गड़बड़ कहाँ हुई
एक बहुत ब्रिलियंट लड़का था। हर साल कक्षा में प्रथम आया करता था। साइंस में हमेशा उसने 100% स्कोर किया। अब ऐसे विद्यार्थी आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी चयन आईआईटी ( IIT )चेन्नई में हो गया। वहाँ से बी टेक ( B Tech ) किया और आगे की पढ़ाई करने अमेरिका चला गया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निया से एमबीए ( MBA ) किया।
अब इतना पढने के बाद तो वहाँ अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। उसने वहाँ भी हमेशा टॉप ही किया। वहीं नौकरी करने लगा। वहीं उसने 5 बेडरूम का घर खरीद लिया। चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से उसकी शादी हुई।
एक आदमी और क्या चाहता है अपने जीवन में? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गया, अमेरिका में सेटल हो गया, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख।
लेकिन दुर्भाग्य वश आज से चार साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली! अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली!!
आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई। ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी पत्नी से चर्चा की, फिर एक लम्बा सुसाइड नोट लिखा और उसमें बाकायदा अपने इस कदम को जस्टिफाई किया और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में।
इस केस को और उस सुसाइड नोट को कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ क्लिनिकल साइकोलाॅजी ने "क्या गलत हुआ?" जानने के लिए अध्ययन किया।
उस व्यक्ति के मित्रों से पूछताछ की गई। छानबीन से पता चला कि अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी। बहुत दिन खाली बैठे रहे। नौकरियाँ ढूँढते रहे। फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, तो मकान की किश्त नहीं भर पाये, और सड़क पर आने की नौबत आ गयी। बताते है कि कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पर तेल भरा। साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर पति पत्नी ने अंत में ख़ुदकुशी कर ली।
इस अध्ययन का विशेषज्ञों द्वारा निष्कर्ष निकाला गया कि उस आदमी को सफलता के लिए तैयार किया गया था। उसे असफलता के लिए कभी भी तैयार नहीं किया गया था। उसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए।
अब उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं। पढने में बहुत तेज़ था, हमेशा प्रथम ही आया। एक होशियार बच्चा अगर कोई गलती कर देता है तो माँ-बाप सोचते हैं कि कोई बहुत बड़ा गुनाह हो गया है। इसके लिए वे बच्चे सब कुछ करते हैं, हमेशा प्रथम आने के लिए। और हर बार की सफलता उन्हें और अधिक अपेक्षाओं की डोर से बांधती है। जाहिर है वे अपना पूरा समय अगली सफलता की तैयारी में लगा देते है, सो खेल कूद, घूमना फिरना, दोस्तो से लड़ाई, मस्ती इन सबके लिए समय ही नहीं मिला।
12th पास की तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया उस पर। वहाँ से निकला तो एमबीए ( MBA ) और अभी पढ़ ही रहे थे कि मोटी तनख्वाह की नौकरी। अब मोटी तनख्वाह, मतलब बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े-बड़े लक्ष्य!
जीवन वास्तव में हर पड़ाव पर नई चुनौतियाँ लेकर आता है। हमारी स्कूल और कॉलेज की डिग्रियाँ और मार्कशीट सारी चुनौतियों को स्वीकार करने की क्षमता नहीं रखती। वहाँ हमें हमारी क्लास में कितने नंबर मिले, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
जीवन की परीक्षाओं के प्रश्न किताबों में नहीं मिलते हैं, (out of syllabus) तो फिर हल वहाँ कैसे मिलेगा।
आज की शिक्षा प्रणाली द्वारा बच्चों के दिमाग को तो पोषित कर रहे हैं, पर ह्रदय को पोषित करने के लिए क्या कर रहे हैं? क्योंकि जीवन रूपी नैया को पार करने के लिए, जो धैर्य, दयालुता, करुणा, सहन शक्ति, प्रेम और साहस की जरूरत होती है, वे बीज तो ह्रदय में है। अगर ह्रदय को पोषित नहीं किया तो फिर हमारी जीवन रूपी ये नैया, जीवन की छोटी मोटी लहर मे डगमगाने लगेगी।
हर परिस्थिति को खुशी-खुशी धैर्य के साथ स्वीकार करने की क्षमता और उस परिस्थिति से उबरने का ज्ञान, इन सब का विवेक जगाना होगा।
"जब हृदय संतुष्ट हो तो मन अंतर्दृष्टि, स्पष्टता और विवेक प्राप्त करता ,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें