|| रमण दोहावली ||
1. जीवन जियो पतंग सा , सदगुरु दैके ड़ोर ।
गगन बिचुम्बित होय के , "रमण" झूम चहुँ और ।।
2. राम नाम जपते रहो , एक - एक पल को तोल ।
"रमण" कंठगत प्राण जो , शेष सांस अनमोल ।।
3. पाप किए बहू धन बढे , संतति , सुख सम्मान ।
"रमण" धरम नहि निन्दिए , पीछे का फल मान ।।
4. मजदूरी है "रमण" की , फल का दाता राम ।
उतना ही ड़सको मिला , जिसका जितना काम ।।
5. जनम - जनम निरवंश हो , पर ना देहुँ कपूत ।
"रमण" एक कुलदीप दियो , इतनी कृपा बहुत ।।
6. धन का बैठक और है , निर्धन का कछु और ।
"रमण" देख मत डोलिहौं , लक्ष्मी का ना ठौर ।।
7. "रमण" अनुग्रह साधु की , निस दिन होत कमाल ।
संत अवज्ञा जेहि करे , सगरो जाय पताल ।।
8. "रमण" जाहि घट प्रेम हो , सवरी रामहि भाय ।
जो कुद्रीष्ट रघुनाथहि , लंका बच ना पाय ।।
9. गुरु मुख सुरसरि ज्ञान शब्द , बून्द बून्द अनमोल ।
प्यासा पीवै भव तरै , बाँकी दुनियाँ गोल ।।
रचयिता
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
1. जीवन जियो पतंग सा , सदगुरु दैके ड़ोर ।
गगन बिचुम्बित होय के , "रमण" झूम चहुँ और ।।
2. राम नाम जपते रहो , एक - एक पल को तोल ।
"रमण" कंठगत प्राण जो , शेष सांस अनमोल ।।
3. पाप किए बहू धन बढे , संतति , सुख सम्मान ।
"रमण" धरम नहि निन्दिए , पीछे का फल मान ।।
4. मजदूरी है "रमण" की , फल का दाता राम ।
उतना ही ड़सको मिला , जिसका जितना काम ।।
5. जनम - जनम निरवंश हो , पर ना देहुँ कपूत ।
"रमण" एक कुलदीप दियो , इतनी कृपा बहुत ।।
6. धन का बैठक और है , निर्धन का कछु और ।
"रमण" देख मत डोलिहौं , लक्ष्मी का ना ठौर ।।
7. "रमण" अनुग्रह साधु की , निस दिन होत कमाल ।
संत अवज्ञा जेहि करे , सगरो जाय पताल ।।
8. "रमण" जाहि घट प्रेम हो , सवरी रामहि भाय ।
जो कुद्रीष्ट रघुनाथहि , लंका बच ना पाय ।।
9. गुरु मुख सुरसरि ज्ञान शब्द , बून्द बून्द अनमोल ।
प्यासा पीवै भव तरै , बाँकी दुनियाँ गोल ।।
रचयिता
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
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