dahej mukt mithila

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सोमवार, 2 अप्रैल 2012

नाटक: "जागु"
दृश्य:तेसर
समय:भोर
(विष्णुदेव दालान में कुर्सी पर बैस अख़बार पढैत छथि, तहने अकबर मियां के प्रवेश )
अकबर:: राम! राम !! विष्णुदेव भाई ....

विष्णुदेव::(ध्यान तोडैत )...ओ अकबर भाई ! अस्सलाम  अलैकुम ! अरे , अहाँ  त' दुतिया के चाँद भ' गेल छी ! कतअ नुका रहल छलौं ? आऊ, बैसू-बैसू (अकबर कुर्सी पर बैसइत छथि )...अओर हाल-समाचार सुनाऊ |  कनियाँ आ धिया -पुता सभ ठीक छथि ने ?

अकबर:: हाँ ....! (चिंतित मुद्रा में ) एखन तइक त' ठीक छथि , मुदा.....

विष्णुदेव:: ....मुदा की ? कोनो विशेष गप ??

अकबर:: भाई ! हम रोजी -रोटी कें जुगार में अपन मातृभूमि छोइड़ मुंबई गेल छलौं , मुदा, ओतअ त' साम्प्रदयिक्ताक आगि में समूचा शहर धू-धू  क ' जरि रहल छै ! लोक सभ रक्त पिशाचू बनल अछि ! कतेकों लोक अकाल काल कें गाल में समां गेल ! कतेकों घर सँ  बेघर भ' गेल ! कतेकों बच्चा अनाथ भ' गेल ! कतेकों नारी विधवा भ' गेली !....भाई ! हमरा त' डर लागि रहल अछि --कहीं ई आगि मिथिलांचल के सेहो ने जराए दाए ?

विष्णुदेव:: (भावुक आ संवेदनशील भाव )..नै भाई, नै ! हम मिथिलावाशी  एतेक निष्ठुर आ निर्दयी नै छी ! जेहन हमर बोली मीठ अछि , तेहने कोमल आ स्नेहमयी ह्रदय  अछि !...हाँ , कहिओ -काल भाई-भाई में टना-मनी भ' जाइत अछि , मुदा, एहि कें अर्थ  इ नै जेँ हम एक -दोसरक घर फूँकि देब !!

अकबर:: से त' ठीके कहै छी भाई | हम मिथिलावाशी सदा सँ 'शांति आ प्रेम ' कें पूजारी रहलौंहाँए | एतअ सीता सन बेटी जन्म लेली , जेँ नारी हेतु आदर्श थिक | राजा जनक 'विदेह' कहबैत छलाह अर्थात राजा होइतो ' माया सँ मुक्त छलाह ' | प्रजा हेतु स्वयं ह'र जोतलाह | एतअ कें अन्न-पानि ततेक पोष्टिदायक आ बुद्धिवर्धक छल,  जेँ विद्वानक भरमार छल | मुदा,  |आब लागि रहल अछि जेँ एतौ राक्षस आ अमानुष प्रवृति कें लोक जन्म ल' रहल अछि !!

विष्णुदेव:: इ सत्य थिक जेँ किछु लोक आगि लगा अपन हाथ सेकबा में लागल रहैत अछि ....

अकबर:: ...त' भाई ! एहन लोक सँ समाज कें कोना बचाएल जाए ? कारण ! अशिक्षा आ गरीबी  कें अन्हार चारू दिश पसरल अछि ! एहि कें लाभ उठा समाजक दुष्ट व्यक्ति भाई-भाई कें लड़ा दैत अछि !!

विष्णुदेव:: याह त' सभ सँ पैघ समस्या थिक ! यावत लोक शिक्षित  नै होएत तावत एकर पूर्ण रूपेण समाधान संभव नै |

अकबर:: भाई ! की मात्र पढि-लिख लेला सँ व्यक्ति शिक्षित भ' जाइत अछि ?

विष्णुदेव:: नै, कदापि नै ! शिक्षाक अर्थ थिक प्रेम, सहयोग  , ज्ञान आ अनुशासन
   | जँ  एही  में  सँ   एकौटाक  आभाव होएत त' शिक्षा  पूर्ण  नै  भ'  सकैत अछि ।  जेना  आहि -काहिल देखबा में अबैत अछि --बहुतों डॉक्टर , वकील , कलेक्टर आदि बहुते पढ़ल -लिखल छथि, मुदा , अनेकों  असामाजिक क्रिया -कलाप में लिप्त रहैत छथि , जाहि सँ समाज के अनेको हानी होइत छै ।

अकबर:: ....अर्थात लोक के जागरूक होएबाक जरुरत अछि । लोक के इ बुझअ पड़तै  कि जँ  एक भाई के घर जरतै  त' दोसरों के घर में आगि लगतहि  । जँ एक कें नैन्ना  भूखे कनतै  त' दोसर कें कोना नींद हेतहि  !!

विष्णुदेव:: बिल्कुल सच कहलौं ! हम पूछै  छी ---जँ  गाम में आगि लागैत अछि, केओ बीमार पडैत अछि , बाहिर अबैत अछि ---तखन के काज अबैया ? अपने भाई आ समाजक लोक ने ! त' फेर कियाक हम कोनो नेता आ असामाजिक व्यक्ति कें बहकाव में आबि अपन ' वर्तमान आ भविष्य ' दूनू  ख़राब क' लैत छी ?

अकबर:: हाँ भाई ! यावत लोकक बिच सामंजस नै होएत , तावत व्यक्ति आ समाज कें पूर्ण विकास संभव नै अछि !! (लम्बा सांस लैत )...ओना हम जाहि काज सँ आएल छलौं गप करबा में बीसैरे गेलौं ! ..भाई , काहिल ''ईद''  थिक , अपने सपरिवार सादर  आमंत्रित छी ...जरुर आएब ।

विष्णुदेव:: अवश्ये! अवश्ये!!
अकबर:: (कल जोइर )...तखन आब आज्ञा दियअ ...।
प्रस्थान (पर्दा खसैत अछि )
  दृश्य: तेसर (समाप्ति)
:गणेश कुमार झा "बावरा"
गुवाहाटी 

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