dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

बजरंग बत्तीसी ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

|| बजरंग बत्तीसी ||


                                        
|| दोहा ||
शैल सुता सुत लम्बोदर  ,  शंकर पूत्र गणेश ।
विघ्न हरन मंगल करन , काटू हमर कलेश ।।
  
गुरु पद पंकज विमल रज , सुरभित चहुँ मकरंद ।
सिया राम सुख धाम चित   ,   शीतल चारु चंद ।।

|| चौपाई ||

1. जय हनुमंत सुमति सुख गंगे ।
    यमुन चपल चित चारु तरंगे ।।

2. जय लंका विध्वंश काल मणि ।
छ्मु अपराध सकल दुर्गुण गनि ।।

3. अंजनि  पूत्र   केशरिक  नंदन ।
शंकर सुवन जगत दुख भंजन ।।

4. कोटि सूर्य सम ओज प्रकाश ।
 रोम - रोम  ग्रह  मंगल  बास ।।

5. तारावलि जते तत बुधि ज्ञान ।
  पूँछे  भुजंग  ललित  हनुमान ।।

6. जतय अहाँ मंगल तेहि द्वारि ।
करुण कथा कते कहब पुकारी ।।

7. जाहि पंथ सिय कपि तँह जाऊ ।
  रघुवर    भक्त्त   नाथे   हर्षाऊ ।।

8. यतनहि धरु रघुवंशक लाजहि ।
नै एहि सनक कतौ भल काज ।।

9. श्री  रघुनाथहि  जानकी  जान ।
मूर्छित   लखन   आई   हनुमान ।।

10. बज्र  देह  दानव  दुख  भंजन ।
कालहि  काल  केसरिक  नंदन ।।

11. जनम सुकारथ अंजनि लाल ।
 राम  दूत  कय  देलहुँ  कमाल ।।

12. रंजित गात सिन्दूर सुहावन ।
कुंचित केश कुण्डल मन भावन ।।

13. गगन विहारी मारुति नंदन ।
 शत - शत कोटि हमर अछि वंदन ।।

14. बल बुधि बाली दसानन गेल ।
 जकर  अहाँ  विजयी  वैह  भेल ।।

15. लीला  अपरम्पार  अहाँ  के ।
पूजि  रहल   संसार   अहाँ  के ।।

16. अंजनि  पुत्र  पताल  पुर  गेलौ ।
राम  लखन  के  प्राण  बचयलौ ।।

17. पवन  पूत्र  अहाँ जाकय लंका ।
अपन  नाम  के  पिटलौ  डंका ।।

18. यौ  महाबली  बल  के  जानल ।
अक्षय कुमारक प्राण निकालल ।।

19. हे  रामेष्ट   काज   बड़  कयलहुँ ।
राम  लखन  सिय  उरमें  लयलहुँ ।।

20. फाल्गुन सखा ज्ञान गुण सार ।
रूद्र   एकादश    के   अवतार ।।

21. हे पिंगाक्ष सुमति सुख मोदक ।
तंत्रे   मन्त्र   विज्ञान  के    शोधक ।।

22. अमित विक्रम छवि सुरसा जानि ।
बिकट  लंकिनी   लेल  पहचानि ।।

23. उदधि क्रमण गुण शील निधान ।
अहाँ सनक नञी कियो बुद्धिमान ।।

24 . सीता  शोक  विनाशक  गेलहुँ ।
 चिन्ह  मुद्रिका   दुहुँ   दिश  देलहुँ ।।

25. दशग्रीव  दर्पहा  ए  कपिराज ।
रामक  आतुरे    कयलहूँ   काज ।।

26.   एकानन कपी हयौ  पंचानन ।
जय   हनुमंत   जयति   सप्तानन।।

27. पञ्च मुखहि मुख चारु एकादश ।
सिद्ध  नाम  मंगल  जपू  द्वादश  ।।

28.विनती हमर जानु दुख मोचन ।
दीव्य दरश लय व्याकुल लोचन ।।

29 . प्रभु मन बसिया यौ बजरंगी ।
कुमतिक काल सुमति के संगी ।।

30. यश जत गाऊ वदन संसार ।
कीर्ति योग्य नञि पवन कुमार ।।

31. सुनू कपि कखन हरब दुख मोर ।
  बाटे  जोहि  भेलहुँ  हम  थोर ।।

32. केशरी  कंत  विपति  बड़  भार ।
   वेगहि आबि  "रमण"  करू पार ।।


|| दोहा ||
प्रात काल उठि जे जपथि,सदय धरथि चित ध्यान ।
संकट  क्लेश  विघ्न  सकल , दूर करथि हनुमान ।।

पवन तनय सुत अंजनी
 रूद्र    रूप    अवतार ।
हयौ  केसरी  ज्ञान  घन
 सुनियौ करुण पुकार ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"














कोई टिप्पणी नहीं: