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मंगलवार, 4 जून 2019

|| हनुमन्त पच्चीसी || रचनाकार - रेवती रमण झा "रमण"

                       || हनुमन्त पच्चीसी ||
                                      

 || दोहा || 
                         संकट   शोक   निकदनहि  ,  दुष्ट  दलन    हनुमान ।
 अविलम्बही    दुख दूर   करू ,बीच  भँवर  में  प्राण ।।
 तिल भरि राम प्रताप बल   रचल कुमति   गति काल ।
 हुलसि कहल हनुमंत चित   तकरहि   चतरल  गाल ।।

|| चौपाई ||
  जन्मे   रावणक    चालि   उदंड ।
  यतन कुटिल  मति  छल प्रचंड ।।
  बसल जकर चित नित पर नारि ।
  जत शिव पुजल,गेल जग हारि ।।
 रंग   -  विरंग    चारु    परकोट ।
  गरिमा   राजमहल   केर  छोट ।।
 बचन   कठोरे  कहल   भवानी ।
               लीखल भाल वृथा नञि  वाणी ।।              
रेखा लखन  जखन सिय पार ।
     वर  विपदा   केर  टूटल  पहार ।।   
  तीरे  तरकस  वर  धनुषही हाथ ।
रने  -  वने   व्याकुल   रघुनाथ ।।
   मन मदान्ध मति गति सूचि राख ।
      नत सीतेहि , अनुचित जुनि भाष ।।
   झामरे  - झुर  नयन  जल  - धार ।
     रचल केहन  विधि  सीय लिलार ।।
    मम  जीवनहि   हे   नाथ  अजूर ।
    नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ।।
  पवन  पूत  कपि  नाथे  गोहारि ।
    तोरी  बंदि    लंका    पगु  धारि ।।
   रचलक   जेहन  ओहन   कपार ।
   दसमुख  जीवन    भेल  बेकार ।।
   रचि  चतुरानन   सभे  अनुकूल ।
    भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ।।
   गालक  जोरगर  करमक  छोट ।
       विपत्ति काल संग नञि एकगोट ।।
   हाय  -  हाय  लंका  जरी  गेल ।
     रहलइ  वैह , जे  धरमक  भेल ।।
     राम  अमोघ  वाण  कपि आबू ।
       भँवर बीच  अछि  प्राण बचाबू ।।
      लीला अगम  अतुल  बलकारी ।
       स्वर्ग  शैल  तन  सुत त्रिपुरारी ।।
      बाल चपल गति गगन बिहारी ।
      ग्रसल भानु मुख सोंटा धारी ।।
      आनल बुटी  लखन देल प्राण ।
        राम ऋणी  छथि  यौ हनुमान ।।
       जाय पताल  मारि अहिरावण ।
        लयलौ राम लखनमन भावन ।।
        जीवन लीला धरम धाम अछि ।
            भक्त्त शिरोमणि देखू नाम अछि ।।
        करू  दूर  दुख  दारुण  मोचन ।
            सतत दरश लय व्याकुल लोचन ।।
       कते  गुहारल  यौ  सुत  शंकर ।
          धर्म ध्वजा कपि काल भयंकर ।।
          जतय अहाँ मंगल जेहि साजल ।
         नामक चहुँदिश  डंका बाजल ।।
         ज्ञानक  सागर  गुण  के आगर ।
          युग  चारि  यश  नाम  उजागर ।।
         "रमण" चरण गहि कहल पुकारि ।
          रूद्र  एकादश   सुत  त्रिपुरारि ।।

    || दोहा ||
रचल  सिन्दूर  सुहाग  सीय ,  मनहि  जानि   कपि  अंग ।
नगर  ढिढोरा    पीटी  केलौ , जीवन     नाथक     संग ।।

रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"



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