|| चैतावर ( निर्गुण )||
कुसुमित कुंज भेल , मधुमास आबि गेल
की आहो रामा ,
कुहु - कुहु कोइली कुहुकाबै रे की ।।
पात - पात झरि गेल,नव नव पल्लव लेल
की आहो रामा ,
सुख दुःख जीवन देखाबै रे की ।।
प्रथमहि कली भेल , दोसरहि फूल भेल
की आहो रामा ,
तुवि - तुवि एक अंत पाबै रे की ।।
मंजरि चहुँ दिश , टपकइ मधु रस
की आहो रामा ,
भूखल मधुप के जेमाबै रे की ।।
सिसकै पवन जोर , पपिहा मचाबै शोर
की आहो रामा ,
विरह वेदन तड़पाबै रे की ।।
"रमण" जे चैत मास ऋतुराज लेल वास
की आहो रामा ,
ऋतु एक - एक अंत पाबै रे की
गीतकार
रेवती रमण झा "रमण"
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