dahej mukt mithila

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रविवार, 1 जुलाई 2018

रमण दोहावली - रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                         || रमण दोहावली ||
                                        

1.  कर्म बुरा , कथनी  भली , कैसे जागत भाग ।
     "रमण" न पानी एक घट, घर में लागी आग।।

2. पत्री   बांचे  वर  पंडत , बैधा   नवज  टटोल ।
   लागेहि  "रमण" न  कौड़ी , रव आगे मुख खोल ।।

3. उलट सुलट कछु नाहि रे , कहे झूट अरु साँच ।
       अपना  ही  मन  मीत  का , जी  से  पोथी  बाँच ।।

4. माय  बाप  की  लाड़ली , पूत  भगे  ससुराल ।
    "रमण"  बचावे रामजी , नाचे  सिर पर काल ।।

5. आई  आँधी  जोर  की , जायगी  उसी  हाल ।
    "रमण" धीर से बैठ  जा , न  हो मीत बेहाल ।।

6. बैठ  गये  मुख फेर  के, अपने  ही  बहु  लोग ।
      "रमण" साधि चुप बैठ जा , काल चक्र का भोग ।।

 7. निन्दा कबहू न कीजिए , कीजिए सबका मान ।
      "रमण"  सहारा  और  का , उसका  है  भगवान ।।

8. नारि  नीर  पावक पवन , करे न   साँची  प्रीत ।
     "रमण"  तीन की  मति  फिरे  , गावे  उलटा  गीत ।।

9. पी - पी के पागल भयो , गयो न मन की प्यास ।
     जर  जमीन  जोरू  गई  ,  खाली  बोतल  पास ।।

10. सात  जनम  के  बचन , बन्धन  फेरे  ली सात ।
     दो  दिल  की  न बात  बनी , गई  सुहागन  रात ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"


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