।। अश्रुपात ।।
" खाके दूध की कसम "
" खाके दूध की कसम "
माँ तेरी दुर्दशा का है आज मुझको गम ।
मै बचन देरहा हूँ खाके दूध की कसम ।।
कही जली,तो कही अरी जलाई जा रही ।
जो असह यातनाओ से सताई जा रही ।।
तू नीलाम हो रही है सरेआम बोल कर ।
कैसी घिनौंनी बाते लिखूँ आज खोलकर ।।
कोठे पर खड़ी इन्तजार कर रही है वो ।
दौलत के हाथ जिस्म यहाँ धररही है वो ।।
रे ! दो साल की अबोध बालिकाएँ लूट गई ।
यहाँ खिलने से पहले जो कली टूट गई ।।
हैरान हूँ मै आज ऐसी बात सोचकर ।
हैवान बाप बेटी का जहाँ जिस्म नोच कर ।।
हवस पूर्ति कर रहा रे आज वो पिशाच ।
पवित्र भूमि भारत पर विभत्स नंगा नाच ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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