dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

apani bhasha me dekhe / Translate

मंगलवार, 11 सितंबर 2018

रमण दोहावली ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                        || रमण दोहावली ||
                                       

   1. आप है , तो पाप नहीं , पाप जहाँ , नहि आप ।
       तन छन मंगुर रे मना , " रमण " गोविन्द जाप ।।

    2. "रमण" क्वारा था रे जब , बाबा जी की मौज ।
          अब सोता ना जागता , है खटमल की फ़ौज ।।

    3. "रमण" भली सो जिन्दगी , सिर पर नाहिं उधार ।
         सुख  की  रोटी  खाय  के ,  सोबहुँ  पैर  पसार ।।

    4. कुमति  बढ़े  तो  धन  घटे  ,  पाप  बढ़े  निरवंश ।
         "रमण" काल के गाल में ,  रावण कौरव कंश ।।

    5. धन के मति पागल भयो ,  मन के मतिहि सबुर ।
         "रमण" मनोबल राखि हौ , तुझसे रब ना दूर ।।

    6. स्वारथ  का  सम्बन्ध  है , सगा  जगत ना कोय ।
      "रमण" गाँठ बल जाहि में , दुनिया उसकी होय ।।

    7. कथनी करनी तौलि के  ,  राखि तुला मनमाहि ।
         "रमण"  मड़ैया  बैठ  के , ऊँचा  देखत  नाहि ।।

    8. हीरा  परखत  जौहरी , गुण  को  परखत  ज्ञान ।
         पोथी अनपढ़ हाथ में , आखर एकहि समान ।।

                                    रचनाकार
                           रेवती रमण झा " रमण "
                                         


कोई टिप्पणी नहीं: