|| रमण दोहावली ||
1. पाँच तत्व की कुन्डली, दुइ दस सात प्रकार ।
नो व्याधि नो औषधि, पतरा देख उचार ।।
2. पाँच मिले पाताल में, नो दस बनिहें योग ।
लख चोरासी चक्र में, "रमण" करम का भोग ।।
3. पाँच - पाँच से जा मिला , बाकी रह गई याद ।
" रमण " जगत में करम का , देगा हर्ष विषाद ।।
4. पंचामृत चारु घट , घट माहीं नो द्वार ।
" रमण " भरे नाहि ज्ञान घट , वो घट है बेकार ।।
5. पनघट तट पनिहारनी , घटहि लेगई नीर ।
पियु की प्यास बुझाय के , "रमण" जाग तकदीर ।।
6. घाटहि - घाट नहि जाइए , है सब एकहीं घाट ।
" रमण " राम का नाम जप , रहिहें उत्तम ठाठ ।।
7. जो बादर वरशे घना , ऊँची देत न शोर ।
जाही घट थोथा चना ," रमण " करत मुंहजोर ।।
8. आवत धन सब को लरवे , लखे जावत नहि एक ।
"रमण" जावत जेहि लखे , उस घट ज्ञान विवेक ।।
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
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