माछ, माछ, माछ! मिथिलाके माछो महान्!
मिथिला महान् - मिथिला महिमा महान्,
माछो महान् - मखान आ पानो महान्,
माछ..माछ..माछ! मिथिलाके माछो महान्!
इचना के झोरमें ललका मेर्चाइ,
मारा के झोरमें सुरसुर मेर्चाइ,
चाहे जलखैय या हो खाना... होऽऽऽ!
छूटबैय सर्दी जहान! :)
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
गैंचाके काँटो बीचहि टा में,
नेनी के काँटो सगरो पसरल,
सदिखन काँटो कऽ के निकालय... होऽऽऽ!
स्वादमें सभटा महान!
माछ, माछ, माछ,
मिथिलाके माछो महान्!
आउ चलू देखी पोखैर में मच्छड़...
आइ निकलतै भून्नो के पच्चड़...
रौह, भाकुर, नेनी कऽ के पूछतैय... होऽऽऽ...
महाजाल फंसतय सभ माछ...
माछ..माछ.. माछ..
मिथिलाके माछो महान्!
बंसीमें देखू पोठी बरसय,
गरचुन्नी आ सरबचबा फंसय,
बड़का बंसीमें आँटाके बोर यौ... होऽऽ
से फंसबैय रौह माछ,
माछ..माछ..माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
जतय माछ होइ लोक ततय हुलकल
माछ हाट के रूप रहय लहकल
एम्हर तौलह ओम्हर तौलह ... होऽऽऽ
सरिसो रैंची संग जान...
माछ, माछ, माछ,
मिथिलाके माछो महान्!
मिथिलाके पोखैर कादो भोजन
ताहि माछो के सुधरल जीवन
खायवाला सभ पेटहि पाछू ... होऽऽऽऽ
काजक बेर उड़य प्राण...
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
सुरसुर काका के माछक मुड़ा...
प्रभुजी काका के पेटीके हुड़ा...
सभमिलि बैसल चूसि-चूसि मारैथ होऽऽ
सगरो माछ के मजान...
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
प्रयागमें छैक मैथिल पंडा
सभ के अपन-अपन धंधा
पहिचान वास्ते होइछै जे झंडा... होऽऽ
ताहू में छै मिथिला माछ...
माछ, माछ, माछ,
मिथिलाके माछो महान्!
गोलही काँटी छही आ सुहा
सिंघी मांगूर बामी टेंगरा
जानि हेरायल कतय ई मिथिला.. होऽऽ
आन्ध्रा के भेलय तूफान...
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
हरिः हरः!
रचना:-
प्रवीन नारायण चौधरी
माछ, माछ, माछ! मिथिलाके माछो महान्!
मिथिला महान् - मिथिला महिमा महान्,
माछो महान् - मखान आ पानो महान्,
माछ..माछ..माछ! मिथिलाके माछो महान्!
इचना के झोरमें ललका मेर्चाइ,
मारा के झोरमें सुरसुर मेर्चाइ,
चाहे जलखैय या हो खाना... होऽऽऽ!
छूटबैय सर्दी जहान! :)
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
गैंचाके काँटो बीचहि टा में,
नेनी के काँटो सगरो पसरल,
सदिखन काँटो कऽ के निकालय... होऽऽऽ!
स्वादमें सभटा महान!
माछ, माछ, माछ,
मिथिलाके माछो महान्!
आउ चलू देखी पोखैर में मच्छड़...
आइ निकलतै भून्नो के पच्चड़...
रौह, भाकुर, नेनी कऽ के पूछतैय... होऽऽऽ...
महाजाल फंसतय सभ माछ...
माछ..माछ.. माछ..
मिथिलाके माछो महान्!
बंसीमें देखू पोठी बरसय,
गरचुन्नी आ सरबचबा फंसय,
बड़का बंसीमें आँटाके बोर यौ... होऽऽ
से फंसबैय रौह माछ,
माछ..माछ..माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
जतय माछ होइ लोक ततय हुलकल
माछ हाट के रूप रहय लहकल
एम्हर तौलह ओम्हर तौलह ... होऽऽऽ
सरिसो रैंची संग जान...
माछ, माछ, माछ,
मिथिलाके माछो महान्!
मिथिलाके पोखैर कादो भोजन
ताहि माछो के सुधरल जीवन
खायवाला सभ पेटहि पाछू ... होऽऽऽऽ
काजक बेर उड़य प्राण...
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
सुरसुर काका के माछक मुड़ा...
प्रभुजी काका के पेटीके हुड़ा...
सभमिलि बैसल चूसि-चूसि मारैथ होऽऽ
सगरो माछ के मजान...
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
प्रयागमें छैक मैथिल पंडा
सभ के अपन-अपन धंधा
पहिचान वास्ते होइछै जे झंडा... होऽऽ
ताहू में छै मिथिला माछ...
माछ, माछ, माछ,
मिथिलाके माछो महान्!
गोलही काँटी छही आ सुहा
सिंघी मांगूर बामी टेंगरा
जानि हेरायल कतय ई मिथिला.. होऽऽ
आन्ध्रा के भेलय तूफान...
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्!
हरिः हरः!
रचना:-
प्रवीन नारायण चौधरी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें