गजल@प्रभात राय भट्ट
गजल:-
अहाँ विनु जिन्गी हमर बाँझ पडल अछि
सनेह केर पियासल काया जरल अछि
दूर रहितो प्रीतम अहाँ मोन पडैत छि
प्रीतम अहिं सं मोनक तार जुडल अछि
तडपैछि अहाँ विनु जेना जल विनु मीन
अहाँ विनु जिया हमर निरसल अछि
नेह लगा प्रीतम किया देलौं एहन दगा
मधुर मिलन लेल जिन्गी तरसल अछि
अहाँ विनु प्रीतम जीवन व्यर्थ लगैय
की अहाँक प्रेमक अर्थ नहीं बुझल अछि
..............वर्ण-१६...........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
अहाँ विनु जिन्गी हमर बाँझ पडल अछि
सनेह केर पियासल काया जरल अछि
दूर रहितो प्रीतम अहाँ मोन पडैत छि
प्रीतम अहिं सं मोनक तार जुडल अछि
तडपैछि अहाँ विनु जेना जल विनु मीन
अहाँ विनु जिया हमर निरसल अछि
नेह लगा प्रीतम किया देलौं एहन दगा
मधुर मिलन लेल जिन्गी तरसल अछि
अहाँ विनु प्रीतम जीवन व्यर्थ लगैय
की अहाँक प्रेमक अर्थ नहीं बुझल अछि
..............वर्ण-१६...........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
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