||अश्रुपात ||
|| उस जुल्म को कबतक सहेगी नारियाँ ||
नृप दसरथ की बड़ी बहू
जो,उस विदेह की बेटी है ।
अवनी आँचल की एक सुता
कलंकित - सेज पे लेटी है ।।
था न होगा राजा कोई राम सा ।
ऐसी नगरी दिव्य,अयोध्या धाम सा ।।
दैहिक,दैविक,भौतिक तीनो ताप से ।
थे मुक्त सारे जन सकल संताप से ।।
सुनी प्रजा की बात , राजा राम ने ।
लज्जित अयोध्या थी,सभी के सामने ।।
उस राम राज्य न्याय को क्या हो गया ?
विवेक लगता है धरा से खो गया ।।
निर्दोष नारी - आह ! की सरिता बहे ।
क्यो ? बाल्मीकि और तुलसी चुप रहे ।।
मानता हूँ अग्नि में सीता पड़ी थी ।
मायवरी हमशक्ल लीला खड़ी थी ।।
जो न्याय की होती तुला असमर्थ है ।
लीला किसी की हो,मगर वह व्यर्थ है ।।
उस जुल्म को कबतक सहेगी नारियाँ ।
ये कब बुझेगी, आग की चिनगारियाँ ।।
पड़ी अमिट यह छाप जो कुलरीति पर ।
में क्षुब्ध हूँ ऐसी घृणित अनीति पर ।।
युगों - युगों से रे , सभी क्यो मौन है ।
दुर्भाग्य का भागी बताओ कौन है ।।
राम पूत्र थे , राम भाई थे , राजा राम थे परम ललाम है,पति रूप कर्तव्यहीन क्यो,जो किए जानकी का अपमान
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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