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बुधवार, 27 जून 2018

रमण दोहावली - रेवती रमण झा " रमण "

                       || रमण दोहावली ||
                                       

1. पाँच तत्व की कुन्डली, दुइ दस सात प्रकार ।
      नो  व्याधि  नो  औषधि,  पतरा  देख  उचार ।।

2. पाँच  मिले  पाताल में, नो दस  बनिहें  योग ।
        लख चोरासी चक्र में, "रमण" करम का भोग ।।

  3. पाँच - पाँच से जा मिला , बाकी रह गई याद ।
     " रमण " जगत में करम का , देगा हर्ष विषाद ।।

   4. पंचामृत    चारु   घट , घट   माहीं   नो   द्वार ।
     " रमण " भरे  नाहि ज्ञान घट , वो  घट है बेकार ।।

    5. पनघट   तट   पनिहारनी , घटहि   लेगई  नीर ।
         पियु की प्यास बुझाय के , "रमण" जाग तकदीर ।।

     6. घाटहि - घाट  नहि जाइए  ,  है सब  एकहीं घाट ।
       " रमण " राम का नाम जप , रहिहें  उत्तम ठाठ ।।

    7. जो   बादर   वरशे   घना ,  ऊँची  देत  न  शोर ।
          जाही  घट थोथा चना ," रमण " करत मुंहजोर ।।

     8. आवत धन सब को लरवे ,  लखे जावत नहि एक ।
          "रमण" जावत जेहि लखे , उस घट ज्ञान विवेक ।।

    रचयिता
      रेवती रमण झा " रमण "


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