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मंगलवार, 11 सितंबर 2018

रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                        || रमण दोहावली ||
                                       

   1. आप है , तो पाप नहीं , पाप जहाँ , नहि आप ।
       तन छन मंगुर रे मना , " रमण " गोविन्द जाप ।।

    2. "रमण" क्वारा था रे जब , बाबा जी की मौज ।
          अब सोता ना जागता , है खटमल की फ़ौज ।।

    3. "रमण" भली सो जिन्दगी , सिर पर नाहिं उधार ।
         सुख  की  रोटी  खाय  के ,  सोबहुँ  पैर  पसार ।।

    4. कुमति  बढ़े  तो  धन  घटे  ,  पाप  बढ़े  निरवंश ।
         "रमण" काल के गाल में ,  रावण कौरव कंश ।।

    5. धन के मति पागल भयो ,  मन के मतिहि सबुर ।
         "रमण" मनोबल राखि हौ , तुझसे रब ना दूर ।।

    6. स्वारथ  का  सम्बन्ध  है , सगा  जगत ना कोय ।
      "रमण" गाँठ बल जाहि में , दुनिया उसकी होय ।।

    7. कथनी करनी तौलि के  ,  राखि तुला मनमाहि ।
         "रमण"  मड़ैया  बैठ  के , ऊँचा  देखत  नाहि ।।

    8. हीरा  परखत  जौहरी , गुण  को  परखत  ज्ञान ।
         पोथी अनपढ़ हाथ में , आखर एकहि समान ।।

                                    रचनाकार
                           रेवती रमण झा " रमण "
                                         


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