भारत मां के र्गव था, "वह हैं"
मैथिली गरीबी-गोकुल मंडल का संतान।
मात्र 19 वर्ष के उम्र में दे दी
देश के खातिर प्राण,
देश के खातिर प्राण,
हंसकर चुमा फांसी का फंदा,
दिया प्राणों का बलिदान,
दिया प्राणों का बलिदान,
ऐसे थे हमारे वीर योद्धा
शहीद रामफल मंडल जी महान।
शहीद रामफल मंडल जी महान।
जंग खा गए क्यों इतिहास के पन्ने,
क्यों नहीं मिला उचित सम्मान।
क्या व्यर्थ थी उनकी कुर्बानी,
कुछ बोल मेरे हिंदुस्तान-
कुछ बोल मेरे हिंदुस्तान।।
कुछ बोल मेरे हिंदुस्तान।।
थे पहलवान वे,धाकड़-तगड़ा,
मन में लिया यह ठान,
मन में लिया यह ठान,
मार डालुउंगा भारत के गद्दारों को,
आजाद करूंगा हिंदुस्तान।
आजाद करूंगा हिंदुस्तान।
ऐसे थे हमारे वीर योद्धा
शहीद रामफल मंडल जी महान।
शहीद रामफल मंडल जी महान।
ना तो बंदूक उठाया,
ना फोड़ा कभी गोला।
उसके गड़सा के डंकारसे,
अंग्रेजी हुकूमत डोला।
हंसकर चुमा फांसी का फंदा,
ऊफ तक नहीं बोला।
फिर उनके कफन लहरा के बोला,
माई रंग दे बसंती चोला।
नमस्कार दौस्तों मैं हुंं बिरेन्र्द मंडल धानुक,दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं बिहार के प्रथम शहीद अमर शहीद रामफल मंडल जी के बारे में।
जी हां दोस्तों शहीद को असल सम्मान तब जाकर मिलता है जब देश के बच्चा-बच्चा उनकी कुर्बानी को जान जाता हैं, जब उनके कसमे खाया जातें हैं,जब 15 अगस्त और 26 जनबरी को उनका जयकारें लगया जाता हैं। उदाहरण के तौर पर आप शहीद भगत सिंह जी को ही ले लीजिए, उन्हें भी अब तक राष्ट्रीय शहीद का दर्जा नहीं मिला,लेकिन देश के बच्चा-बच्चा उन्हें नमन करते हैं। शहीद रामफल मंडल जी अब भी इन सम्मनो से वनचित हैं। आखिर क्यों?
मै पुछ रहा हुं समाज के उन शिक्षित लोगों सें जो यह कह कर हमारा मुहं बंद करना चाहतें हैं कि शहीद को किसि जाती से मत जोड़ो। चलो भाई नहीं जोड़तें हैं, जोड़ना भी नहीं चाहिए, क्योंकि शहिद रामफल मंडल जी ने अपने प्राणो कि आहुति सिर्फ धानुक के लीए नहीं पुरे देश के लीए दिऐं थें। पर शिक्षित महासैय आपने उनहें क्या दिया, 23 अगस्त को उनके शहादत पर उन्हें याद करने से भी कतरातें हैं।
रामफल मंडल जी का जन्म 06 अगस्त 1924 को ग्राम मधुरापुर थाना बाजपट्टी जिला सीतामढ़ी बिहार में हुआ था। पिता गोखुल मंडल माता का नाम गरबी देवी, और उन्के पत्नी का नाम जगपतिया देवी था। दोस्तों उन पर आरोप था कि 24 अगस्त 1942 को बाजपट्टी चौक पर अंग्रेजी सरकार के तत्कालीन सीतामढ़ी अनुमंडल के 4 अधिकारीयों को अपने गड़ासशा से काट दिया।
केस की सुनवाई माननीय न्यायाधीश C R सैनी कोर्ट भागलपुर फांसी की तिथि दिनांक 23- 8-1943 केंद्रीय कारागार भागलपुर शादी 16 साल की उम्र में शहीद 19 साल के उम्र में |
बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी पटना के आग्रह पर गांधी जी ने रामफल मंडल एवं अन्य आरोपियों के बचाव पक्ष में क्रांतिकारियों का मुकदमा लड़ने वाले देश के जाने-माने बंगाल के वकील C R दस P R दास दोनों भाई को भेजा।
वकील महोदय ने सुझाव दिया कि कोर्ट में जज के सामने आप कहेंगे कि मैंने हत्या नहीं की 3-4 हजार लोग में से किसने मारा हम नहीं जानतें । दिनांक 12 अगस्त 1943 ई० को भागलपुर में जज C R सैनी के कोर्ट में प्रथम बहस हुई। जब जज महोदय ने रामफल मंडल से पूछा रामफल क्या एस डी ओ हरदीप नारायण सिंह का खून तुमने किया? तो उन्होंने कहा हाँ हुजूर पहला फरसा हम ने ही मारा।
अन्य लोगों ने हत्या से इंकार कर दिया बहस के बाद वकील साहब रामफल मंडल पर बिगड़े तो उन्होंने कहा साहब हमसे झूठ नहीं बोला गया। गड़बड़ा गया है अब ठीक से बोलूंगा।
पुनः अगले दिन दिनांक 13 अगस्त 1943 ई० को बहस के दौरान जज महोदय ने पूछा रामफल क्या तुमने एस डी ओ का खून किया है तो फिर जवाब होता है हजूर पहला फसा हम ने ही मारा। पुनः वकील महोदय झल्लाकर उन्हें डांटा और बोले अंतिम बहस में अगर तुमने झूठ नहीं बोला तो तुम समझ लो। रामफल मंडल बोले साहब इस बार नहीं गड़बड़ आएगा।
तीसरी बहस के दौरान जज महोदय ने पूछा रामफल क्या तुमने एस डी ओ का खुन किया उन्होंने फिर कहां है हजूर पहला फरसा हमने ही मारा था । इस प्रकार लगातार तीन दिनों तक बहस चलती रही लेकिन रामफल मंडल ने वकील के लाख समझाने के बावजूद भी झूठ नहीं बोला। सायद वे सरदार भगत सिंह के फांसी के समय दिए गए उक्त वाक्यों को आत्मसात किये थे कि "विचारों की सान पर इंकलाब की धारा तेज होती है।इन्क्लाब तभी जिन्दा रह सकता है, जब विचार जिन्दा रहेगा।
खुशनसीब होते है वो जो वतन पर मिट जाते है
मर कर भी वो लोग अमर शहीद हो जाते है
करता हूँ तुम्हे सालम ऐ वतन पर मिट जाने वालो
तुम्हारी हर साँस के कर्ज़दार है हम देश वाले |
मर कर भी वो लोग अमर शहीद हो जाते है
करता हूँ तुम्हे सालम ऐ वतन पर मिट जाने वालो
तुम्हारी हर साँस के कर्ज़दार है हम देश वाले |
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