टूटि-टूटि क' हम त' जोडाइत रहै छी।
मोनक विचार सुनि पतियाइत रहै छी।
गौरवे आन्हर पडल अपने घरारी,
सदिखन मुँह उठा क' अगधाइत रहै छी।
हाट मे प्रेमक खरीद करै सब किया,
बूझि नै, आब त' हम बिकाइत रहै छी।
फहरतै झंडा हमर सब दिस हवा मे,
एहि आसेँ खूब फहराइत रहै छी।
"ओम"क कपार पर कानि क' की करत ओ,
फूसियों हम ताकि औनाइत रहै छी।
2 टिप्पणियां:
सुन्दर आंचलिक ग़ज़ल .सार्थक और सौदेश्य .
आंचलिक भाषा में लिखी गज़ल लाजवाब है भाई ...
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