dahej mukt mithila

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शनिवार, 11 जुलाई 2015

तैयारी छै जयबा लेल

तैयारी छै जयबा लेल।

वयस मारलक चारिम थापड़। आन्हर आँखि कान भेल पाथर।
नहि सूनी नहि देखी आब। करू नीक बा खून - ख़राब।
नेता लूटू, खाउ, पकाऊ। जाति - जाति कें खूब लड़ाऊ।
धर्मक ठेकेदार कहाऊ। खूब अधर्म के पाठ पढाऊ।
बेचू बेटा‚ लिए दहेज़। खाउ कन्यागतक करेज।
पुत्रवधू के आगि लगाउ ।राम राम सत चिता सजाउ।
पूर्वज के करिऔ गुणगान। हम छी मैथिल‚ हम महान।
भाई- भाई मे करू लड़ाई। घर घराड़ी बाँटू आई।
दीन हीन सँ खेत लिखाउ। संस्कार के पाठ पढ़ाउ।
माय बाप के करिऔ भिन्न। स्वयं पलंग पर सुखक निन्न।
एक दोसर के खींचू टांग। आगाँ बढ़य ने अपन समांग।
नहि भेटय जँ सहजहि भांग। करू विदेशी दारूक मांग।
उपजत सहजहिं गप्पक खेती। खूब बघारू अप्पन सेठी।
बना लिऔ मिथिला के नर्क। "विजय" के की पड़तै फर्क।
सकारात्मक "विजय" भेल। तैयारी छै जयबा लेल।

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