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रविवार, 2 सितंबर 2018

रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                         || रमण दोहावली ||
                                    

1 . सर्वोपरि जहाँ लक्ष्मी , सरस्वती चहूँ दास ।
"रमण" धरम न राज्य में , केवल भोग विलास ।।

  2 . लड़ा मरा सब लोग क्यो , ले मजहब का नाम ।
"रमण" तु अपना करम से , किया धरम बदनाम ।।

 3 . लड़िए न काहू पे मरिये , करीयहि परहित काम ।
    एक  है  सृष्टि  रचैया , "रमण" त्याग   संग्राम ।।

4 . जात    पात  को   लाइके , लड़ा   मरा   संसार ।
"रमण" धरम को लाय के , मत करिहौ व्यापार ।।

5 . "रमण" सम्पदा धरम नही , ना धरम कोई जंग ।
  धरम  जगत का  प्रेम है , मिली हे , सब  के संग ।।

6 . सरस्वती  का  दास "रमण" हे श्री  हो स्वीकार ।
 कृपा   जाहि   पर   कीजिये , अर्थ   मूल।  संसार ।।

7 . "रमण" रे  संचित  कीजिये , गेंठी में कुछ दाम ।
  उगता  सूरज  को  सदा , दुनिया  करे  सलाम ।।

8 . मानुष   एही   संसार    में , जैसे   कटी   पतंग ।
"रमण" पवन।  ले   जाएगा , चिथरा  होगा  अंग ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"

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