|| मैला - आँचल ||
एक बाग के तरुअर से
हम एक डाल के फूल ।
री मैया,क्यो करती तू भूल ।।
मैला - आँचल अपना करती
क्यो ममता पर कालिख भरती
क्यो विधाता की बगिया में
उगा रही तू शूल ।। री मैया.....
कभी नही ममता दिखलाती
हरदम मुझको डाँट पिलाती
मै भी गुड़िया तितली सी हूँ
मेरे साथ भी झूल ।। री मैया....
मै नारी, सब कर सकती हूँ
गुण विधा सब भर सकती हूँ
मै मर्दों से कदम मिलाकर
चल सकती अनुकूल ।। री मैया...
सुख सुबिधा से मै खाली हूँ
बस , पर घर जाने वाली हूँ
कितना दिल का पत्थर हो तुम
री ममता का भूल ।। री मैया.....
अपनी नीयत को बिगार कर
मानव जीवन से तू हार कर
जो ज्योती दी,उसी आँख में
झोंक रही तू धूल ।। री मैया......
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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