|| रमण दोहावली ||
1. नपा तुला धन चाकरी , अतुलित धन व्यापार ।
भिक्षाटन कछू नाहि धन , घृणित "रमण" उधार ।।
2. विद्या संचित बहु कीजिए , जीवन रत्न समान ।
कछुक दिवस भा रूप नयन , गुण का होत बखान ।।
3. उम्र चोर चोरी करे , एक दिन पकरै जात ।
"रमण" चिल्लावत चार चढ़ि , पाप न अधिक समात ।।
4. "रमण" उत्तम ज्ञान जेहि , दुर्गुन देखत नाहि ।
सोहत कीचड़ कमल दल , पूजत सब जग माहि ।।
5. उष्ण किरण रवि लेत शशि , शीतल देत प्रकाश ।
"रमण" सुनत जो दुरवचन , निकसे ज्ञान सुवास ।।
6. सागर से गागर भरे , घटे न कबहुँ नीर ।
"रमण" सामरथ जाहि में , नाही होत अधीर ।।
7. "रमण" प्रभुता जाहि में , सदा रहत गम्भीर ।
कथनी करनी एक नही , वही चलावत तीर ।।
8. "रमण" कहे तो झूठ है , और कहे तो साँच ।
न्याय नयन पट्टी बन्धी , निर्भय नंगा नाच ।।
9. साजन सावन बुन्द झर , वर विरहिन की नैन ।
दिन तो काटे कट गयो , काटे कटे न रैन ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
1. नपा तुला धन चाकरी , अतुलित धन व्यापार ।
भिक्षाटन कछू नाहि धन , घृणित "रमण" उधार ।।
2. विद्या संचित बहु कीजिए , जीवन रत्न समान ।
कछुक दिवस भा रूप नयन , गुण का होत बखान ।।
3. उम्र चोर चोरी करे , एक दिन पकरै जात ।
"रमण" चिल्लावत चार चढ़ि , पाप न अधिक समात ।।
4. "रमण" उत्तम ज्ञान जेहि , दुर्गुन देखत नाहि ।
सोहत कीचड़ कमल दल , पूजत सब जग माहि ।।
5. उष्ण किरण रवि लेत शशि , शीतल देत प्रकाश ।
"रमण" सुनत जो दुरवचन , निकसे ज्ञान सुवास ।।
6. सागर से गागर भरे , घटे न कबहुँ नीर ।
"रमण" सामरथ जाहि में , नाही होत अधीर ।।
7. "रमण" प्रभुता जाहि में , सदा रहत गम्भीर ।
कथनी करनी एक नही , वही चलावत तीर ।।
8. "रमण" कहे तो झूठ है , और कहे तो साँच ।
न्याय नयन पट्टी बन्धी , निर्भय नंगा नाच ।।
9. साजन सावन बुन्द झर , वर विरहिन की नैन ।
दिन तो काटे कट गयो , काटे कटे न रैन ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
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