dahej mukt mithila

(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम-अप्पन बात में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घरअप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम - अप्पन बात ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: apangaamghar@gmail.com,madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

AAP SABHI DESH WASHIYO KO SWATANTRAT DIWAS KI HARDIK SHUBH KAMNAE

मंगलवार, 3 जुलाई 2018

रमण दोहावली - रचनाकार - रेवती रमण झा " रमण "

                         || रमण दोहावली ||
                                          
1. माय गाय दुहूँ एक है , थन को देत निचोर ।
   कैसा " रमण " कपूत तू , माँ का आँचल छोर ।।

      2. तब तक अपना मानिहौ , तिरिया दामहिं साथ ।
    " रमण " भरोसा  छोड़  दे , हो  गैरन  के  हाथ ।।

     3.  लेके  गठरी  पाप   की , चला   नदी  के  पार ।
        धरम  की  नैया  न मिले , जाना  फिर  बेकार ।।

    4. जने   पे  नाचे  दुनियाँ , पुए   तो  पागल  होय ।
      " रमण " जना न मुआ अरे , चोला नूतन होय ।।

    5. पाप का पंथ सरल अति , पुण्यहि पंथ कठोर ।
     " रमण " धरम फुले - फले , पापी का मुंह चोर ।।

    6. उससे   ये संसार   है , वो   काहू   से   नाहि ।
    " रमण " धरम मत बाँट रे , एकहि धरम जग माहि ।।

    7. जो दिखता , वो है नही , जो है, दिखता नाहि ।
     " रमण " मोह में मन फंसा ,  सब झूठा जग माहि ।।

     8. ना   पत्थर , ना   पेड़  में , ना   बैकुण्ठहिं   राम ।
    " रमण " हृदय में झाँखिए , बसा अयोध्या धाम ।।

    9. प्रियतम    मेरे  जा   बसे , सात   समन्दर  पार ।
       बैठ   गई    मै   बावली , कर    सोलह    श्रृंगार ।।

     10. कंचन  काया  काँचली , छोर  गयो  केहि  धाम ।
       सिर  धुन  रोवे  बावली  ,  हुई  सुवह  से  शाम ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "


कोई टिप्पणी नहीं: