" निर्गुन "
छूटल हो , आजु छूटल हो
मोरा नहिरा से नाता छूटल हो
जबहि मिलन आयो संग रे सहेलिया
अँखिया से आंसू टुटल हो ।। आजु.....
काँचहि वाँस के डोली रे गवनमा
चारि कहरिया जुटल हो ।। आजु.......
अपन - अपन कहि धनमा बटोरल
आजु सकल मिलि लूटल हो ।। आजु.....
कहत रमण भाई सुनो बक - साधो
आज करमुआँ फुटल हो ।। आजु.......
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
छूटल हो , आजु छूटल हो
मोरा नहिरा से नाता छूटल हो
जबहि मिलन आयो संग रे सहेलिया
अँखिया से आंसू टुटल हो ।। आजु.....
काँचहि वाँस के डोली रे गवनमा
चारि कहरिया जुटल हो ।। आजु.......
अपन - अपन कहि धनमा बटोरल
आजु सकल मिलि लूटल हो ।। आजु.....
कहत रमण भाई सुनो बक - साधो
आज करमुआँ फुटल हो ।। आजु.......
रचयिता
रेवती रमण झा " रमण "
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