|| हनुमन्त पच्चीसी ||
|| दोहा ||
संकट शोक निकदनहि , दुष्ट दलन हनुमान ।
अविलम्बही दुख दूर करू ,बीच भँवर में प्राण ।।
तिल भरि राम प्रताप बल रचल कुमति गति काल ।
हुलसि कहल हनुमंत चित तकरहि चतरल गाल ।।
|| चौपाई ||
जन्मे रावणक चालि उदंड ।
यतन कुटिल मति छल प्रचंड ।।
बसल जकर चित नित पर नारि ।
जत शिव पुजल,गेल जग हारि ।।
रंग - विरंग चारु परकोट ।
गरिमा राजमहल केर छोट ।।
बचन कठोरे कहल भवानी ।
लीखल भाल वृथा नञि वाणी ।।
रेखा लखन जखन सिय पार ।
वर विपदा केर टूटल पहार ।।
तीरे तरकस वर धनुषही हाथ ।
रने - वने व्याकुल रघुनाथ ।।
मन मदान्ध मति गति सूचि राख ।
नत सीतेहि , अनुचित जुनि भाष ।।
झामरे - झुर नयन जल - धार ।
रचल केहन विधि सीय लिलार ।।
मम जीवनहि हे नाथ अजूर ।
नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ।।
पवन पूत कपि नाथे गोहारि ।
तोरी बंदि लंका पगु धारि ।।
रचलक जेहन ओहन कपार ।
दसमुख जीवन भेल बेकार ।।
रचि चतुरानन सभे अनुकूल ।
भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ।।
गालक जोरगर करमक छोट ।
विपत्ति काल संग नञि एकगोट ।।
हाय - हाय लंका जरी गेल ।
रहलइ वैह , जे धरमक भेल ।।
राम अमोघ वाण कपि आबू ।
भँवर बीच अछि प्राण बचाबू ।।
लीला अगम अतुल बलकारी ।
स्वर्ग शैल तन सुत त्रिपुरारी ।।
बाल चपल गति गगन बिहारी ।
ग्रसल भानु मुख सोंटा धारी ।।
आनल बुटी लखन देल प्राण ।
राम ऋणी छथि यौ हनुमान ।।
जाय पताल मारि अहिरावण ।
लयलौ राम लखनमन भावन ।।
जीवन लीला धरम धाम अछि ।
भक्त्त शिरोमणि देखू नाम अछि ।।
करू दूर दुख दारुण मोचन ।
सतत दरश लय व्याकुल लोचन ।।
कते गुहारल यौ सुत शंकर ।
धर्म ध्वजा कपि काल भयंकर ।।
जतय अहाँ मंगल जेहि साजल ।
नामक चहुँदिश डंका बाजल ।।
ज्ञानक सागर गुण के आगर ।
युग चारि यश नाम उजागर ।।
"रमण" चरण गहि कहल पुकारि ।
रूद्र एकादश सुत त्रिपुरारि ।।
|| दोहा ||
रचल सिन्दूर सुहाग सीय , मनहि जानि कपि अंग ।
नगर ढिढोरा पीटी केलौ , जीवन नाथक संग ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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