|| अबला आँख का अश्रुपात ||
हिंसा लोभ प्रपञ्च काम चित
आज मुख्य आधार बना ।
बहू , बहन , माँ , बेटी के
जिस्मो का व्यापार बना ।।
दुःखद दृश्य मेरे मन को
बार - बार जब उकसाया ।
उर ज्वाला समराग्नि जगी
जो लघु लेखनी लिख पाया ।।
अबला आँख का अश्रुपात
जो समाज का दर्पण है ।
मुझे प्रसाद मिला माँ का
सादर भाव समर्पण है ।।
लेखक
रेवती रमण झा "रमण"
mob - 9997313751
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