dahej mukt mithila

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मंगलवार, 8 अगस्त 2023

लघुकथा - रुबी झा मधुबनी

       भूषणक घरमे आय चारि दिन सँ चूल्हामे आँच नै पड़लैन। घरमे एको कनमा अन्न नै छलैन।पैन पीब क' दुनू बच्चा कें पाँजड़िमे साटि भूषणक कनिया सुति रहै छलैथि।आय बड़का बेटा (५)बड कानै लगलैन,और छोटका( २) कानैयो कें स्थितिमे नै छलैन ततेक कमजोर भँ गेल छलैन।भूषण सँ भूषनक कनियाँ कहलखिन्ह !यौय चलु ना   पीताम्बर बाबू कें खेतमे जन गेलैन्है धान काटैय लेल अपनो सब काटि आनब ।और बोइन जें हैत ओहि सँ चूल्हामे पजाड़ पड़त और बच्चा सब कें भूख शांत हैत।लागैया दुनू बच्चा कें अन्न बिना प्राण निकैल जैत।भूषण  बजला मइर जैब चारु प्राणी पेटमे पेट सटा कँ से मंजूर। लेकिन दोसरा कें खेतमे ब्राम्हण भँ कँ बोइन करय कोना जायब।लोक कि कहत ? समाज कि सोचत ?

कनिया कहलखिन्ह कियै ब्राम्हण भेनाय अभिशाप छै कि ?

भूखल-प्यासल घरमे प्राण त्यैग देब लेकिन किनको खेत मे काज करय नै जैब।लोक कि कहत, समाज कि सोचत ?

समाज हमरा खाय लेल द जायया कि ?

हमरा सँ तँ नीक फेकना अछि दुनू प्राणी बोइन करैया और बच्चा सब कें पोसैयै।

कनियाक बात सुनि भूषण मुरी झुकोने चुपचाप बैसल रहि गेलैथ।

नहिं किछु बजला आ नहिं हिलला!

आखिर ओ ब्राह्मण छलैथ कोना ककरो दोसरक खेतमे बोइन करऽ जैतैथ।

            इ जें मैथिल समाजक ढकोसलापन अछि ताहि कारणे सेहो अपने सब बहुत पाछु रैह गेलौंह।

और पलायन कें एकटा मुख्य कारण हमरा जनैत ईहो  अछि।

परदेशमे जा कँ हमसब सब काज करब,ठेली- रेरी लगायब,दोसरक घरमे काज करब।

लेकिन अपन गाम मे रहि कँ बबुआनी छाँटब।

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