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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

विहनि कथा


विहनि कथा
कपारक लिखल
शर्माजीक आफिस शनि आओर रवि सप्ताह मे दू दिन बन्न रहै छैन्हि। आइ शनि छल। आफिस बन्न छल आ शर्माजी दरबज्जा पर बैसल छलाह। तावत एकटा भिखमंगा दरबज्जा पर आएल आ बाजल- "मालिक दस टाका दियौ। बड्ड भूख लागलए।" शर्माजी बजलाह- "लाज नै होइ छौ। हाथ पएर दुरूस्त छौ। भीख माँगै छैं। छी छी छी।" भिखमंगा बाजल- "यौ मालिक, पाई नै देबाक हुए तँ नै दियऽ, एना दुर्दशा किएक करै छी। हम जाइ छी।" ओकरा गेलाक बाद शर्माजी खूब बडबडयला। देशक खराप स्थित सँ लऽ कऽ भिखमंगाक अधिकताक कारण आ नै जानि की की, सब विषय पर अपन मुख्य श्रोता कनियाँ केँ सुनबैत रहलाह।
दुपहर मे भोजन कएलाक उपरान्त आराम करै छला की कियो गेट ठकठकाबऽ लगलै। निकलि कऽ देखैत छथि एकटा त्रिपुण्ड धारी बबाजी ठाढ छल। हिनका देखैत ओ बबाजी बाजऽ लागल- "जय हो जजमान। दरिभंगा मे एकटा यज्ञक आयोजन अछि। अपन सहयोगक राशि पाँच सय टाका दऽ दियौक।" शर्माजी- "हम किया देब?" बबाजी- "राम राम एना नै बाजी। पुण्यक भागी बनू। फलाँ बाबू सेहो पाँच सय देलखिन्ह। अहूँ पुण्यक भागी लेल टाका दियौ।" शर्मा जी- "हमरा पुण्य नै चाही। हम नरक जाइ चाहै छी। अहाँ केँ कोनो दिक्कत? बडका ने एला हमरा पुण्य दियाबैबला।" ओ बबाजी बूझि गेल जे किछु नै भेंटत आ ओतय सँ पडा गेल।
साँझ मे शर्माजी लाउन मे टहलै छलाह। सामने सँ तीन टा खद्दरधारी ढुकल आ हुनका प्रणाम कऽ कहलक- "विधान सभाक चुनाव छैक। दिल्ली सँ फलाँ बाबू एकटा रैली निकालबाक लेल आबि रहल छथि। ऐ मे बड्ड खरचा छैक। अपने सँ निवेदन जे दस हजार टाकाक सहयोग करियौक।" शर्माजी बिदकैत बाजलाह- "एहि लाउन मे टाकाक एकटा गाछ छै। अहाँ सब ओहि मे सँ टाका झारि लियऽ।" एकटा खद्दरधारी बाजल- "हम सब मजाक नै कऽ रहल छी आ आइ कोनो बहन्ना नै चलत। टाका दियौ अहाँ। अहाँक बूझल अछि ने जे हमरे सभक पार्टीक सरकार छै। अहाँक बदली तेहन ठाम भऽ जायत जे माथ धुनबाक अलावा कोनो काज नै रहत।" शर्माजी गरमाइत बाजलाह- "ठीक छै हम माथ धुनबा लेल तैयार छी। अहाँ सब जाउ आ बदली करबा दियऽ। निकलै छी की पुलिस बजाबी।" खद्दरधारी सब धमकी दैत ओतय सँ भागि गेल।
रातिक तेसर पहर छल। शर्माजी निसभेर सुतल छलाह। एकाएक हुनकर निन्न ठकठक आवाज पर उचटि गेलैन्हि। कनियाँ केँ उठा कऽ कहलखिन्ह जे कियो दरबज्जाक गेट तोडि रहल अछि। दुनू परानी डरे ओछाओन मे दुबकि गेलैथ। तावत गेट टूटबाक आवाज भेलै आ टूटलहा गेट दऽ कऽ सात टा मोस्चंड शर्माजी केँ गरियाबैत भीतर ढुकि गेलै। सब अपन मूँह गमछी सँ लपेटने छल। एकटाक हाथ मे नलकटुआ सेहो छलै। बाकी दराती, कुरहरि, कचिया आ लाठी रखने छल। एकटा लाठी बला आबि कऽ हुनका जोरगर लाठी पीठ पर दैत कहलकन्हि- "सार, सबटा टाका आ गहना निकालि कऽ सामने राख। नै तँ परान लैत देरी नै लगतौ।" शर्माजी गोंगयाइत बजलाह- "हमरा नै मारै जाउ। हम हार्टक पेशेन्ट छी। इ लियऽ चाबी आ आलमीरा मे सँ सब लऽ जाउ।" ओ सब पूरा घर हसौथि लेलक। पचास हजार टाका आ दस भरि गहना भेंटलै। फेर हिनकर घेंट धरैत डकूबाक सरदार बाजल- "तौं तँ परम कंजूस थीकैं। कतौ खरचो तक नै करै छैं। एतबी टाका छौ। सत बाज, नै तँ नलकटुआ मूँह मे ढुका कऽ फायर कऽ देबौ।" इ कहैत ओ नलकटुआ हुनकर मूँह मे ढुकेलक। ओ थर थर काँपैत बाजऽ लगलाह लैट्रिनक उपरका दूछत्ती मे दू लाख टाका आ बीस भरि गहना राखल छै। लऽ लियऽ आ हमरा छोडि दियऽ। सरदार दू जोरगर थापर दैत कहलकैन्हि आब लैन पर एले ने, आर कतऽ छौ बाज। शर्माजी किरिया खाइत बजलाह आब किछो नै छै बाबू, छोडि दियऽ हमरा। डकैत सब सबटा सामान समटि कऽ विदा भऽ गेल। थोडेक कालक बाद हिम्मति कऽ कऽ ओ चिचियाबऽ लगलाह- "बचाबू, बचाबू डकूबा........।" अडोसी पडोसी दौगल एलथि। कियो पुलिस बजा लेलक। पुलिस खानापूर्ति कऽ कऽ चारि बजे भोरबा मे चलि गेलै। शर्माजी अपन माथ पीटैत बाजै छलाह- "आइ भोरे सँ शनिक कुदृष्टि पडि गेल छल। कतेको सँ लुटाई सँ बचलौं, मुदा कपारक लिखल छल लुटेनाई से लुटाइये गेलौं।"

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