Manoj shreepati - मिथिला में सबसे नीक लागे ये "विरोध" के स्वर ।
कखनों मैथिली मंच पर 'भोजपुरी' के विरोध ते , कखनो 'सिनेमा में लालटेन' किये जरल , तकर विरोध । कखनो 'सिनेमा में मैथिली नायिका' किए नहि, तकर विरोध ,ते कखनो हीरो के चचेरा भाई के 'भाषा' पर विरोध । बात ते एतेक तक कहल जायत अछि जे सिनेमा के कहानी में दहेज , विधवा विवाह , किये देखायल जायत अछि , तकर विरोध ।
कखनो कोनो गायक - गायिका के विरोध, ते कखनो नायक नायिका के विरोध ।
कखनो सहरसा से ते, कखनो बेगूसराय से ते कखनो दरभंगा से आवाज अबैत रहे ये जे मिथिला मंच पर, मिथिला उत्सव में या dj पर भोजपुरी किए ?
हम अहं जनता के पसन्द के नही रोकि सके छि । जनता अगर भोजपुरी सुने चाहे छैथ ते अपने किछ ने कय सके छि । अपने कतबो ठीकेदारी कय लियो किछ ने होयत !
सुधार हमरा अहं में करे परत । मिथिला में अधिकतर गायक गायिका कोनो एक टा या दु टा गीत से फेमस छैथ ।
हम करीब 3 साल से मैथिली मंच के प्रोग्राम सोशल मीडिया या सीधा देखैत रहैत छि । बस ओतबे टा गीत # ब्राह्मण बाबू यो.... मंजर में आबि या नही आबि टिकला में जरूर आबि .... कोना के टुटलो मोती के हार .... छोड़ु छोड़ु ने सैया भोर भय गेले .....
मंच पर उदघोषक सब से भी एके रंग , एके तरह के दोहा , खिस्सा पिहानी सुनाय के मिले ये ।
लोकतंत्र में विरोध जरूरी छैक , मुदा हमर विचार वर्तमान गीत संगीत पर कनि अलग अछि ।
पहिलुक गप जे स्थानीय कलाकार के मंच या कोनो भी विधा में, अगर ओ कैपेबल छैथ, ते जरूर जगह मिलबाक चाही ।
दोसर गप जे मंच या विषय के अपने बान्हि के नही रखियो । जनता के पसंद नापसंद के नज़रअंदाज़ नहि करियो ।
बस हमरा अहं के एतबे टा करबाक अछि जे मैथिली में किछ एहेन चीज दी , जे दर्शक या श्रोता आन चीज सुनबे बन्द करि देथ ।
मैथिली में नव प्रयोग बहुत कम भय रहल अछि । ई बात सिर्फ संगीत आ सिनेमा में ही नही छैक , सब विधा में छैक ।
मिथिला मैथिली में हमरा अहं के किछ मौलिक काज करे परत । सफलता या असफलता के चिंता से परे भय के लगातार प्रयास करे के आवश्यकता छे । दर्शक आ श्रोता के तरफ बारीकी से देखय परत ।
अध्ययन जरूरी छैक ।
जय जानकी ।