|| हन - हन करैते घर घुसि गैलो ||
कौने परदेश चलि गेलै रे बाबू
डुबि गेलै घर दलान ।
बौआ,लटकल अधर में पराण ।।
बाढ़ि छिछिएलहि,कोमहर सं एलौ
हन - हन करैते घर घुसि गैलो
बिगड़ि गेली कमला भरि गेलै गन्डक
उमरल छै कोशी बलान ।। बौआ..
कते सींथक सिन्दूर बहिगेल
कते मायक चिल्हका दहि गेल
चहूँ दिश मृत्यु ताँडव करैया
गाम भ गेल समशान ।। बौआ....
नीचा नदी मेघ उपर झरैया
त्राहि-त्राहि सबहक प्राण करैया
घरक गोसाउनि सेहो डुबल छथि
विधि के केहन छै विधान । बौआ.
एही सं बूझू अइ,गाम कोन हाल में
लोक सब परल अइ,कालक गाल में
रमण हम नीक छी,चिन्ता जुनि करब
अपना पर राखब ध्यान ।। बौआ..
गीतकार
रेवती रमण झा "रमण"
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