।। क्यों रचा स्वयम्बर वैदेही ।।
"अश्रुपात"
अवनी आँचल की अचल सुता
क्यो शिव धनु धरकर वैदेही ।
प्रण लिए जनक धनु भंग सबल
क्यो रचा स्वयम्बर वैदेही ? ।।
वरमाल डाल पुरुषोत्तम को
क्या सफल हुई तू वैदेही ? ।
उन महा धनुर्धर को पाकर
क्या सबल हुई तू वैदेही ? ।।
जो जन्म दिया , वो मूक रही
ममता आँचल में ले न सकी ।
वो मातृ स्नेह मधुराधर का
निज स्तन का सुख दे न सकी ।।
है कौन?कहाँ से,जो प्रश्न चिन्ह
सा , मातृ हीन री वैदेही ।
तब वहाँ विदेह देह भरकर
भरी गोद सुनयन स्नेही ।।
जिस वसुन्धरा के आँचल से
जन्मी और उसमे समागई ।
न समझ सका लीला तेरी
नारी जीवन को रुला गई ।।
राम क्षमा कर देना मुझको
पावन मिथिला का प्रवासी हूँ ।
मैथिली प्यारी बहन मेरी
मै शुभ चिन्तक अभिलाषी हूँ ।।
जो पीड़ा लेकर चली गई
जीभर उस दुःख को गाऊँगा ।
प्रतिजन्म कथा कविता करने
मै जनकपुरी में आऊँगा ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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