|| अश्रुपात ||
" बन ज्वालामुखी फटेगी जब "
पावन माँ की इन आँखों से
जब रक्त-पात होगा भूपर ।
तब चील सियार स्वान वायस
होगा जमघट भू शव का घर ।।
ममता की मूरत शांति रूप
बन ज्वालामुखी फटेगी जब ।
कर खड़ग और खप्पर लेकर
रणचण्डी रूप डटेगी जब ।।
महिषासुर पर यहाँ काल-चक्र
का नांचेगा ताँडव सिर पर ।
वो,विशालकाय का उन्नत सिर
भुज होगा विलग धरातल पर ।।
होकर अनाथ रे महाबली
यहाँ त्राहि - त्राहि चिल्लाओगे ।
बहजाओगे रक्त - सिंधु में
तिनका न कहीं तुम पाओगे ।।
बन दया की भिक्षा का याचक
रे बिलख-बिलख कर आँसू भर ।
तेरा बल - पौरुष - हिम ढल कर
जहां रह जाएगा कातर स्वर ।।
पश्चातापो का, अश्रु - धार को
पी - पीकर तुम मर जाओगे ।
वह सर्वनाश , वह महा -प्रलय
जो भूल नही तुम पाओगे ।।
अरी रुद्राणी , रणचण्डिके
कर गहो क्रान्ति-ध्वज फहराता ।
खल शोणित-शुभ सिन्दूर भाल
कंगन - कटार हो लहराता ।।
सब जला राख संसार करो
यह भू विवेक से खाली है ।
होगा क्या उपवन हरा - भरा
जब दुष्ट यहाँ का माली है ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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