महिला संस्कृति रक्षण केर संवाहिका छथि। ई परम्परा सनातनसँ शाश्वत अछि। संस्कृति अगर लोक संस्कृति हो तँ महिला लोकनिकेँ लगभग एकाधिकार भऽ जाइत छन्हि। जइ कार्य, संस्कार, रीति इत्यादिकेँ शास्त्रीय परम्परा द्वारा महिला लोकनि नै कऽ पबैत छथि तकरा लोकपरम्परा आ लोक विधान द्वारा विस्तारसँ करैत छथि। मिथिला संस्कृति मे तुसारी, मधुश्रावणी, आम-महु बिआह, जटा-जटिन, बिआहक पश्चात् कोहबर घरमे सम्पादित अनेक दिनक विधि-बेवहार एकर उदाहरण अछि। लोक परम्परा समन्वित परम्परा होइत अछि। एक विधिक संग अनेक क्रिया-कलाप आ रचनात्मकता संलग्न रहैत अछि- पूजा पाठ, तंत्र-मंत्र, पितृ आराधना, गीत-संगीत, जादू-टोना, वस्त्र विन्यास, विभिन्न कलाक प्रदर्शन इत्यादि। सभ आपसमे ताना बाना जकाँ जुटल। एक-दोसरक प्रति समर्पित। एककेँ बिना दोसरक सम्पादन असंभव।
15 दिनक पितृपक्ष एखने अर्थात् 15 अक्टुबर 2012क समाप्त भेल अछि। ऐ पन्द्रह दिनमे हमरा लोकनि अपन समस्त स्वर्गवासी पितृ एवं मातृकेँ स्मरण करैत हुनका लोकनिकेँ तील-जलसँ तृप्त करैत छी। आवाह्न तर्पन आ पुन: जयबाक िनवेदन :
“ऊँ आगच्छन्तुमे पित्र इमम् ग्रहनन्तु जलाजलिम्।।”
"हे पित्र (मातृ) आऊ आ जलकेँ स्वीकार करू। आब अहाँ देवलोकमे छी। तँए हमरा लोकनिक कल्याण करू।
पितृ पक्षमे लगातार पन्द्रह दिन धरि राजस्थानक मेवाड़ (अर्थात् उदयपुर, महासमद) आ मध्यप्रदेशक मालवा (उज्जैन, इन्दौर ग्वालियर आदि ) मे कुमारि कन्या सभ सांझी पूजैत छथि। सांझीमे अनेक तरहक चित्रकलाक आ विम्बक िनर्माण करैत छथि, गीत गबैत छथि आ अन्तत: सांझीकेँ जलकरमे भसा दैत छथि। सांझीक पूजा स्वर्गीया मातृ लोकनिक, आवाह्न आ कृतज्ञताक अर्पन मानल जा सकैत अछि।
सांझीक पूजा आ प्रचलन ओना तँ राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उतराखण्ड , उड़ीसा आ अपन मिथिलोमे कुनो ने कुनो रूपमे व्याप्त अछि। हरियाणामे ई सेहो बहुत उत्कृष्ठतासँ मनाएल जाइत अछि। सांझी केर अनेक नाम यथा- सांझी, सांजी, संझ्या, संध्या, संधा, हांजी, हज्जा इत्यादिसँ जानल जाइत अछि।
पितृपक्षमे पन्द्रह दिन धरि मेवाड़ आ मालवाक कुमारि कन्या लोकनि घरक बाहरी देबालपर गाएक गोबरसँ आ माटि स मोटगर लेप बना एक तरहक वर्गाकार आकृति कऽ ओइपर विभिन्न तरहक चित्रांकनक िनर्माण करैत छथि। संगे अनुष्ठान, गीत-नाद, पूजा-पाठ सेहो चलैत रहैत छैक। ओइ समैमे अगर उज्जैन शहरक सिंहपुरा आदि क्षेत्रमे जएब तँ लागत जेना कुनो कला िदर्घाक वीथिका मे आबि गेल छी। कलाकृतिकेँ देखि भाव-विभोर भेने बिना नै रहब। तेरहम दिन किला-कोटक िनर्माण होइत छैक। किला कोटक अर्थ भेल कलाकेँ चारुदिस सँ राजमहलक किला जकाँ गढ़ बना देनाइ। अन्तत: पन्द्रहम दिन सांझीक पूरा रूप प्रसस्त भऽ जाइत छैक। पन्द्रहमे दिनक सांझमे तमाम चित्रकेँ खुरेचि कुमारि कन्या, नव ब्याहल लड़की (जे बिआहक प्रथम वर्षमे सांझी देवीक उद्यापन करैत छथि।) समस्त खुरचल सामग्रीकेँ लऽ पोखरि धार, नदी आदिमे विसर्जन कऽ दैत छथि। विसर्जनक दृश्य बड्ड भावमय होइत छैक। लड़की सभ गबैत, नचैत नव वस्त्रसँ सजल माधुर्यक वातावरण बनेने रहैत छथि।
सांझीमे प्रयुक्त विम्ब आ रूप सांझी लोककथाक आधारपर होइत छैक। गोबरसँ नीप बेस बना ओइपर फुलक पंखुरी, चमकम कागत आदिसँ चित्र बनाएल जाइत छैक। सांक्षी देवीक गीत गएल जाइत छैक। किछु चित्र एहनो होइत छैक जे नव ब्याहताकेँ पारिवारिक जीवनक आवश्यकताकेँ सूचित अथबा प्रदर्शित करैत छैक। ओइ श्रेणीमे टी.वी., फ्रीज, मोटर बाईक, गैसक चुल्हा आ सिलिण्डर इत्यादि सेहो मनोहारी ढंगसँ चित्रित कएल भेट जाएत।
सांझी के छलीह? ऐ सम्बन्धमे अनेक तरहक दंत कथा छैक। जेना कि सांझी दुर्गाक एक रूप छथि; ब्रह्माक पुत्री छथि; सांझी पार्वती अर्थात शिवक अर्धांगिनी छथि; सांझी वैदिक देवी छथि जिनकर उपासना संध्या अर्थात् सांझमे कएल जाइत अछि; सांझी लक्ष्मी नारायणक प्रतिरूप छथि; सांझी नवदुर्गाक प्रतिमूर्ति छथि; सांझी बृन्दावन धामक देवी छथि; सांझी राजस्थानक संगानेरक कन्याक छथि जिनकर बिआह अजमेर छलन्हि; सांझी कुमारि कन्या–सबहक अराध्य आ प्रीय देवी छथि, सांझी राजस्थानक बगड़ावत क्षेत्रमे लोक आख्यायनमे प्रशंसित देवी थीकीह आ अन्तत: सांझी सूर्य देवक अर्धांगिनीक रूपमे सेहो जानल जाइत छथि।
चित्रित चित्रांकन आ मनुक्खक आकृतिसँ एना ज्ञात होइत अछि जे सांझी एक ब्याहल कन्या छलीह। जिनकर वैवाहक जीवन सफल नै रहलनि। अनमेल बिआह छलन्हि। पति, सासु, समाज सभ शोषण केलकन्हि।
कुमारि कन्या सभ भोरे उठि ताजा गोबर चूनि फूल, पत्तीक बेवस्था कऽ सांझी कलाक निर्माण मे लागि जाइत छथि। देबाल एक क्षेत्रकेँ वर्गाकार आकृतिकेँ गोबरक आ माटिक लेपसँ भरल जाइत अछि। परम्परा आ व रूचिकेँ मिश्रण कऽ मोटीफ केर निर्माण होइत अछि। हरेक कन्याक कल्पनाशीलता भिन्न होइत छन्हि। माय, पितियाइन सभ सेहो मदति करैत छन्हि जइसँ सांझी रमणगर आ सौन्दर्यसँ परिपूर्ण भऽ जाइक। बनेबाक सामग्रीक रूपमे गोबर, फूल, पात, धास, मक्कैक बालि, रंगारंग कागज, टीन फ्वाइल, कौड़ी, बांसक -बत्ती, सिन्दुर कुमकुम इत्यादिक प्रयोग सबतरि भेटत। मालवा अर्थात उज्जैन दिस गुल-तेवारी, गेन्दा लाल, चमेली, बरमासा फूल जेकरा सदा सुहागन सेहो कहल जाइत छैक केर प्रयोग होइत छैक। गुलाबी, उज्जर, पीकीस ब्राउन, आदि रंगक विशेष स्थान होइत छैक।
सर्वप्रथम आंगुरसँ प्रथम परतक निर्माण कैल जाइत छैक। जकरा गोहाली कहल जाइत छैक। ऐमे वर्गाकार क्षेत्र अथवा अष्टकारक निर्माण गोबर आ माटिक मोट लेपसँ देबालपर कएल जाइत छैक। प्रथम तीन आंगुरक सहायतासँ फीगरक निर्माण केलाक बाद फुल, पात, घास, आदिसँ साटि फीगरकेँ सजाएल जाइत छैक। प्रथम दिनक डिजाइनकेँ दोसर दिन उखाड़ि देल जाइत छैक। प्रत्येक तिथिक अनुसारे मोटीफक निर्माण कएल जाइत छैक। राजस्थानक एक गाममे प्रयुक्त तेरह दिनक सांझी चित्रण हमरा एना भेटल-
एकम (पहिल)- वन्दरावल
बीज (दोसर)- बीजना (पंखा)
तीज (तेसर दिन)- तीन, तिवाड़ी (तीन खिड़की)
चौठ (चारिम दिन)- चौपड़
पंचम (पॉचम दिन)- पांच कुवारे (पाँच कुमार बालक)
छठम (छठम दिन)- फूल छड़ी (फूलक डंडा)
सातम (सातम दिन)- सातिया (स्वास्तिक)
आठम (आठम दिन)- अष्टकोणी बाजोट (बैसैबला टूल)
नम (नवम दिन)- डोकरा-डोकरी (बुढ़आ बुढ़ी)
दशम (दसम दिन)- दस पकवान (दस तरहक ब्यंजन)
ग्यारस (ग्यारहम दिन)- जनेऊ
बारस (बारहम दिन)- सीड़ी (सीढ़ी)
तेरस (तेरहम दिन)- कोंट (ऐ दिनक सांझीमे सभ दिनमे युक्त चित्रक िनर्माण कएल जाइत छैक। एकरा अलाबे आरो बहुत रास बिम्वक निर्माण होइत छैक।)
सांझी कलाक रूप आ ओकर अर्थ लोक कलामे आश्चर्यजनक ज्ञान आ परम्पराक समावेश होइत छैक। कुनो चीज निरर्थक नै भेटत। जेना कि कतौ-कतौ सातम दिन हत्यारी-हतम केर रूपक विन्यास करबाक परम्परा छैक। तइ दिन ओइ आत्माक स्मरणमे रूपकेँ गढ़ल जाइत छैक जिनकर या तँ हत्या भऽ गेलन्हि या ओ स्वयं आत्महत्या कऽ लेलन्हि। नवम दिनमे डाकरिया नम बनैत छैक। ओइ दिन बुढ़ आ बुढीक चित्रण होइत छैक जे नवमी तिथि में अई जीवनकेँ तियाग केलन्हि। बीजना या बीजनी खजुर पंखाकेँ कहल जाइत छैक। तेसर दिन तिवाड़ी अर्थात तीनटा खिड़कीक निर्माण कएल जाइत छैक। चौपड़ खेलक चित्रण चारिम दिन कएल जाइत छैक। कतौ-कतौ छठम तिथमे फूल छाबरी अर्थात् फुलडालीक निर्माण करबाक परम्परा भेटत। सतिया अथवा हतिया स्वास्तिककेँ कहल जाइत छैक। एकर निर्माण सामान्यतया सातम दिन कएल जाइत दैक। अठकली फूलक निर्माण आठम दिन कएल जाइत छैक। कतौ-कतौ नवम तिथिमे नंगटा-नंगटी (वाद्य यंत्र) रचना सेहो कएल जाइत छैक।
लोक परम्परा शास्त्रीय परम्परामे सेहो प्रयुक्त कएल जाइत छैक। राजस्थानक श्रीनाथ जीक मंदिरमे मुर्तिक पाछाँ पिछवाइ कला आ केराक पातपर सांझी बनैत छैक। एकर दोसर ठाम जलमे सांझी बनैत ैछक। वृन्दावनमे फर्शपर रंगोलीक रूपमे अनेक तरहक रंग आ चाउरक आंटाक प्रयोगसँ कलात्मक सांझी राधा आ कृष्णक प्रेमकथा आ भक्तिकेँ स्मरण करबाक अप्रतीम कलाक रूपमे बनाएल जाइत छैक।
बहुत तँ जानकारी नै अछि परन्तु बुझना एना जाइत अछि जे मिथिलामे सांझ पूजक परम्परा आ कुमारि कन्या सभ द्वारे तुसारी पूजन सांझीक परम्पराक एक रूप अछि। नेपाल आ उत्तराखण्डमे सेहो किछु एहन परम्पराक विधान छैक।
एक दिन राजस्थानक उदयपुरसँ हल्दी धाटी घूमए लेल गेल रही। ओतए केर सांझी स्थानीय फूलक सहायतासँ बनाएल जाइत छैक। आ ओइमे राधा-कृष्णक प्रेमक प्रबलता दृष्टिगोचर भक्ति-भावसँ कलात्मक रूपे होइत छैक। फूलक एहेन विन्यास अन्यत्र असंभव। ओना लोककलामे कून नीक आ कोन खराप ई कहब असंभव मुदा मालवा अबिते मातर सांझीक कलासँ कुनो बटोही मंत्र मुग्ध भऽ जाइत अछि। ओतए केर नायिका केर आँखि अतेक कतरगर जे मोन करत दखिते रही। जेहने किशोरी तहने चित्रकला। मोन करत केकर प्रशंसा करी चित्रक अथवा चित्र बनेनिहारिकेँ?
राजस्थानमे एक कथा पता लागल। संझा छलीह सांवरि आ सामान्य गरीब घरक कन्या। हुनकर बिआह किछु खाश परिस्थितिमे एकटा नांगर ब्रह्मण जेकर नाम खोड़या ब्राह्मण रहैक- करा देल गेलन्हि। बेचारी संझाकेँ सासुरमे बड्ड कष्ट भेलन्हि। पति कहियो हुनकर भावनाकेँ सम्मान नै देलकन्हि। नैहरमे जनम हेबाक तुरंत बाद माय मरि गेलथिन्ह। कष्टेमे जनम भेलनि, विकट स्थितिमे बिआह भेलन्हि आ कष्टेमे मरि गेलीह सांझा। हुनका मरला उत्तर दैव लोकमे स्थान भेटलनि। आ जे कुमारि कन्या श्राद्ध पक्षमे हुनकर तेरहसँ पन्द्रह दिन अराधना करतीह तिनकर वैवाहिक जीवन सफल रहतैक। अही तरहक लोक मान्यता ओइ क्षेत्रमे छैक।
मिथिलाक सामा-चकेबा पाबनि जकाँ मालवामे सांझीक भाइ-बहिनक सम्बन्धकेँ मधुर बनेबैबला लोक-उत्सव मानल जाइत छैक। लड़की सभ अपन बीराजी (भैय्या)क लेल मंगल कामना करैत छथि। जे चीज नै भेटैत छन्हि तइ लेल भायसँ निवेदन कऽ ओइ चीजकेँ मंगा संझाक नीक जकाँ निर्माण , पूजा-पाठ करैत छथि।
अन्तत: यएह कहल जा सकैत अछि जे सांझी लोक परम्पराक एक अनुपम उदाहरण अछि. अहेन उदाहरण जइमे चित्रकला, नृत्यकला, संगीतकला, वस्तुकला आदिक सम्न्वित समावेश भेटत। ऐ तरहक अनुपम लोक कलाक रक्षण भेनाइ अनिवार्य।
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र
प्रधान संपादक - मिथिलांचल टुडे