||अश्रुपात ||
"नयनो के अविरल अश्रुपात"
दुर्भाग्य पूर्ण , दुखमयी व्यथा
की,यह विडम्बना कैसी है ।
नारी की द्रोही , है नारी
फिर उसका कौन हितैषी है ।।
तुम भी ? दुःख देते दुखिया को
कर क्षितिज दृष्टि बोली रोकर ।
नयनो के अविरल अश्रुपात
से , अपने आँचल को धोकर ।।
तुम हो ईश्वर , सब समदर्शी
तेरे दिल में जब भेद नही ।
अनजान बने क्यों चुप बैठे ?
जिसका मुझको है खेद नही ?
कल्पित कोई , यह कथा नही
ये तो ऋषि मुनि की वाणी है ।
रे , जहाँ उपेक्षित है नारी
उस घर की दुःखद कहानी है ।।
जब दया हीन हो जाय धरा
रे ,सोचो तब नाश निकट में है ।
अवला आँखों का अश्रुबिन्दु के
बीच विश्व संकट में है ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा " रमण "
mob - 9997313751
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