|| हाय रे इज्जत मेरी ||
मुझ विधवा का व्याह होना
क्या ? बड़ा दुश्कर्म है ।
रे ! वेद-पाखण्डी बता फिर
क्या ? तुम्हारा धर्म है ।।
कट गई अरे नाक तेरी
और तुमको क्षोभ है ? ।
रे क्रूर क्यो न तुम बताते
जो तुम्हारा लोभ है ।।
यहाँ, चाहते हो भूख से
रोती बिलखती मै रहूँ ।
तेरी ही टुकड़े पर पलूँ
रे और तुझसे ये कहूँ ।।
हे भाग्य दाता अन्न दाता
दुःख मेरा तू दूर कर ।
तेरे चितवन की चहेती
तू ही मेरा जानेजिगर ।।
यह मेरी चढ़ती जवानी
जिन्दगी तेरे लिए ।
तेरी दया की दृष्टि - भिक्षा
भाग्य में मेरे लिए ।।
तो मै पावन धर्म मय,यहां
कुल - वधू विधवा तेरी ।
मेरा हाय पाखण्डी - धरम
हाय रे इज्जत मेरी ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
मुझ विधवा का व्याह होना
क्या ? बड़ा दुश्कर्म है ।
रे ! वेद-पाखण्डी बता फिर
क्या ? तुम्हारा धर्म है ।।
कट गई अरे नाक तेरी
और तुमको क्षोभ है ? ।
रे क्रूर क्यो न तुम बताते
जो तुम्हारा लोभ है ।।
यहाँ, चाहते हो भूख से
रोती बिलखती मै रहूँ ।
तेरी ही टुकड़े पर पलूँ
रे और तुझसे ये कहूँ ।।
हे भाग्य दाता अन्न दाता
दुःख मेरा तू दूर कर ।
तेरे चितवन की चहेती
तू ही मेरा जानेजिगर ।।
यह मेरी चढ़ती जवानी
जिन्दगी तेरे लिए ।
तेरी दया की दृष्टि - भिक्षा
भाग्य में मेरे लिए ।।
तो मै पावन धर्म मय,यहां
कुल - वधू विधवा तेरी ।
मेरा हाय पाखण्डी - धरम
हाय रे इज्जत मेरी ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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