सकारात्मकता खुशबू की तरह है, जो हमें ही नहीं, पूरे वातावरण को महका देती है। डर और आशंकाओं को मन से निकाल कर यदि हम सकारात्मक सोचें तो हमारा पूरा परिवेश खुशियों की महक से भर जाएगा...
लोककथा है। गर्मी और थकान से हारा एक मुसाफिर एक छायादार वृक्ष के नीचे बैठ गया। संयोग से वह जिस पेड़ के नीचे बैठा, वह कल्पवृक्ष था। कथाओं में कल्पवृक्ष एक मिथक है, माना जाता है कि उसके नीचे बैठ कर जो
कल्पना की जाए, वह फलीभूत होती है।वहां बैठकर उसने सोचा कि काश, कहीं से खाने को कुछ मिल जाता। अचानक उसके सामने भोजन अवतरित हो गया। उसने पानी के बारे में सोचा तो पानी उपस्थित हो गया। उसने पेट भरकर खाना खाया और पानी पिया..। खा-पीकर वह सोचने लगा, कहींइस पेड़ पर कोई प्रेत तो नहीं रहता,जिसने यह चमत्कार किया। उसके मन में डर बैठ गया। वह सोचने लगा कि अगर प्रेत है, तब तो वह मुझे खा जाएगा। उसने यह सोचा ही था कि पेड़ से कूदकर एक प्रेत उसे खा गया..।
हमारी लोक कथाएं हमें संदेश देने के लिए बनाई गई हैं। यह कहानी संदेश देती है कि मन में हम जैसे विचार लाएंगे, उसका वैसा ही असर होगा। यदि हम सकारात्मक सोचेंगे, तो उसकी प्रतिक्रिया भी सकारात्मक ही होगी। यह स्वयंसिद्ध बात भी है, क्योंकि अक्सर सकारात्मक रहने वाले लोगों को खुश और नकारात्मक सोच रखने वालों को अक्सर दुखी देखा जाता है।
दरअसल, हमारा मन हमारी सोच से पूरी तरह प्रभावित हो जाता है। हमारी सोच जैसी भी होती है, वह हमारे चेहरे पर, हमारे व्यवहार में, हमारे कार्र्यों में दिखने लगती है। यदि हमारे भीतर डर और आशंकाओं की आमद हो चुकी है, तो वह हमारी आंखों के जरिये, हमारे माथे की शिकन में, हमारी बातों में, हमारे कामों में दिखेंगी। हम डर और आशंकाओं को पूरी तरह जीने लगेंगे और कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे। हमेशा हम भयभीत और नकारात्मक बने
रहेंगे। डर का प्रेत हमें वाकई धीरे-धीरे खा ही जाएगा। सिर्फ डर ही नहीं, कोई भी नकारात्मक विचार यदि हम मन में बैठा लें, तो वह हमें पूरी तरह नकारात्मक बना देता है। यह नकारात्मक छवि हमें लोगों से दूर कर देती है। वहीं सकारात्मक विचार हमें लोगों से जोड़ते हैं, दूसरों की मदद करने को प्रेरित करते हैं, हमें लोकप्रियता देते हैं और व्यक्तित्व में भी निखार लाते हैं।
हमारी सोच का प्रभाव सिर्फ हम पर नहीं, दूसरों पर भी पड़ता है। यदि नकारात्मक विचारों से हमारा मुख म्लान है, हमारे चेहरे पर गुस्सा या दुख है, तो दूसरों को भी हमारा यह रूप पसंद नहीं आता। लोग हमसे दूर भागने लगते हैं। वहीं, जब हम एक मुस्कराहट के साथ लोगों के बीच जाते हैं, तो हमारा स्वागत गर्मजोशी से होता है और हमारी सकारात्मक सोच दूसरों को प्रभावित करती है। जितने भी लोकप्रिय लोग है, उन्होंने सकारात्मक सोच से ही अपने चेहरे पर तेज पैदा किया है। दरअसल, सकारात्मक सोच हमें लोगों से जोड़कर लोकहित के काम करने के लिए प्रेरित करती है।
भारतीय दर्शन मानता है कि हमारे सभी कर्मों का कारण मन है। अच्छा या बुरा कोई भी काम करने से पहले हमें मन
से स्वीकृति लेनी पड़ती है। अमृतबिंदु उपनिषद में कहा गया है, मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयो: अर्थात, मन बंधन का भी कारण है और मोक्ष का भी। मन के परिष्कृत हो जाने से या उसमें सकारात्मक ऊर्जा भर जाने से स्वत: ही दया, करुणा, उदारता, सेवा, परोपकार जैसे सद्गुणों का उदय हो जाता है। हमारा मन सकारात्मक विचारों के प्रवाह
से ही परिष्कृत होता है। मन में बैठा हुआ डर हमें हमारी सोच या कल्पना के अनुसार ही फल देने लगता है। कई बार लोगों को भूत-प्रेत दिखाई देने लगते हैं, जबकि वैज्ञानिक युग में उनका कोई अस्तित्व नहीं माना जाता। यह उसी सोच और कल्पना का प्रभाव है कि जो है ही नहीं, उसे भी
हम देखने लगते हैं। मनोविकारों से बचने के लिए हमें सृजनात्मक और सकारात्मक सोच अपनानी होगी। ऐसा करने से हमें सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे।
भगवानश्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, जिसका मन वश में है, राग-द्वेष से रहित है, वह स्थायी प्रसन्नता प्राप्त करता है। जो व्यक्ति मन को वश में कर लेता है, उसी को कर्मयोगी
कहा जाता है।
गौतम बुद्ध ने कहा था, मन को मारने से इच्छाएं नहीं मरती, इसलिए मन को मारने की नहीं, उसे साधने की जरूरत है।
मन को साधने का अर्थ यही है कि वह नकारात्मकता से प्रेरित न हो। इसका यही उपाय है कि मन को सकारात्मक विचारों की खुराक दी जाए, ताकि डर, आशंकाएं और नकारात्मक विचारों का प्रवाह रुक जाए और हम सदैव प्रसन्न, सुखी और मानवता की सेवा करने वाले बने रहें।