|| माँ लौटा दे उस छवि को ||
माँग रहा हूँ आज शारदे
लौटाना मत मुझ कवि को ।
सदा समर्पित जन परहित जो
माँ लौटा दे उस छवि को ।।
व्यर्थ छन्द सुरताल रागिंनी
कवि विहित अनुपम अनुराग ।
आज चाहिए इस भूतल को
वो काव्य , हो जिसमे आग ।।
प्रेमलाप ताप विरहानल
करो बन्द व्यंग परिहास ।
महाप्रलय का विगुल बजाकर
लौटादेना मेरा विशवास ।।
लेखक
रेवती रमण झा "रमण"
माँग रहा हूँ आज शारदे
लौटाना मत मुझ कवि को ।
सदा समर्पित जन परहित जो
माँ लौटा दे उस छवि को ।।
व्यर्थ छन्द सुरताल रागिंनी
कवि विहित अनुपम अनुराग ।
आज चाहिए इस भूतल को
वो काव्य , हो जिसमे आग ।।
प्रेमलाप ताप विरहानल
करो बन्द व्यंग परिहास ।
महाप्रलय का विगुल बजाकर
लौटादेना मेरा विशवास ।।
लेखक
रेवती रमण झा "रमण"
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