|| कुलक्षणीक वर्णण ||
थर - थर काँपथि , सब के श्रापथि
बचन सतत अधलाहे |
इर्ष्या आगिक ज्वाला धधकैन
सदिखन अनका डाहे ||
सपनेहुँ नीक बचन नञि भाषथि
हन - हन , पट - पट ठोरे |
लंका दहन सनक दू डिम्मा
पिपनी पर में नोरे ||
छोलनी पटकथि , करछुल पटकथि
पटकथि थारी लोटा |
नित दिन दैवक , भोग लगाबथि
अप्पन स्वामी बेटा ||
सरस्वती लक्ष्मी हुनका सँ
नित मानै छथि हारि |
"रमण " कुलक्षणी नारिक लक्षण
कहलक आई पुकारि ||
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