dahej mukt mithila

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शुक्रवार, 20 मई 2022

भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाला असली राजा कौन था

 *भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाला असली राजा कौन था ?*

*कौन था वह राजा जिसके राजगद्दी पर बैठने के बाद उनके श्रीमुख से देववाणी ही निकलती थी और देववाणी से ही न्याय होता था?*

*कौन था वह राजा जिसके राज्य में अधर्म का संपूर्ण नाश हो गया था।*

*महाराज विक्रमादित्य*

*बड़े ही दुख की बात है कि महाराज विक्रमादित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है। जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था और स्वर्णिम काल लाया था।*

*उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए, फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली।

*आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है।*

*अशोक मौर्य ने बोद्ध पन्थ अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था।*

*भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, 

*रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया।

*विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा। जिसमे भारत का इतिहास है अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे। हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे।*

*उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए, राज अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को दे दिया. वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है।*

*महाराज विक्रमादित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है।*

*विक्रमादित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे।*

*भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमादित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे। आप गूगल इमेज कर विक्रमादित्य के सोने के सिक्के देख सकते हैं।*

*कैलंडर जो विक्रम संवत लिखा जाता है वह भी विक्रमादित्य का स्थापित किया हुआ है।

*आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे , हिन्दी सम्वंत , वार , तिथीयाँ , राशि , नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही की रचना है , वे बहुत ही पराक्रमी , बलशाली और बुद्धिमान राजा थे।*

*विक्रमादित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे। न्याय , राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था।* *विक्रमादित्य का काल प्रभु श्रीराम के राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनी थी और धर्म पर चलने वाली थी।

*बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा विक्रमादित्य के बारे में हमारे स्कूलों कालेजों मे कोई स्थान नही है। देश को अकबर, बाबर, औरंगजेब जैसै दरिन्दो का इतिहास पढाया जा रहा है।*

*इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें जिससे हमारी संस्कृति का ज्ञान हमारी पीढ़ी जान सकें*

*जय हिंद*

शुक्रवार, 6 मई 2022

आज गांव सूने हो चुके हैं घर आज भी राह देखते हैं.

      घर आज भी राह देखते हैं. 


किसी दिन सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं? कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव, पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़,बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं? 

कल आप एक बार उन गली मोहल्लों से पैदल निकलिएगा जहां से आप बचपन में स्कूल जाते समय या दोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे।

तिरछी नज़रों से झांकिए.. हर घर की ओर आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर, बस किसी किसी घर के बाहर या खिड़की में आते जाते लोगों को ताकते बूढ़े जरूर मिल जायेंगे।

आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या  हैं ?

भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति चाहता है कि उसके एक बच्चा और ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे हों और बेहतर से बेहतर पढ़ें लिखें। 

उनको लगता है या फिर दूसरे लोग उसको ऐसा महसूस कराने लगते हैं कि छोटे शहर या कस्बे में पढ़ने से उनके बच्चे का कैरियर खराब हो जायेगा या फिर बच्चा बिगड़ जायेगा। बस यहीं से बच्चे निकल जाते हैं बड़े शहरों के होस्टलों में। 

अब भले ही दिल्ली और उस छोटे शहर में उसी क्लास का सिलेबस और किताबें वही हों मगर मानसिक दबाव सा आ जाता है   बड़े शहर में पढ़ने भेजने का।

हालांकि इतना बाहर भेजने पर भी मुश्किल से 1% बच्चे IIT, PMT या CLAT वगैरह में निकाल पाते हैं...। फिर वही मां बाप बाकी बच्चों का पेमेंट सीट पर इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बिज़नेस मैनेजमेंट में दाखिला कराते हैं। 

4 साल बाहर पढ़ते पढ़ते बच्चे बड़े शहरों के माहौल में रच बस जाते हैं। फिर वहीं नौकरी ढूंढ लेते हैं । सहपाठियों से शादी भी कर लेते हैं।आपको तो शादी के लिए हां करना ही है ,अपनी इज्जत बचानी है तो, अन्यथा शादी वह करेंगे ही अपने इच्छित साथी से।

अब त्यौहारों पर घर आते हैं माँ बाप के पास सिर्फ रस्म- अदायगी हेतु।   माँ बाप भी सभी को अपने बच्चों के बारे में गर्व से बताते हैं ।  दो तीन साल तक उनके पैकेज के बारे में बताते हैं। एक साल, दो साल, कुछ साल बीत गये । मां बाप बूढ़े हो रहे हैं । बच्चों ने लोन लेकर बड़े शहरों में फ्लैट ले लिये हैं। 

अब अपना फ्लैट है तो त्योहारों पर भी जाना बंद।  अब तो कोई जरूरी शादी ब्याह में ही आते जाते हैं। अब शादी ब्याह तो बेंकट हाल में होते हैं तो मुहल्ले में और घर जाने की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। होटल में ही रह लेते हैं।

 हाँ शादी ब्याह में कोई मुहल्ले वाला पूछ भी ले कि भाई अब कम आते जाते हो तो छोटे शहर,  छोटे माहौल और बच्चों की पढ़ाई का उलाहना देकर बोल देते हैं कि अब यहां रखा ही क्या है?

 खैर, बेटे बहुओं के साथ फ्लैट में शहर में रहने लगे हैं । अब फ्लैट में तो इतनी जगह होती नहीं कि बूढ़े खांसते बीमार माँ बाप को साथ में रखा जाये। बेचारे पड़े रहते हैं अपने बनाये या पैतृक मकानों में।

कोई बच्चा बागवान पिक्चर की तरह मां बाप को आधा - आधा रखने को भी तैयार नहीं।

अब साहब, घर खाली खाली, मकान खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है। अब ऐसे में छोटे शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये "प्रॉपर्टी डीलरों" की गिद्ध जैसी निगाह इन खाली होते मकानों पर पड़ती है । वो इन बच्चों को घुमा फिरा कर उनके मकान के रेट समझाने शुरू करते हैं । उनको गणित समझाते हैं कि कैसे घर बेचकर फ्लैट का लोन खत्म किया जा सकता है । एक प्लाट भी लिया जा सकता है। 

साथ ही ये किसी बड़े लाला को इन खाली होते मकानों में मार्केट और गोदामों का सुनहरा भविष्य दिखाने लगते हैं। 

बाबू जी और अम्मा जी को भी बेटे बहू के साथ बड़े शहर में रहकर आराम से मज़ा लेने के सपने दिखाकर मकान बेचने को तैयार कर लेते हैं। 

आप स्वयं खुद अपने ऐसे पड़ोसी के मकान पर नज़र रखते हैं । खरीद कर डाल देते हैं कि कब मार्केट बनाएंगे या गोदाम, जबकि आपका खुद का बेटा छोड़कर पूना की IT कंपनी में काम कर रहा है इसलिए आप खुद भी इसमें नहीं बस पायेंगे।

हर दूसरा घर, हर तीसरा परिवार सभी के बच्चे बाहर निकल गये हैं।

वही बड़े शहर में मकान ले लिया है, बच्चे पढ़ रहे हैं,अब वो वापस नहीं आयेंगे। छोटे शहर में रखा ही क्या है । इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं है, हॉबी क्लासेज नहीं है, IIT/PMT की कोचिंग नहीं है, मॉल नहीं है, माहौल नहीं है, कुछ नहीं है साहब, आखिर इनके बिना जीवन कैसे चलेगा?

भाईसाब ये खाली होते मकान, ये सूने होते मुहल्ले, इन्हें सिर्फ प्रोपेर्टी की नज़र से मत देखिए, बल्कि जीवन की खोती जीवंतता की नज़र से देखिए। आप पड़ोसी विहीन हो रहे हैं। आप वीरान हो रहे हैं।

आज गांव सूने हो चुके हैं 

शहर कराह रहे हैं |

सूने घर आज भी राह देखते हैं.. वो बंद दरवाजे बुलाते हैं पर कोई नहीं आता...!


मंगलवार, 3 मई 2022

.मैथिल ब्राह्मणोत्पत्ति

     


 काशी के ईशान दिशा में अंग देश के समीप जनकपुरी है, प्राचीन समय में वैवस्वतमनु के पुत्र इक्ष्वांकु व इक्ष्वांकु के पुत्र निमि यहाँ के प्रतापी सम्राट हुए। एक बार निमि ने मोक्ष की अभिलाशा से यज्ञ कराना चाहा, उस समय निमि के कुल गुरू वशिष्ठ इन्द्र के यहाँ यज्ञ कराने गए हुए थे। राजा ने कालगति को जान, समयाभाववश अन्य विद्वान ब्राह्मणों को बुलाकर यज्ञ प्रारम्भ करवा दिया, यज्ञ समाप्ति के अन्तिम चरण में वशिष्ठ मुनि यज्ञ मण्डप में पहुंच गए। वशिष्ठ जी यह देख अत्यन्त क्रोधित होते हुए बोले राजा तुमने मेरा अनादर किया है, कुलगुरू होते हुए मुझे सूचना भी नहीं दी और अन्य पण्डितों से यज्ञ करा रहा है, इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तेरी देह का पतन हो। तब राजा निम ने कहा, मुनिवर आपने स्वयं लोभवश होकर मेरी परिस्थिति को बिना सोचे-समझे मुझे श्राप दिया है। अतः मैं भी आपको श्राप देता हूँ कि तुम्हारा भी देह पतन हो। इस प्रकार यज्ञ मण्डप में राजा निमि व मुनि वशिष्ठ दोनों देह बन्धन त्याग स्वर्गवासी हुए।  

 इधर राजा निमि के शरीर त्यागने के पश्चात यज्ञ मण्डप में ब्राह्मणों ने विचार किया कि हमारे कारण मुनि वशिष्ठ ने राजा को श्राप दिया जिससे राजा का शरीर त्याग हुआ, इसका दोष हमें लगेगा, सांसारिक रूप से यह हम सभी ब्राह्मणों का अपमान अथवा ब्रहम शक्ति का अपमान है। अतः विद्या के धनी, वेदपाठी इन सभी ब्राह्मणों ने राजा निमि का वंश चलाने के लिए निमि राजा के मृत शरीर को यज्ञ कुण्ड पर रख अपनी विद्याशक्ति व मन्त्रशक्ति से उसका मंथन किया। फलतः उस यज्ञ कुण्ड से दिव्य देहधारी एक बालक का आविर्भाव हुआ। ब्राह्मणों ने उस बालक के तीन नाम रखें। 1.यज्ञ में जन्म लेने के कारण जनक 2.किसी देहधारी के बिना जन्म लेने के कारण विदेह 3.मंथन करने से जन्म लेने के कारण मिथि नाम हुआ। मिथि बड़े होने पर राजा बने, उन्होंने अपने नाम से एक नगरी बसाई, जहाँ अपना राजदरबार बनाया। उस नगरी का नाम मिथिला अथवा जनकपुर नाम रखा। राजा मिथि के राज्य क्षेत्र को मिथिलांचल कहते हैं। जो ब्राह्मण मिथिला क्षेत्र में रहते थे। वह मैथिल ब्राह्मण कहलाए।

यह मैथिल ब्राह्मण याज्ञवल्क्य मुनि की उपासना करने वाले शुक्ल यजुर्वेदीय व वेद वेदांग में पारंगत होते हैं। समस्त भारतवर्ष में सम्पूर्ण ब्रहम समाज के केवल 24 ऋषि मूल गोत्र कर्ता हैं, जिनमें से मैथिल ब्राह्मण समाज के 15 ऋषि गोत्र कर्ता हैं। 1.शाण्डिल्य, 2.वत्स, 3.काश्यप, 4.पारासर, 5.भारद्वाज, 6.कात्यायन, 7.गौतम, 8.कौशिक, 9.कृष्णात्रेय, 10.गाग्र्य, 11. विष्णुवृद्वि, 12.सावर्णय, 13.वशिष्ठ, 14.कौण्डिल्य, 15.मौद्गल। समस्त मैथिल ब्राह्मण वंश के 6 कुल भेद व 6 आस्पद हेैं। 1.श्रोत्रिय, 2.जोग्य, 3.पाँज, 4.गृहस्थ, 5.वंश, 6.गरीब। आस्पद- किसी नाम के अन्त में जो शब्द लगाया जाता है, उसे आस्पद कहते हैं। मैथिल ब्राह्मणों के 6 आस्पद होते हैं। झा, पाठक, ठक्कुर, मिश्र, सिंह व चौधरी ।

मैथिल ब्राह्मणों के वेद, शाखा, सूत्रादि- सभी मैथिल ब्राह्मण दो वेदों के मानने वाले होते हैं। शांण्डिल्य, वत्स, काश्यप, सावर्ण व कौशिक ऋषि सामवेदी, कौथुमी शाखा, गोभिल सूत्र, वाम शिखा, वाम पाद है। अर्थात् शुभ कार्यों में वाम चरण प्रथम प्रक्षालन करते हैं। शेष ऋषि यजुर्वेदी, शाखा माध्यानन्दिनी, कात्यायन,सूत्र, दक्षिण शिखा व दायाँ पाद प्रथम प्रक्षालन करते हैं। मिथिलांचल क्षेत्र का प्रमाण मिथिला, जिसे जनकपुर भी कहा जाता है, का बहुत बड़ा भाग नेपाल, कुछ भाग बंगाल व केवल सात जिले (दरभंगा, सहरसा, बेगूसराय, सीतामणि, मधुवनी,समस्तीपुर और कटिहार) ही मिथिलांचल के रूप में शेेष हैं।

मैथिल ब्राह्मणों की विशेषताएं- यद्यपि सभी ब्राह्मण उच्च, आदर्णीय व पूज्य होते हैं। किन्तु मिथिला तपस्वियों की भूमि होने के कारण वहाँ पर रहने वाले ब्राह्मण (मैथिल ब्राह्मण) विशेष पूज्यनीय आदर्णीय माने जाते थे। मिथिला का ब्राह्मण (मैथिल ब्राह्मण), कर्मकाण्डी, धर्मोपदेशक, ज्योतिष व मीमांसा के ज्ञाता व नीति के मर्मज्ञ होते थे। जिस समाज एवं देश एवं जिस जाति की शिक्षा एवं संस्कृति की अपनी अलग संस्कृति, अलग पहचान, अलग निशान, अलग भाषा हो, वह समाज महान माना जाता है। वह समाज सदैव महान माना जाता है। वह समाज सदैव अमर रहता है। मैथिल ब्राह्मणों की भाषा- मैथिल ब्राह्मणों की मैथिली भाषा सम्पूर्ण मिथिलांचल में प्रायः आम भाषा के रूप में बोली जाती है। मिथिला प्रदेश (दरभंगा आदि) क्षेत्रों में सभी विशेष साहित्य मैथिली भाषा में प्रकाशित होता है। इस क्षेत्र के निवासी एवं प्रवासी स्त्री पुरूष, बाल, युवा, वृद्व सभी आम बोलचाल में मैथिल भाषा का प्रयोग करते हैं। मैथिल ब्राह्मणों का रहन-सहन- मैथिल ब्राह्मणों का रहन-सहन समाज के अन्य पण्डितों से अलग था। साधारण सफेद धोती, बारह तनी युक्त सफेद बगलबन्दी, गले में दुपट्टा, सिर पर विशेष प्रकार की स्थाई रूप से गोल छत्तादार पगडी, एक मैथिल ब्राह्मण हजारों ब्राह्मणों मंे, बिना परिचय के, अपनी वेशभूषा से स्पष्ट पहचाने जा सकते थे।  

मैथिल ब्राह्मणों की शासन व्यवस्था-सम्पूर्ण भारत के सहस्त्रों भेद के ब्राह्मणों में मात्र मैथिल ब्राह्मण शासक के रूप में रहे, जिन्होंने अपना राज्य, अपनी राजधानी अपनी प्रजा, अपनी सेना बनाकर शासन किया। मिथिला की राज गद्दी पर कई सौ वर्षों तक पीढ़ी दर पीढ़ी मैथिल ब्राह्मण शासक रहे। मैथिल ब्राह्मणों के अतिरिक्त कोई भी ब्राह्मण शासक के रूप में नहीं रहा। यह श्रेय केवल मैथिल ब्राह्मण को ही जाता है। 

सर्वप्रथम हिजरी सं0 634 तदनुसार सन 1351 से 1388 तक में मुस्लिम बादशाह नवाब फिरोजशाह सुल्तान ने मैथिल ब्राह्मण वंश के प्रकाण्ड पण्डित कामेश्वर ठक्कुर के पुत्र योगीश्वर ठक्कुर को मिथिला का राज्य दानस्वरूप भेंट किया। माननीय योगीश्वर ठक्कुर जी ने अपने रण कौशल, विद्वता और वीरता से अपने सम्पूर्ण जीवनकाल तक मिथिला का शासन किया। पं0 योगीश्वर ठक्कुर के मैथिल ब्राह्मणों के संगठन का कार्य भारी परिश्रम के साथ अन्य विद्वान मैथिल ब्राह्मणों को साथ लेकर किया। 

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