" समर्पित "
परम् पावन पाद पितु , रज कण - कृपा - बरसात ।
काव्य कृत कर शुभ समर्पित , भाव साश्रुपात ।।
|| खण्ड काव्य ||
"सन्देस"
आंसू की बुँदे सिमट - सिमट , मै इसे पिरोकर लाया हूँ ।
बहजाओगे अश्क बून्द में , मै यही बताने आया हूँ ।।
कुछ तो घर से , कुछ आँगन से , जो मैने व्यथा बटोरी है ।
कुछ तो पाया कुछ मिला नही,जो है संचित वो थोड़ी है ।।
कन्या कहकर पाला है जिसे,वस्तु समझकर दान किया
फिर लक्ष्मी कहकर जला दिया,रे कितना कर्म महान किया
कुछ नाम और कुछ काम अरे , कथनी करनी में भेद यहॉ
क्या यही हमारी मानवता ?, जिसका मुझको है खेद यहाँ
सुलगाकर खुद चिनगारी को , तू अपनाही घर फूँक दिया
मानव होकर तू रे मानव , मानव जीवन पर थूक दिया ।।
दीपक तो है हर घर - घर में , मै उसे जलाने आया हूँ ।
अवसर अब भी है , चेत चलो , तुझको समझाने आया हूँ
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
परम् पावन पाद पितु , रज कण - कृपा - बरसात ।
काव्य कृत कर शुभ समर्पित , भाव साश्रुपात ।।
|| खण्ड काव्य ||
"सन्देस"
आंसू की बुँदे सिमट - सिमट , मै इसे पिरोकर लाया हूँ ।
बहजाओगे अश्क बून्द में , मै यही बताने आया हूँ ।।
कुछ तो घर से , कुछ आँगन से , जो मैने व्यथा बटोरी है ।
कुछ तो पाया कुछ मिला नही,जो है संचित वो थोड़ी है ।।
कन्या कहकर पाला है जिसे,वस्तु समझकर दान किया
फिर लक्ष्मी कहकर जला दिया,रे कितना कर्म महान किया
कुछ नाम और कुछ काम अरे , कथनी करनी में भेद यहॉ
क्या यही हमारी मानवता ?, जिसका मुझको है खेद यहाँ
सुलगाकर खुद चिनगारी को , तू अपनाही घर फूँक दिया
मानव होकर तू रे मानव , मानव जीवन पर थूक दिया ।।
दीपक तो है हर घर - घर में , मै उसे जलाने आया हूँ ।
अवसर अब भी है , चेत चलो , तुझको समझाने आया हूँ
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
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