देलक ओ जखन संग, भक हमर टूटि गेल।

कते बियोंत लगाबै छलौं अहाँ केँ अंग लगाबै लेल,
जखन लगेलौं अंग सँ अंग, भक हमर टूटि गेल।

मस्तीक नाव भसिया गेल छै समयक ऐ प्रवाह मे,
छलौं यौ हमहुँ मस्त-मलंग, भक हमर टूटि गेल।
----------------- वर्ण २० --------------------

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

बुढिया मैंया (OM PRAKASH JHA )


बुढिया मैंया (कथा)    
   ऑम  प्रकश  झा  

           मोबाईल पर बाबूजीक फोन आयल। हम उठेलौं त' कुशल क्षेमक बाद बाबूजी कहलैथ- "बुढिया मैंया स्वर्गवासी भ' गेलीह।" हम धक् रहि गेलौं। एखने दू मास पहिने गाम गेल छलौं, त' बुढिया मैंया स्वस्थ छलीह। ओना हुनकर अवस्था ९५ बर्ख छलैन्हि। पता चलल जे हर्ट अटैक आबि गेल छलैन्हि आ दरिभंगा ल' जैत बाटे मे हुनकर देहान्त भ' गेलैन्हि। बाबूजीक निर्देशानुसार हम तुरत गाम चलि देलियै। राति मे गाम पहुँचलौं, त' पता चलल जे दाह संस्कार लेल कठियारी गेल छैथ सब। माताजीक निर्देशक मोताबिक काठी चढेबा लेल हमहुँ कठियारी भागलौं। बुढिया मैंयाक दिव्य आ शान्त मुख देखि एना लागल जे ओ आब उठि बैसतीह। हुनका सानिध्य मे बिताओल समय मोन मे घूरिया लागल। एक दिन सब एहीना शांत भ' जैत। बुढिया मैंया कखनो केँ कहैथ रहथिन जे बौउआ, आब कते दिन बुढिया मैंया, हमर जे पार्ट छल से हम खेला लेलौं, आब अहाँ सभ अपन पार्ट खेलाइ जाइ जाउ। ठीके कहै छलखिन्ह ओ। अपन पार्ट खेला केँ कते दिन सँ हमरा सबहक पूर्वज एहीना शांत होइत रहलाह आ नबका पात्र सब मनुक्ख आ मनुक्खता केँ आगू बढबैत रहलाह। इ खेल सतत चलैत रहत। नब नब पौध आंगन मे आबैत रहत आ पुरान गाछ सब एहीना धाराशायी होइत रहत। मायाक जंजाल मे बान्हल हम सब एहीना मुँह ताकैत रहब। कतेक असहाय भ' जाइ छै मनुक्ख, जखन कियो अपन सामने सँ चलि जाइ छै आ ओ किछ करबा मे असमर्थ रहैत छै। एहने विचार सब मोन मे आबैत रहल आ हुनकर चिता जरैत रहलैन्हि। जखन दाह संस्कार पूर्ण भ' गेलै त' हरिदेव कक्का कहलैथ- "कोन विचार मे हरायल छी ओम बौउआ। चलू आब नहा केँ गाम पर चली। ओहिनो भोर भ' गेल। नहा-सोना केँ कनी सुतब, रतिजग्गा भ' गेल।" हम कहलियैन्हि- "कक्का, बुढिया मैंया बड्ड मोन पडै छैथ।" हरिदेव कक्का बजलाह- "छोडू ने इ सब गप, हमरा की नै मोन पडै छैथ। ऐ लेल गाम नै जैब की। मोन खराप क' ली बिना सुतने। अरे भेलै चलू, ९५ बरख केर पाकल उमैर मे गेलैथ, कते शोक मनायब।" हम चुपचाप चलि देलियै गाम दिस। आबि केँ नहा-सोना केँ सुतै लेल गेलौं। ओतय आँखि मुइन सुतबाक उपक्रम कर' लागलौं। आँखि मुनैत देरी बुढिया मैंया सामने ठाढ भ' गेलीह। हमरा दिस सिनेह सँ ताकैत वैह पुरना सवाल पूछ' लागली जे बौउआ खेलौं। हम हुनका एकटक ताकैत रहि गेलौं।
          बुढिया मैंया हमर बाबाक काकी छलीह। हमर प्रपितामही लागैत छलीह। पूरा आंगन मे सब सँ जेठ आ आब त' बच्चा सभक संग सब गोटे हुनका बुढिया मैंया कह' लागल रहैन्हि। पूरा आंगनक बच्चा सभक सम्पूर्ण भार हुनके पर रहै छलैन्हि आ ओ एकरा पसिन्न करै छलखिन्ह। बच्चा सभ सँ खूब सिनेह रहै छलैन्हि हुनका। हमरा सभ केँ खुएनाई हुनके जिम्मा रहै छलैन्हि। जखने हम सब खाई मे एको रत्ती हिचकिचाइ छलियै की ओ तुरते तोता कौर आ मैना कौर बना केँ खुआब' लागै छलीह। माताजी गाम पर पहुँचैत देरी हमरा सब केँ हुनकर संग लगा दैत छलीह। जेना हमरा बूझल ए, बुढिया मैंया ३५ बरखक आयु मे वैध्वय प्राप्त केने छलैथ। हुनका तीन गोट पुत्र श्रीदेव, रामदेव आ विष्णुदेव छलखिन्ह। विष्णुदेव बाबाक पुत्र हरिदेव कक्का छलाह जिनका सँ हमरा बड्ड पटै छल। श्रीदेव बाबा खेती पथारी करै छलाह। रामदेव बाबा आ विष्णुदेव बाबा नौकरी करै छलाह आ आब रिटायर भ' केँ गामे मे रहै छलाह। बुढिया मैंयाक तीनू पुत्र आ तीनू पुतौह जीबते छलखिन्ह। हम नौकरी भेंटलाक बाद कखनो काल गाम जाइत छलौं त' बुढिया मैंया कहैथ जे भगवान हमरा उठबै मे किया देरी लगा रहल छैथ, हम चाहै छी जे तीनू पुत्रक सामने आँखि मुनी। पूरा आंगनक बच्चा बच्चा बुढिया मैंयाक चेला छल। हमहुँ छलौं। कियाक नै रहितौं, ओ निश्छल प्रेम, ओ देखभाल, सब गोटे केँ हुनका दिस आकर्षित करै छलै। सब पुतौह हुनका लग नतमस्तक रहैत छलीह। बुढिया मैंयाक हुकुमक अवहेलना कियो नै करैत छल। सबहक लेल हुनका मोन मे नीक भावना छलैन्हि। हम त' हुनकर जाउतक पोता छलौं, मुदा कहियो आन नै बूझलैथ। एहेन बुढिया मैंयाक पौत्र हरिदेव कक्का केर गप सँ हमरा बड्ड छगुनता लागल छल। हम सोचैत रही जे एखन चौबीसो घण्टा नै भेल हुनका मरल आ इ सब हुनका बिसरै मे लागि गेलाह। कियाक एना कियाक। ठीक छै जन्म मरण पर अपन बस ककरो नै छै, मुदा जे एतेक बर्ख धरि हमर धेआन राखलक, की हम ओकरा लेल किछो दिन, किछो बर्ख धरि नै सोची।
        यैह सब सोचैत कखनो आँखि लागि गेल। एकाएक हंगामा सँ निन्न टूटल। जल्दी कोठली सँ बहरेलौं। आँगन मे बुढिया मैंयाक तीनू पुतौह वाक् युद्ध मे लीन छलैथ। पता चलल जे बुढिया मैंयाक गहना गुडिया पर बहस होइत छल। श्रीदेव बाबाक कनियाँ एक दिस छलखिन्ह आ रामदेव बाबा आ विष्णुदेव बाबा केर कनियाँ एक दिस। बहसक विषय वस्तु छल एकटा अशर्फी। बुढिया मैंयाक पेटी मे १६ गोट अशर्फी छलै। तीनू पुतौह ५-५ टा हिस्सा लेलाक बाद सोलहम अशर्फी पर भीडल छलीह। पहिने कहा सुनी भेल आओर बाद मे व्यंग्य आ गारिक समायोजन सेहो भेल। हम जल्दी सँ आँगन सँ बाहर दलान पर चलि एलहुँ। ओतुक्का दृश्य कोनो नीक नै छल। बुढिया मैंयाक तीनू पुत्र हुनकर कोठलीक अधिकार एहि विषय पर धुरझार वाक् युद्ध मे लागल छलाह। हमरा इ सीन किछ किछ संसद आ विधान सभाक सीन जकाँ लागै छल। तीनू भाई अपन अपन कण्ठक उच्च स्वर प्रवाह सँ लाउडस्पीकर केँ मात देने रहथिन्ह। एना लागै छल जे एकटा लहाश आइ खसिये पडतै। हम बड्ड डरि गेलौं आ बाबू केँ फोन लगेलियेन्हि- "बाबूजी, एतय त' मारा मारीक भयंकर दृश्य उपस्थित भेल अछि। आब की हेतै।" बाबूजी कहलाह- "अहाँ नै किछ बाजब। यौ दियादी झगडा एहीना होइ छै। फेर मेल भ' जेतैन्हि।" मुदा हमरा नै रहल गेल आ झगडाक स्थान पर जा केँ हम कहलियैन्हि जे बाबा अहाँ सब क्रिया-कर्म हुए दियौ, तकर बाद एहि मुद्दाक समाधान क' लेब। विष्णुदेव बाबा बजलैथ- "समाधान त' आइये हेतै। हमहुँ तैयारे छी।" हम बजलौं- "एना नै भ' सकै ए जे ओहि कोठली केँ बुढिया मैंयाक स्मृति बनाओल जाइ।" एहि बेर श्रीदेव बाबा बजलाह- "बडका ने एला स्मृति बनबाबै वाला। बुढिया की कोनो चीफ मिनिस्टर छलै आ की कतौक प्रेसीडेण्ट।" हम गोंगियाइत बजलौं- "मुदा बाबा ओ हमरा सभक एकटा स्तम्भ छलीह। मजबूत स्तम्भ।" रामदेव बाबा मुस्की दैत हमरा दिस ताकैत बजलाह- "इ छौंडा चारि लाईन बेसी पढि केँ भसिया गेलै हौ। इ नै बूझै छै जे पुरना घर खसैत रहै छै आ नबका घर उठैत रहै छै। बुढिया बड्ड दिन राज केलकै नूनू, आब हमर सबहक राज भेल, हम सब फरिछा लेब।" तीनू गोटे हमरे पर भिड गेलाह। हम तुरत ओहिठाम सँ गाछी दिस निकलि गेलौं, जतय बुढिया मैंया केँ जराओल गेल छलैन्हि। साराझपी नै भेल छल। ओहि स्थान पर छाउर छल, जतय हुनका जराओल गेल छल। हमरा लागल जेना बुढिया मैंया ओहि छाउर मे सँ निकलि हमरा सामने ठाढ भ' गेलीह आ कह' लागलीह- "बउआ अही माटि सँ एकदिन हम निकलल छलौं आ अही माटि मे फेर सँ चलि एलहुँ। अहाँ कथी लेल चिन्तित होइ छी। हमर स्मृति अहाँक मोन मे अछि, सैह हमर पैघ स्मृति अछि। जखन पुरना घर खसै छै ने, त' ओकर मलबा एहिना कात क' देल जाइ छै। ओहि जगह पर नबका घर बनाओल जाइत अछि। हम पुरान घर छलहुँ, खसि परलौं, अहाँ सब नब घर छी, जाउ उठै जाउ आ नाम करू। एहि सँ हमरो आत्मा तृप्त रहत। बिसरि गेलौं, बच्चा मे अहाँ सब केँ घुआँ मुआँ खेलबैत छलौं त' की कहै छलौं नब घर उठै, पुरान घर खसै।" हमरा अपन नेनपनक खेल मोन पडय लागल। बुढिया मैंया अपन ठेहुँन पर चढा केँ घुआँ मुआँ खेलबै छलीह। की इ संसार एकटा घुआँ मुआँक खेल थीक। एहि मे एहिना पुरना घर खसा केँ बिसरि देल जाइ ए आ नबका घर सभ अपन चमक देखबैत रहै ए। हम ओहिठाम सँ सोझे बाजार दिस विदा भ' गेलौं इ बडबडाईत जे नब घर उठै, पुरान घर खसै

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

------------गीत----------

आँखिमे चित्र हो मैथिलि केर,हृदयमे हो माटिक ममता
माएक सेवामे जीवन बितादी, अछि बस इएह एकता सिहन्ता!
अछि करेजाक टुकड़ी हमर ई तिरंगा
धमनीमें हिमालय आ शोणितमें गंगा
अछि हमर ऐस्वर्यक कोनो चाह नै
बाट चलिते विपत्तिक परवाह नै
हम टूटी जा सकैछी, हम झुकी ने सकब
तुफनोक भय सँ हम रुकी ने सकब
हमर संग-संग बहय उनचासो पवन
बंधी देने छि तें माथमे हम कफ़न
हम रही ने रही ई तिरंगा रहय
फेर वनबास ने होइन्ह रामक, फेर जंगलमे कानथी ने सीता
माएक सेवामे जीवन बितादी, अछि बस इएह एकटा सिहन्ता !
.कल्पनामे करोडों नदी आ नहरि
भावनामे हो लाखो समुन्द्रक लहरी
चिंतनमें उठैत अछि तेहने लहास
जेना हाथ होथि ओरने भगत आ सुभाष
माटी चमकैए माथपर जन्मभूमि केर
हमर कर्मभूमि केर, हमर धर्मभूमि केर
जतs खल -खल जनकिक आँगन हंसय
आ चकमक सावित्रिक कंगन करय
विण अपनही बजैब हम भारतीक मित्र
मरितो दम तक सजाएब हम मैथिलिक चित्र
गीतमे राखी क्रांतिक ज्वाला, सरगममें विजय केर भनिता
माएक सेवो जीवन बितादी, अछि बस इएह एकटा सिहन्ता!