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मंगलवार, 22 जनवरी 2019

" माँ " अश्रुपात ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                                  " माँ "
                            || अश्रुपात ||
                                       

    ममता का मार्तण्ड धरा पर , एक ही माँ का दिल है ।
    शेष सभी खधोत यहाँ पर,जिस की छवि मुश्किल है ।।

    गर्भावस्था की पीड़ा नित , जो हँसकर झेल रही है ।
    अश्रुपात का पीकर जल  ,  जो गम से खेल रही है ।।

    दसो माह के आनन से नित   ,   यही वेदना आती ।
    दस तन्त्री का तार देख   ,   दोनों आँखे भर जाती ।।

    दुस: प्रसव की उस पीड़ा में   ,   पुनर्जन्म लेती है  ।
    असह वेदना सहकर कुल को , कुल - दीपक देती है ।।

    नया जन्म पाकर जो पाती , उस अमोल घड़ी को ।
  लिख पाया क्या कोई अबतक,उसकी दुखद कड़ी को ।।

    रहकर भूखी पेट सदा  ,  बच्चो को दूध पिलाती  ।
    सूखे वस्त्रो में लेके शिशु   ,   जो गीले में सो जाती ।।

    मन मोहनेवाली ये जो   ,  सघन दीपो की माला  ।
    तन - बाती को सदा जला कर , देती रही उजाला  ।।

    माँ की मूरत को पहचानोगे, वो कब दिन आएगा ।
    रे ! भारत भूमि गर्व से मस्तक  , ऊँचा करपाएगा  ।।

    माँ की सेवा से बढ़कर   ,   अरे कोई कर्म नही है ।
    उस चरण - रज - कण के आगे , कोई धर्म नही है ।।

                                   रचनाकार
                         रेवती रमण झा "रमण"
                                        


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