।। अश्रुपात ।।
।। यह तेरी करुण कहानी है ।।
कहो ! मूक कण्ठ हीं मिला तुम्हे
उत्तर देना है पाप तेरा ।
बड़ - भला बुरा सुनकर रहना
नारी जीवन अभिशाप तेरा ।।
पुरुषो को जिसने जनम दिया
वश में उसने ही उसे किया ।
यह अधिकार लिया है खुद,या -
नारी तू ने ही उसे दिया ।।
तुम्ही बताओ नारी को ही
सदियो से क्यो यह सजा मिली ।
या देना था दुख दुर्बल को
अरी ! जिसमे अबला एक मिली ।।
पद पराधीनता की बेड़ी
आँखों में छलकता पानी है ।
पुरुषो के द्वारा सदा दुखित
यह तेरी करुण कहानी है ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें