|| रमण दोहावली ||
1. दुनियाँ पाहन पूजता , नाहि बरन का मान ।
"रमण" बरन जो पूजता , काहे को भगवान ।।
2. नो दस माह आत लगे , जात कहा नहि जाय ।
"रमण" सन्देश सजन का , डोली कबहुँ पठाय ।।
3. रहे तो साठ सौ बरस , या तो आबत जात ।
"रमण" एही संसार में , मृत्यु साँची बात ।।
4. "रमण" आबे पता नही , जाबे अटल लकीर ।
स्वांस - स्वांस धरम कर , कह गए सन्त फकीर ।।
5. जहां धरम न , करम नही , करम नही कछु नाही ।
"रमण" धरम जेहि जानिए , एकहि धरम जग माहि ।।
6. है सृष्टि और रचैया , जैसे चाक कुम्हार ।
"रमण" फूटा पाँचो घट , घट पाँचो तैयार ।।
7. अस्सी नाही न तो नब्बे , नब्बे न तो सौ पार ।
लाया न तो , न ले गया , "रमण" जनम बेकार ।।
8. घट खाली भीतर पड़ा , ऊपर रूप सुहाय ।
"रमण" ललित लावण्य से , उदर क्षुधा नहि जाय ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
1. दुनियाँ पाहन पूजता , नाहि बरन का मान ।
"रमण" बरन जो पूजता , काहे को भगवान ।।
2. नो दस माह आत लगे , जात कहा नहि जाय ।
"रमण" सन्देश सजन का , डोली कबहुँ पठाय ।।
3. रहे तो साठ सौ बरस , या तो आबत जात ।
"रमण" एही संसार में , मृत्यु साँची बात ।।
4. "रमण" आबे पता नही , जाबे अटल लकीर ।
स्वांस - स्वांस धरम कर , कह गए सन्त फकीर ।।
5. जहां धरम न , करम नही , करम नही कछु नाही ।
"रमण" धरम जेहि जानिए , एकहि धरम जग माहि ।।
6. है सृष्टि और रचैया , जैसे चाक कुम्हार ।
"रमण" फूटा पाँचो घट , घट पाँचो तैयार ।।
7. अस्सी नाही न तो नब्बे , नब्बे न तो सौ पार ।
लाया न तो , न ले गया , "रमण" जनम बेकार ।।
8. घट खाली भीतर पड़ा , ऊपर रूप सुहाय ।
"रमण" ललित लावण्य से , उदर क्षुधा नहि जाय ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
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