|| रमण दोहावली ||
1 . सर्वोपरि जहाँ लक्ष्मी , सरस्वती चहूँ दास ।
"रमण" धरम न राज्य में , केवल भोग विलास ।।
2 . लड़ा मरा सब लोग क्यो , ले मजहब का नाम ।
"रमण" तु अपना करम से , किया धरम बदनाम ।।
3 . लड़िए न काहू पे मरिये , करीयहि परहित काम ।
एक है सृष्टि रचैया , "रमण" त्याग संग्राम ।।
4 . जात पात को लाइके , लड़ा मरा संसार ।
"रमण" धरम को लाय के , मत करिहौ व्यापार ।।
5 . "रमण" सम्पदा धरम नही , ना धरम कोई जंग ।
धरम जगत का प्रेम है , मिली हे , सब के संग ।।
6 . सरस्वती का दास "रमण" हे श्री हो स्वीकार ।
कृपा जाहि पर कीजिये , अर्थ मूल। संसार ।।
7 . "रमण" रे संचित कीजिये , गेंठी में कुछ दाम ।
उगता सूरज को सदा , दुनिया करे सलाम ।।
8 . मानुष एही संसार में , जैसे कटी पतंग ।
"रमण" पवन। ले जाएगा , चिथरा होगा अंग ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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