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मंगलवार, 3 जुलाई 2018

रमण दोहावली - रचनाकार - रेवती रमण झा " रमण "

                         || रमण दोहावली ||
                                          
1. माय गाय दुहूँ एक है , थन को देत निचोर ।
   कैसा " रमण " कपूत तू , माँ का आँचल छोर ।।

      2. तब तक अपना मानिहौ , तिरिया दामहिं साथ ।
    " रमण " भरोसा  छोड़  दे , हो  गैरन  के  हाथ ।।

     3.  लेके  गठरी  पाप   की , चला   नदी  के  पार ।
        धरम  की  नैया  न मिले , जाना  फिर  बेकार ।।

    4. जने   पे  नाचे  दुनियाँ , पुए   तो  पागल  होय ।
      " रमण " जना न मुआ अरे , चोला नूतन होय ।।

    5. पाप का पंथ सरल अति , पुण्यहि पंथ कठोर ।
     " रमण " धरम फुले - फले , पापी का मुंह चोर ।।

    6. उससे   ये संसार   है , वो   काहू   से   नाहि ।
    " रमण " धरम मत बाँट रे , एकहि धरम जग माहि ।।

    7. जो दिखता , वो है नही , जो है, दिखता नाहि ।
     " रमण " मोह में मन फंसा ,  सब झूठा जग माहि ।।

     8. ना   पत्थर , ना   पेड़  में , ना   बैकुण्ठहिं   राम ।
    " रमण " हृदय में झाँखिए , बसा अयोध्या धाम ।।

    9. प्रियतम    मेरे  जा   बसे , सात   समन्दर  पार ।
       बैठ   गई    मै   बावली , कर    सोलह    श्रृंगार ।।

     10. कंचन  काया  काँचली , छोर  गयो  केहि  धाम ।
       सिर  धुन  रोवे  बावली  ,  हुई  सुवह  से  शाम ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "


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