|| बारह मासा गीत ||
कमल मुख कहि गेल छथि
नित नयन हेरल कंत यौ ।
कि भेला विसभोर प्रियतम
की भेलथि पियू संत यौ ।।
चैत सखी मधुमास आयल
बाग भेल गुलजार यौ ।
फुलल चम्पा जूही चमेली
फुलल फुल कचनार यौ ।।
कोयल कल रब कुहुकि कुँजन
करत चहुँदिशि शोर यौ ।
पियू कहाँ कहि रहल पपिहा
बितल चैत घनघोर यौ ।।
सूखल कूप तलाब सूखल
बैसाक भेल उदंड यौ ।
गिरीऊर नभ में उगल छथि
सूर्य आइ प्रचण्ड यौ ।।
जेठ उतरल गगन बदरा
बरसि गेल जलधार यौ ।
तृषित अंग भेल शीतल
बहय मन्द बयार यौ ।।
पाल पाकल आम भरखरि
आयल मास आषाढ़ यौ ।
ई संताप कतेक खेपब
जीवन अछि भेल भार यौ ।।
उमरि बदरा बरसि रिमिझिम
साओन भादब बुन्द यौ ।
बादल करिया राति अन्हरिया
एकसरि होयत कोना निन्द यौ ।।
झिंगुर झन झन बाजत दादुर
बिजुरी चमकत जोर यौ ।
देखि घन मन मगन नाचत
सकल सुन्दर मोर यौ ।।
आसिन आस लगाय बैसल
कंत सभक घर आयल यौ ।
आसो ने पूरल पहु बेदरदी
कली उठल मुरझायल यौ ।।
कार्तिक कंतक कुशल पवितहुँ
उठल मन में विरोग यौ ।
ने दोष हुनकर आ ने दैबक
लीखल अपन भोग यौ ।।
मन ने भावय कंत विनु कछु
कहब किनका ई दर्द यौ ।
जाय किछु हम हुनका कहितहुँ
जँ रहितहुँ हम मर्द यौ ।।
मास अगहन कुटथि चूड़ा
साजि सुन्दरि अंग यौ ।
आइ लक्ष्मी हँसथि खल खल
देखू सबहक संग यौ ।।
परल पूस कुहेस पाला
आयल मास दुर्दिन यौ ।
सीरक तोसक ऊनी चादर
माघ मासक दिन यौ ।।
गावत फाग राग पंचम
उरत रंग अवीर यौ ।
बाजत ढोल मृदंग चहुँदिस
गुंजत डंफ मजीर यौ ।।
"रमण" सजनी धीर धरु
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