|| जो निर्भय शब्द पिरोता है ||
सुख - दुःख अनुभूति तरंगो में
लय छन्द छटा नव जो लाता ।
प्रस्फुटित अंकुरण का गति लय
को,जो लिखता कवि कहलाता ।।
नि:स्वार्थ भाव , निष्पक्ष् पूर्ण
जो निर्भय शब्द पिरोता है ।
नित युग हितकर वह अमर काव्य
जग वही कुशल कवि होता है ।।
नव मिले चेतना , चित चिन्ता
जो दूर करे , वह कविता है ।
रे मानव क्या उस ईश्वर को
मजबूर करे वह कविता है ।।
इस लघु लेखनी की गति से
युग घात करे वह कविता है ।
नित ऊँच नीच का वर्ण मिटा
जो बात करे वह कविता है ।।
उस रेगिस्तान मरुस्थल में
जो ऋतुवसन्त वह कविता है ।
विरहिन की सूनी सेजो पर
जो प्रणय कन्त वह कविता है ।।
मानव छण भंगुर जीवन का
अमरत्व महा - रस कविता है ।
वीरो के भुजबल की गाथा
वीरत्व महा - रस कविता है ।।
भव दारुण दुःख सागर का
पतवार हमारी कविता है ।
वह पतित पावन कुशल कृष्ण
अवतार हमारी कविता है ।।
हर कर्म हमारी कविता है
हर साँस हमारी कविता है ।
अरे ! छल प्रपच्ची जीवन का
विशवास ही मेरी कविता है ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
सुख - दुःख अनुभूति तरंगो में
लय छन्द छटा नव जो लाता ।
प्रस्फुटित अंकुरण का गति लय
को,जो लिखता कवि कहलाता ।।
नि:स्वार्थ भाव , निष्पक्ष् पूर्ण
जो निर्भय शब्द पिरोता है ।
नित युग हितकर वह अमर काव्य
जग वही कुशल कवि होता है ।।
नव मिले चेतना , चित चिन्ता
जो दूर करे , वह कविता है ।
रे मानव क्या उस ईश्वर को
मजबूर करे वह कविता है ।।
इस लघु लेखनी की गति से
युग घात करे वह कविता है ।
नित ऊँच नीच का वर्ण मिटा
जो बात करे वह कविता है ।।
उस रेगिस्तान मरुस्थल में
जो ऋतुवसन्त वह कविता है ।
विरहिन की सूनी सेजो पर
जो प्रणय कन्त वह कविता है ।।
मानव छण भंगुर जीवन का
अमरत्व महा - रस कविता है ।
वीरो के भुजबल की गाथा
वीरत्व महा - रस कविता है ।।
भव दारुण दुःख सागर का
पतवार हमारी कविता है ।
वह पतित पावन कुशल कृष्ण
अवतार हमारी कविता है ।।
हर कर्म हमारी कविता है
हर साँस हमारी कविता है ।
अरे ! छल प्रपच्ची जीवन का
विशवास ही मेरी कविता है ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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