अभय कान्त झा दीपराज कृत - मैथिली ग़ज़ल
मैथिली ग़ज़ल
हम अहाँ सँ मधुर मिलन के, सपना देखैत रहलौं ||
जखन अहाँ सँ भेंट होयत, की कहब सोचैत रहलौं ||
नहिं बूझल छल प्रेमक भाषा, परिभाषा की करू अब.?
नेहक पाती पर ओहिना किछु लिखैत - कटैत रहलौं ||
प्रेमक चन्दन, मोनक भीतर, गमकल - भाँग बनल,
जकर नशा हम मोने - मोने, पीबैत - बह्कैत रहलौं ||
मोनक मधुबन में, शैफाली, लुधकल प्रेमक फूल सँ,
जेहि के तेज सुगंधी में हम, रचल - गमकैत रहलौं ||
दीपक बनिकय इन्तिज़ार जे केलौं , से अब कहू कोना ?
घायल बनिकय कोना प्रेम में, मरैत - जीवैत रहलौं ||
आबि गेलों जे अहाँ आइ अब नहिं कोनो संताप रहल,
बिसरि गेलौं ओ दुःख जे पहिने भोगैत - सहैत रहलौं ||
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