|| जब बाँझन जानै जहाँन मोही ||
सखी प्रात की बात से घात घना
चित चारु ब्यथा बड़ फूटत ज्वाला ।
दृग नोर के छोर से ठोर भरा
कल-कण्ठ पड़ा विष भाग्य का प्याला ।।
तरुवर फल - फूल भरा मधु - मास
मधुकर मन लिप्त सुहावन सोहे ।
अटखेल करे बृन्द बाले - विहग
भर चंचु आहार तहाँ मनमोहे ।।
चहुँओर सुनारि , जो प्यारि सुधर
रे ! मन मोद महा चित हो सुजला ।
मधुराधर धार दुलारे - मलार
सुलालन भरा गोद सजल सुफला ।।
पति - प्रीत - फुहार के बीच अटूट
जहाँ सोहय सुमंगल , गीत तहाँ ।
शिशु - मातु लावण्य लता चहुँ चारु
सोहे दिव्य छटा अरे और कहाँ ।।
जब बाँझन जानै जहाँन मोही
उपहास करे तब ताना मारी ।
जो न भाल का रेख रे देख विधि
बहु व्यंग - व्यथा हो प्रतिपल भारी ।।
सुधि सौतन साते समुद्र साविष
भल भीषण जीवन होय दुखारी ।
जो न भाग्य का रेख रे देख विधि
क्यो रूप रचा अनुपम सुकुमारी ।।
पट - पीत पुनीते श्रृंगारे शुचि
भा एक न रे , संताप की टोली ।
कल कंगन नूपुर धुन लाग जहाँ
श्रुति काग - करोड़हि कर्कश बोली ।।
पति - प्राण समान जो जानै सदा
सो नाम धरै मेरा कुलनाशी ।
बेलसूर अनाथ , हे नाथ यहाँ
जो नारि सदा षट पुण्य की राशी ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
सखी प्रात की बात से घात घना
चित चारु ब्यथा बड़ फूटत ज्वाला ।
दृग नोर के छोर से ठोर भरा
कल-कण्ठ पड़ा विष भाग्य का प्याला ।।
तरुवर फल - फूल भरा मधु - मास
मधुकर मन लिप्त सुहावन सोहे ।
अटखेल करे बृन्द बाले - विहग
भर चंचु आहार तहाँ मनमोहे ।।
चहुँओर सुनारि , जो प्यारि सुधर
रे ! मन मोद महा चित हो सुजला ।
मधुराधर धार दुलारे - मलार
सुलालन भरा गोद सजल सुफला ।।
पति - प्रीत - फुहार के बीच अटूट
जहाँ सोहय सुमंगल , गीत तहाँ ।
शिशु - मातु लावण्य लता चहुँ चारु
सोहे दिव्य छटा अरे और कहाँ ।।
जब बाँझन जानै जहाँन मोही
उपहास करे तब ताना मारी ।
जो न भाल का रेख रे देख विधि
बहु व्यंग - व्यथा हो प्रतिपल भारी ।।
सुधि सौतन साते समुद्र साविष
भल भीषण जीवन होय दुखारी ।
जो न भाग्य का रेख रे देख विधि
क्यो रूप रचा अनुपम सुकुमारी ।।
पट - पीत पुनीते श्रृंगारे शुचि
भा एक न रे , संताप की टोली ।
कल कंगन नूपुर धुन लाग जहाँ
श्रुति काग - करोड़हि कर्कश बोली ।।
पति - प्राण समान जो जानै सदा
सो नाम धरै मेरा कुलनाशी ।
बेलसूर अनाथ , हे नाथ यहाँ
जो नारि सदा षट पुण्य की राशी ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें