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बुधवार, 16 जनवरी 2019

बजरंग बत्तीसी ।। रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

     


                                        
|| दोहा ||
  वंदऊ  शत   सुत  केशरी  सुनू  अंजनी  के  लाल ।
  विद्यया बुधि आरोग्य बल दय कय करू निहाल ।।

|| चोपाई ||

1. जय  कपि  रूद्र  रूप  बजरंगी ।
 ऋषि  मुनि  देव  संत  जन  संगी ।।

2. अंजनि   पुत्र   केसरिक   नंदन ।
अति लघु रूप जगत दुःख भंजन ।।

3. बज्र  देह  दानव  दुःख  मोचन ।
देखू   नोर   भरल   दुहु   लोचन ।।

4. जय लंका विध्वंश काले मणि ।
छमु अपराध  सकल दुर्गुन गनि ।।

5. कोटि  सूर्य  सम  ओज प्रकाश ।
रोमे    रोम    ग्रह    मंगल    वास ।।

6. पूँछे  -  भुजंग  ललित  हनुमान ।
तारावलि  जते  तते  बुधि  ज्ञान ।।

7 . महाकाल  बलमहा  महामुख ।
महाबाहु    नदमहा    कालमुख ।।

8. अंजनि  पुत्र  पताल  पुर  गेलौ ।
राम  लखन  के  प्राण  बचेलौ ।।

9. पवन  पूत्र  अहाँ जाकय लंका ।
अपन  नाम  के  पिटलौ  डंका ।।

10. हयौ महाबली बल कS जानल ।
अक्षय कुमारक प्राण निकालल ।।

11. हे  रामेष्ट   काज   बर  कयलौ ।
राम  लखन  सिय  उर  में  लेलौ ।।

12. फाल्गुन सखा ज्ञान गुन सार ।
वेगि  आबि   सुनू   नाथ  पुकार ।।

13. सुनू पिंगाक्ष सुमति सुख मोदक ।
तंत्रे   मन्त्र   विज्ञानक    शोधक ।।

14. अमित विक्रम छवि सुरसा जानि ।
बिकट  लंकिनी   लेल  पहचानि ।।

15. उदधि क्रमण गुण शील निधान ।
अहाँ सनक नञी कियो बुद्धिमान ।।

16 . सीता  शोक  विनाशक  गेलहुँ ।
जा चिन्ह मुद्रिका दुहुँ दिश देलहुँ ।।

17. लक्ष्मण   प्राण  पलटि देनहार ।
कपि   संजीवनी   आनि   पहार ।।

18. दश  ग्रीव  दर्पहा  ए  कपिराज ।
रामक  आतुरे    कयलौ  काज ।।

19. कपि  एकानन  हयौ  पंचानन ।
जय   हनुमंत   जयति   सप्तानन।।

20. बिनु हनुमंत जुगुति नञी राम ।
राम कृपा बिनु नञी सुख - धाम ।।

21. जतय   अहाँ  मंगल  तेही  द्वारि ।
करुण कथा कत कहब पुकारि ।।

22. यश  जत  गाऊ  वदन संसार ।
कीर्ति योग्य नञी पवन कुमार ।।

23. प्रभु  मन  बसिया  यौ  बजरंगी ।
   कुमतिक काल सुमति केर संगी ।।

24. अगिन बरुण यम इन्द्रहि जतेक ।
    अजर - अमर वर देलनि अनेक ।।

25. रंजित   गात   सिंदूर   सुहावन ।
      कुंचित केस कुन्डल मन भावन ।।

26. जय कपिराज सकल गुण सागर ।
      युगहि चारि कपि कैल उजागर ।।

27. यमुन  चपल  चित  चारु  तरंगे ।
      जय हनुमंत सुमति सुख - गंगे ।।

28. बाली  दसानन  दुंहुँ  चलि  गेल ।
      जकर अहाँ  विजयी वैह भेल ।।

29. जनमे  सुकारथ  अंजनि  लाल ।
     राम दूत  कय   देलहुँ कमाल ।।

30. सपत गदा केर अछि कपि राज ।
    एहि दुर्बल केर करियौ काज ।।

31. सुनू कपि कखन हरब दुःख मोर ।
                        बाटे   जोहि  भेलहुँ  हम  थोर ।।                          
 32.   यौ  बलवीर  विपति  बर  भार ।
  बेगहि आबि "रमण" करु पार ।।

|| दोहा ||
प्रात काल उठि जे जपथि,सदय धरथि चित ध्यान ।
शंकट  क्लेश  विघ्न  सकल , दूर करथि हनुमान ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"




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